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भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid waste management) सबसे बड़ी विकास
चुनौतियों में से एक है‚ खासकर शहरी भारत एक अपशिष्ट प्रबंधन संकट का
सामना कर रहा है‚ जो नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि‚ बढ़ती हुई
जनसंख्या‚ तेजी से शहरीकरण‚ आर्थिक विकास से जुड़े उपभोग के बदलते पैटर्न
का परिणाम है। भारत में ठोस कचरे के संग्रह‚ परिवहन और व्यवस्थापन के लिए
मौजूदा सिस्टम अस्तव्यस्तता में फंसे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में
90% से अधिक कचरे को उचित रूप से तैयार किए गए लैंडफिल साइटों (landfill
sites) पर भेजने के बजाय सार्वजनिक स्थानों पर फेंक दिया जाता है। कई
अध्ययनों से भी संकेत मिले हैं कि कचरे का असुरक्षित निराकरण खतरनाक गैस
और रिसाव उत्पन्न करता है। यह समस्या शहरी क्षेत्रों में ज्यादा गंभीर है‚ शहरों
की बढ़ती आबादी तेजी से बड़ी मात्रा में ठोस अपशिष्ट उत्पन्न कर रही है‚ जिसे
शहरी स्थानीय निकाय (urban local bodies (ULBs)) प्रभावी रूप से प्रबंधित
करने में असमर्थ हैं। ठोस कचरे का अनुचित प्रबंधन पर्यावरण और सार्वजनिक
स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरी स्थितियां उत्पन्न करता है। 1992 के 74 वें
संविधान संशोधन अधिनियम की 12 वीं अनुसूची के अनुसार‚ शहरों और कस्बों
को साफ रखने की जिम्मेदारी शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) की है। लेकिन
अधिकांश यूएलबी में उचित बुनियादी ढांचे की कमी है और उन्हें खराब संस्थागत
क्षमता‚ वित्तीय बाधाएं और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी जैसी विभिन्न प्रकार
की संस्थागत और रणनीतिक संबंधी कमजोरियों का सामना करना पड़ता है‚
जबकि कई भारतीय यूएलबी सरकारी सहायता प्राप्त करते हैं‚ जिनमें से लगभग
सभी आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) के
विभिन्न पहलुओं पर बड़ी मात्रा में साहित्य उपलब्ध हैं‚ जैसे “भारत में नगर ठोस
अपशिष्ट प्रबंधन: एक महत्वपूर्ण समीक्षा” (“Municipal Solid Waste
Management in India: A Critical Review”)‚ प्रोफेसर सुधा गोयल का सुझाव
है कि एक कुशल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को डिजाइन करने के लिए
नियमित निगरानी और डेटा संग्रह अत्यावश्यक हैं। गोयल‚ देश में ठोस अपशिष्ट
प्रबंधन प्रथाओं में सुधार करने के लिए‚ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में शहरी स्थानीय
निकाय अनुभवों पर एक केंद्रीकृत डेटाबेस स्थापित करने और रिमोट सेंसिंग
(Remote Sensing)‚ जीआईएस (GIS) तथा गणित अनुकूलन जैसे आधुनिक
उपकरणों और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का सुझाव देते हैं।
भारत में अपशिष्ट निराकरण के तरीके को विनियमित करने के लिए विभिन्न
कानून पारित किए गए हैं। पर्यावरण‚ वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(Ministry of Environment‚ Forest and Climate Change (MoEFCC))
तथा आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban
Affairs (MoHUA)) ने मिलकर इन मुद्दों के समाधान के लिए कार्यक्रम और
नीतियां बनाई हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर हितधारकों के बीच स्पष्टता औरजागरूकता की कमी तथा नियामकों द्वारा खराब प्रवर्तन के कारण अपने उद्देश्यों
को प्राप्त करने में विफल रहे हैं। शहरी कचरे से निपटने के लिए अधिक टिकाऊ
तरीके खोजने के प्रयासों के रूप में यूरोपीय (European) संदर्भों में अपशिष्ट-से-
ऊर्जा प्रौद्योगिकियों (Waste-to-energy technologies (WTE)) को बड़े पैमाने
पर लागू किया गया है। लेकिन ऐसे संयंत्रों का संचालन अलग-अलग कचरे की
आपूर्ति पर निर्भर करता है जो ऊर्जा वसूली प्रक्रिया के लिए उपयुक्त इनपुट प्रदान
कर सकता है‚ इसलिए यह कहना संभव नहीं है कि कोई भी डब्ल्यूटीई (WTE)
तकनीक किसी विशेष संदर्भ में काम करने योग्य सही साबित होगी। कुछ लोगों का
कहना है कि भारत में जलाए जाने पर आधारित डब्ल्यूटीई संयंत्र असफल हो
सकते हैं‚ क्योंकि भारतीय कचरे का कैलोरी मान बहुत कम है। भारतीय सरकार
द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को 2014 से 2019 तक पांच साल के लिए “स्वच्छ
भारत मिशन” (Swachh Bharat Mission (SBM)) शुरू किया गया था‚ जिसका
मुख्य उद्देश्य अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच को खत्म करने पर जोर देने के
साथ एक “स्वच्छ भारत” बनाना था। “स्वच्छ भारत मिशन” (SBM) खुले में शौच‚
स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की बढ़ती समस्याओं का समाधान करता है।
यह कचरा मुक्त वातावरण बनाने‚ स्वच्छ सुविधाएं प्रदान करने और स्वच्छ भारत
का मार्ग प्रशस्त करने के लिए लोगों की भागीदारी चाहता है।
लखनऊ नगर निगम (एलएमसी) (Lucknow Municipal Corporation (LMC))
ने शहर में 200 ठोस अपशिष्ट संग्रह स्थलों को खत्म करने का फैसला किया है।
लखनऊ नगर निगम‚ सिटी सेनिटेशन इंडेक्स (City Sanitation Index) में अपनी
रैंकिंग में सुधार लाने के लिए भूमिगत ठोस अपशिष्ट हस्तांतरण स्टेशन बनाएगा
या इन स्थलों पर कम्पेक्टर (compactors) लगाएगा और साथ ही जिन प्लाटों में
कूड़ा फेंक दिया जाता है‚ उनकी सफाई करवायेगा। सिटी सेनिटेशन इंडेक्स (CSI)
पर उच्च रैंकिंग की दौड़‚ देश के उन सभी शहरों के बीच है जिन पर आवास और
शहरी विकास मंत्रालय नजर रखता है। लखनऊ शहर में कैमरे‚ ट्रैफिक लाइट
(traffic lights)‚ फ्रंट लाइटिंग (facade lighting)‚ एकीकृत यातायात प्रबंधन
प्रणाली (integrated traffic management system) जैसी स्मार्ट निगरानी के
कारण लखनऊ को अन्य शहरों की तुलना में स्कोर करने की ज्यादा उम्मीद है।
नगर आयुक्त अजय द्विवेदी बताते हैं कि‚ लखनऊ ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और
घर-घर जाकर कचरा संग्रह प्रणाली में सुधार करने के लिए भी आवश्यक कदम
उठाए हैं। 300 ओपन डंपिंग पॉइंट्स (open dumping points) में से 41 पॉइंट्स
को 47 पीसीटीएस (PCTS) मशीनों के साथ मैकेनाइज्ड ट्रांसफर स्टेशनों
(mechanised transfer stations) में परिवर्तित कर दिया गया है। लखनऊ नगर
निगम द्वारा वाणिज्यिक और बाजार क्षेत्रों में कचरे के संग्रह के लिए अलग अलग
स्थानों पर दो-दो कचरा संग्रह डिब्बे भी स्थापित किए गए हैं। शिवरी में सॉलिड
वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट (Solid Waste Treatment Plant) में कचरे को ले जाने के
लिए पिछले साल लगभग 151 जीपीएस-युक्त (GPS-fitted) कचरा परिवहन
वाहनों को शामिल किया गया था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3HcvmMF
https://bit.ly/3uY8OfW
https://bit.ly/3uY8OMY
चित्र संदर्भ
1. कूड़ा इकठ्ठा करते सफाई कर्मियों को दर्शाता एक चित्रण (The Vegan Review)
2. कूड़ा चरते जानवरों को दर्शाता चित्रण (indiaclimatedialogue)
3. कूड़ा संग्राहक ट्रक को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. गोमती नगर लखनऊ की सड़क को दर्शाता चित्रण (flickr)
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