मथुरा और हाथरस जिलों में लवणीय भूमि के उपयोग हेतु एक बेहतर विकल्‍प है झींगे की खेती

समुद्री संसाधन
04-04-2022 09:09 AM
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मथुरा और हाथरस जिलों में लवणीय भूमि के उपयोग हेतु एक बेहतर विकल्‍प है झींगे की खेती

मत्स्य पालन से भारत की निर्यात आय को दोगुना करने के उद्देश्‍य से भारत सरकार ने प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) योजना के तहत 2018-19 में मछली उत्पादन को 137.58 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 2024-25 तक 220 लाख मीट्रिक टन करने की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य मत्स्य पालन क्षेत्र में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में 2024-25 तक 20,050 करोड़ रुपये का निवेश करना है। उत्तर प्रदेश के मथुरा और हाथरस जिलों में खारे पानी में झींगा पालन को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है। लवणता और कठोर प्रकृति के प्रति सहनशीलता के कारण इन क्षेत्रों में व्हाइटलेग (whiteleg) झींगा की खेती की जा रही है।
इंटरनेशनल सॉयल एंड वाटर कंजर्वेशन रिसर्च (International Soil and Water Conservation Research) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यमुना नदी के उप-बेसिन में आने वाले और निष्‍कासित होने वाले पानी में नमक की असंतुलित मात्रा के कारण बेसिन के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी, उप-मृदा और पानी का लवणीकरण हुआ है। इससे धारा प्रवाह और पास की भूमि की लवणता बढ़ गई है। 0.5 पीपीटी (ppt) से ऊपर की सांद्रता पर सिंचाई का पानी अधिकांश पौधों के लिए जहरीला हो जाता है। उच्च सोडियम स्तर भी मिट्टी को कठोर और सघन बनाते हैं। इससे इसकी पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है। इन जमीनों पर सीमित कृषि की जा सकती है क्योंकि अधिकांश सब्जियां और फसलें उच्च स्तर की लवणता के प्रति असहिष्णु हैं।
ऐसे क्षेत्र केवल एक विशेष प्रकार के वनस्पतियों और जीवों के लिए अनुकुलित होते हैं और खारे पानी की जलीय, कृषि के लिए बहुत उत्पादक हैं। इसलिए, मथुरा और हाथरस जिलों में अब लोकप्रिय व्हाइटलेग झींगा (जिसे किंग प्रॉन (King Prawn), पैसिफिक व्हाइट झींगा (Pacific White Shrimp) या वन्नामेई झींगा (Vannamei Shrimp) के रूप में भी जाना जाता है) की खेती की जा रही है। यहां 2014-15 में झींगा पालन शुरू किया गया था, लेकिन उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली। PMSSY और भारत सरकार के उत्तर में एक निर्यात केंद्र विकसित करने के दृष्टिकोण ने इसे गति दी।
उत्तर भारत में इस प्रजाति के संवर्धन की कुछ सीमाएँ भी हैं। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में, जहां आमतौर पर झींगा की इस किस्म की खेती की जाती है, तापमान पूरे वर्ष एक समान रहता है। यह इसे इसके विकास के लिए अधिक अनुकूल बनाता है। सुधा झा, एक समुद्री शोधकर्ता ने कहा “व्हाइटलेग झींगा (Whiteleg Shrimp) कठोर मौसम में संघर्ष नहीं कर पाता है, इसलिए यह अक्टूबर के बाद उत्तर भारत में मुश्किल से बढ़ता है और दिसंबर से फरवरी तक ठंडे तापमान से नहीं बच पाता है। इसलिए, अधिकांश किसान केवल अप्रैल / मई से जुलाई / अगस्त तक ही इनकी खेती कर सकते हैं,”। 1980 के दशक के अंत में भारत में आधुनिक झींगा की खेती शुरू हुई, जो झींगा के लिए बढ़ती वैश्विक मांग, समुद्री खाद्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकारी नीतियों और हैचरी, खेतों और प्रसंस्करण संयंत्रों के निर्माण के लिए पूंजी प्रदान करने वाली कई कॉर्पोरेट (Corporate) संस्थाओं से प्रेरित थी। यह मुख्य रूप से ब्लैक टाइगर झींगा (पेनियस मोनोडोन) (black tiger shrimp (Penaeus monodon)) और कुछ हद तक भारतीय सफेद झींगा ( फेनरोपेनियस इंडिकस ) (shrimp (Fenneropenaeus indicus)) पर आधारित थी।
कुछ वर्षों बाद इस क्षेत्र की वृद्धि बुरी तरह प्रभावित हुई, जब व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (WSSV) (White Spot Syndrome Virus (WSSV)) भारत के तटों पर आया और भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण कार्यकर्ताओं की दलीलों पर ध्यान देते हुए, तटीय जल में झींगा की खेती को प्रतिबंधित कर दिया। भारतीय संसद के ए‍क अधिनियम का सहारा लेते हुए झींगा जलीय कृषि को फिर से शुरू किया गया, इसके बाद के विकास के चरण को स्वतंत्र हैचरी (hatchery) और कई छोटे किसानों के स्वामित्व या पट्टे पर पांच हेक्टेयर से कम के खेतों के विकास द्वारा चिह्नित किया गया था। जिसमें ब्लैक टाइगर झींगा बनी रही, लेकिन मीठे पानी के झींगे ( मैक्रोब्राचियम रोसेनबर्गि) (freshwater prawn (Macrobrachiumrosenbergii)) का भी महत्वपूर्ण उत्पादन किया गया।
जबकि 2000 के दशक के मध्य तक इसके उत्‍पादन में वृद्धि की गयी। ब्रूडस्टॉक (broodstock) के लिए, यह क्षेत्र जंगल से पकड़े गए ब्लैक टाइगर झींगा पर निर्भर था, जिसका अर्थ था कि रोगजनकों को अलग करना बेहद चुनौतीपूर्ण था। अन्य प्रमुख एशियाई उत्पादकों के अनुभव को ध्यान में रखते हुए, भारत ने 2008 में विशिष्ट रोगजनक मुक्त (एसपीएफ़) (spf) प्रशांत सफेद झींगा (लिटोपेनियस वन्नामेई (litopeniusvannamei)) पर ध्‍यान केंद्रित करने का निर्णय लिया। क्या समुद्री या समुद्री जानवर आंतरिक जलीय क्षेत्रों में उगाए जा सकते हैं? शायद नहीं। समुद्री जल की तुलना में आयनिक अंतर के कारण अंतर्देशीय खारे पानी में टाइगर झींगे जीवित नहीं रह सकते हैं। लेकिन आईसीएआर (ICAR) के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन (सीआईएफई) (Central Institute of Fisheries Education (CIFE)), मुंबई के शोधकर्ताओं ने इसे संभव बनाया है। हरियाणा में रोहतक के लाहली-बनियानी मछली फार्म में सीआईएफई के वैज्ञानिकों ने अंतर्देशीय भूजल खारे पानी में समुद्री टाइगर (झींगा (पेनियस मोनोडोन) की व्यावसायिक खेती के लिए एक नवीन तकनीक विकसित की है। नई तकनीक उस भूमि का उपयोग करती है जो खारा होकर बंजर हो गई है और कुछ भी उगाने के योग्य नहीं है।टाइगर झींगा मुख्‍यत: समुद्री जल में रहता है और इसे विश्व स्तर सबसे अच्छा समुद्री झींगा माना जाता है। उच्च विकास दर और मांस की गुणवत्ता के कारण, यह भारतीय मछली निर्यात में एक बड़े हिस्से का योगदान देता है। भारत में, लगभग 6.1 मिलियन एकड़ भूमि लवणता से प्रभावित है और यह समस्या विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी राज्यों में खतरनाक दर से बढ़ रही है। लवणीय भूमि कृषि के लिए अनुपयुक्त है। हालांकि, सीआईएफई द्वारा विकसित तकनीक मिट्टी और पानी की लवणता की समस्या के लाभकारी प्रबंधन के लिए एक व्यवहार्य समाधान प्रदान करती है और साथ ही साथ किसानों को उचित रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है। यह तकनीक अन्य लवणता शमन की तुलना में बहुत सस्ती और प्रभावी है।
श्रम की कम लागत और खेती के माध्‍यम से झींगे उत्‍पादित कर भारत सबसे बड़े वैश्विक उत्पादकों में से एक बन गया यह दुनिया में मूल्य वर्धित झींगा का प्रतिस्पर्धी आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। हैचरी, फीड मिलों और प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापित क्षमता भविष्य के विस्तार का समर्थन करेगी।एशिया (Asia) में झींगा के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं की तुलना में, भारत मोटे तौर पर कम घनत्व वाला उत्पादक बना हुआ है, जिसमें लगभग 40 झींगा प्रति वर्ग मीटर के मानक का व्यापक रूप से पालन किया जाता है। इसलिए, देश बड़े झींगा का उत्पादन कर सकता है। भारतीय किसान बेहतर लाभप्रदता के लिए बड़े झींगा, विशेष रूप से ब्‍लैक टाइगर के उत्पादन में अत्यधिक रुचि रखते हैं। हालाँकि, अच्छे अस्तित्व के साथ बड़े आकार में बढ़ना एक कठिन कार्य बन गया है, जिसमें ब्रूडस्टॉक उत्पादकों के साथ-साथ कृषि प्रबंधकों का ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है। गुजरात जैसे उत्तरी राज्यों में - जहां जलवायु कारक झींगा की खेती को साल में ज्यादातर एक फसल तक सीमित रखते हैं - ब्लैक टाइगर झींगा की खेती को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखा जाता है। सरकार ने हाल ही में भारत में एसपीएफ़ ब्लैक टाइगर झींगा के आयात को मंजूरी दी है और पोस्टलारवल एसपीएफ़ ब्लैक टाइगर झींगा (Postlarval SPF Black Tiger Shrimp) पहले से ही बाजार में उपलब्ध है। झींगा उत्पादन में भारत का भविष्य मूल्यवर्धन, बाजार विस्तार और उत्पादन प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने की क्षमता पर निर्भर करेगा जो बीमारियों को नियंत्रण में रख सकती हैं और उद्योग को मजबूत करने में मदद कर सकती हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3qVj5qm
https://bit.ly/3K4UO8R
https://bit.ly/3wYyJFw

चित्र संदर्भ
1. हाथ में पकडे झींगे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. यमुना नदी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एकत्र झींगों को दर्शाता एक चित्रण (PxHere)
4. झींगे की खेती को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. भोजन के तौर पर झींगे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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