समयसीमा 229
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भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
पृथ्वी के जीवन काल को मुख्य चार युगों के आधार पर बाँटा गया है जिसमे सबसे प्राचीन पूर्व कैम्ब्रियन युग है। कैम्ब्रियन नाम कैम्ब्रिया के नाम पर पड़ा है चूँकी प्रथम बार इस युग के चट्टानों का विश्लेशण व खोज यहीं (कैम्ब्रिया वेल्स) मे हुआ था तो इस युग का नाम कैम्ब्रियन युग पड़ गया। पूर्व कैम्ब्रियन युग कैम्ब्रियन युग के पहले का है जिसको मुख्य रूप से दो खण्डों मे विभाजित किया गया है- (क) आर्कियोजोइक युग (निम्न पूर्व कैम्ब्रियन युग) (2,500,000,000-1,375,000,000) (ख) प्रोटेरोजोइक युग (उच्च पूर्व कैम्ब्रियन) (1,375,000,000- 850,000,000)- भारत मे विन्ध्य पर्वत श्रृँखला प्रोटेरोजोइक काल को प्रदर्शित करती है। इस काल मे प्रोटोजोआ व शैवालों का विकास हो चुका था। यदि जीवों के अध्ययन के विषय में बात की जाये तो यह पता चलता है कि जीवों को उनकी शारीरिक संरचना, स्वरूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है। जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमित दृष्टि अर्थात् जगत, उपजगत, वर्ग, उपवर्ग, वंश व जाति के पदानुक्रम में किया जाता है। इसमें सबसे उच्च वर्ग जगत और सबसे निम्न वर्ग जाति होती है। अतः किसी भी जीव को छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। वर्गीकरण विज्ञान का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव का इतिहास। समझ बूझ होते ही मनुष्य ने आस पास के जंतुओं और पौधों को पहचानना तथा उनको नाम देना प्रारंभ किया। ग्रीस(ग्रीस) के अनेक प्राचीन विद्वान, विशेषत: हिपॉक्रेटीज, 46-377 ई. पू. ने और डिमॉक्रिटस 465-370 ई. पू., ने अपने अध्ययन में जंतुओं को स्थान दिया है। स्पष्ट रूप से अरस्तू 384-322 ई. पू. ने अपने समय के ज्ञान का उपयुक्त संकलन किया है। ऐरिस्टॉटल के उल्लेख में वर्गीकरण का प्रारंभ दिखाई पड़ता है। इनका मत है कि जंतु अपने रहन सहन के ढंग, स्वभाव और शारीरिक आकार के आधार पर पृथक् किए जा सकते हैं। इन्होंने पक्षी, मछली, ह्वेल, कीटआदि जंतुसमूहों का उल्लेख किया है और छोटे समूहों के लिए कोलियॉप्टेरा और डिप्टेरा आदि शब्दों का भी प्रयोग किया है। इस समय के वनस्पतिविद् अरस्तू विचारधारा से आगे थे। उन्होंने स्थानीय पौधों का सफल वर्गीकरण कर रखा था। ब्रनफेल्स 1530 ई. और बौहिन 1623 ई. पादप वर्गीकरण को सफल रास्ते पर लानेवाले वैज्ञानिक थे, परंतु जंतुओं का वर्गीकरण करनेवाले इस समय के विशेषज्ञ अब भी अरस्तू की विचारधारा के अंतर्गत कार्य कर रहे थे। कालांतर में लीनियस ने अपनी पुस्तक सिस्टेमा नेचुरा में सभी जीवधारियों को पादप व जंतु जगत में वर्गीकृत किया। लीनियस को आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता कहा जाता है। शुरुआती दौर में यह प्रणाली द्वीजगत प्रणाली थी परन्तु 1969 ई. में व्हिटेकर ने पाँच जगत प्रणाली का प्रतिपादन किया। ये पाँच जगत निम्नलिखित हैं- मोनेरा जगत, प्रोटिस्टा जगत, कवक जगत, वनस्पति जगत, जीव जंतु जगत (चित्र देखें) आधुनिक वर्गीकरण के सारणी को निम्नलिखित रूप से देखा जा सकता है व यह भी समझा जा सकता है कि समय के साथ-साथ किस प्रकार जगत प्रणाली का विकास हुआ- 1. लीनियस (1735) द्वीजगत 2. हाइकेल (1866) त्रिजगत 3. चेट्टन (1925) चारजगत 4. व्हिटेकर (1969) पाँच जगत 5. वूइस व अन्य (1990) तीन डोमेन 6. कैवलियर स्मिथ (1998) छह जगत अन्तिम जगत को यदि देखा जाये तो ये मोनेरा जगत, प्रोटिस्टा जगत, कवक जगत, वनस्पति जगत, जीव जंतु जगत व छठा बैक्टेरिया जगत को जोड़ा गया है। बैक्टेरिया या जीवाणु को जीव जगत में बहुत बाद में जोड़ा गया, जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय नामकरण कोड द्वारा जीवों के वर्गीकरण की सात श्रेणियाँ (Ranks) पारिभाषित की गयी हैं। ये श्रेणियाँ हैं- जगत, संघ, वर्ग, गण, कुल, वंश तथा जाति। हाल के वर्षों में डोमेन नामक एक और स्तर प्रचलन में आया है जो जगत के रखा ऊपर है। किन्तु इसे अभी तक कोड में स्वीकृत नहीं किया गया है। लखनऊ के बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान में उपरोक्त दिये विषय पर गहन शोध कार्य होता है। 1. जियोलॉजी एण्ड मिनरल रिसोर्सेस ऑफ इंडिया, जियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया 2. क्रियेटिव क्राफ्ट्स फ्रॉम राक्स एण्ड जेमस्टोन्स, इसाबेल मूरे, लंदन 3. इवोल्यूशन ऑफ़ लाईफ: एम. एस. रन्धावा, जगजीत सिंह, ए.के. डे, विश्नू मित्तरे 4. इंडिका: प्रणय लाल। 5. https://goo.gl/t3KfqX
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