क्या है दिल्ली स्थित मालचा महल शिकारगाह की रोचक कहानी, है क्या इसका अवध से कोइ सम्बन्ध?

मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक
18-02-2022 10:15 AM
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क्या है दिल्ली स्थित मालचा महल शिकारगाह की रोचक कहानी, है क्या इसका अवध से कोइ सम्बन्ध?

शिकार एक ऐसा अभ्यास है, जिसे हजारों वर्षों पूर्व से विभिन्न कारणों के चलते उपयोग में लाया गया है।शिकार का एक कारण मनोरंजन भी है, और शायद इसलिए शिकारगाह या शिकार गृह अस्तित्व में आए। शिकारगाह किसी स्थान पर बना एक ऐसा आवास है, जहां लोग अपने शिकार अभियान के लिए रूका करते हैं।मालचा महल भी ऐसे ही शिकार आवासों में से एक है।मालचा महल जिसे विलायत महल के नाम से भी जाना जाता है, नई दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में एक तुगलक युग का शिकार आवास है।इसे फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था, जिन्होंने 1325 में दिल्ली सल्तनत पर शासन किया था। इसे अवध की "बेगम विलायत महल" के नाम के कारण विलायत महल के नाम से जाना गया, जिन्होंने अवध के शाही परिवार का सदस्य होने का दावा किया। उन्हें मई 1985 में कथित तौर पर भारत सरकार द्वारा यह स्थान दे दिया गया था।10 सितंबर 1993 को 62 वर्ष की आयु में बेगम ने आत्महत्या कर ली थी।लखनऊ में वाजिद अली शाह के वंशजों का दावा है कि यह परिवार धोखाधड़ी गतिविधियों में लिप्त था।बेगम विलायत महल का दावा कई अन्य लोगों द्वारा विवादित था, और 22 नवंबर 2019 को, पत्रकार एलेन बैरी (Ellen Barry) ने द न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times) में एक लेख प्रकाशित किया जिसमें दावा किया गया था कि परिवार का कोई शाही संबंध नहीं था और वे वास्तव में लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार इनायतुल्ला बट के वंशज थे! इमारत का अधिकतर हिस्सा अब खंडहर का रूप ले चुका है। विलायत की मृत्यु के बाद, इसमें बेगम की बेटी सकीना महल और बेटे प्रिंस अली रज़ा (उर्फ साइरस) का निवास बना रहा। 2017 के अंत में साइरस की मृत्यु हो गई थी, जबकि उनकी बहन उनकी मृत्यु के कुछ वर्ष पहले ही मर चुकी थी।पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुझाव पर बेगम, दिल्ली के कम ज्ञात स्मारकों में से एक में अपना घर बनाने के लिए सहमत हुई थी। अनेकों जगहों की तलाश के बाद, बेगम और उसके बच्चों द्वारा चाणक्यपुरी में स्थित मालचा महल को चुना गया तथा फिरोजशाह तुगलक का 650 साल पुराना शिकारगाह उनका घर बन गया।
इस शिकारगाह की कहानी यह है, कि अपनी एक शिकार यात्रा में सम्राट रास्ता भटक गया और उसकी देखभाल एक बंजारन (Gypsy) लड़की ने की। यह उन्हीं की कृतज्ञता थी,कि फिरोजशाह ने जंगल के बीच मालचा महल का निर्माण कराया। तीन कमरों वाले ढांचे का परिवेश अभी ज्यादा नहीं बदला है। बेगम विलायत महल ने स्पष्ट रूप से इसके केंद्रीय स्थान के कारण मालचा महल को चुना था। प्रारंभ में, परिवार के पास नौकर थे, जो शहर के रेस्तरां से उनका भोजन लाते थे। इसके बाद महल में ही भोजन तैयार किया गया, जो आगंतुकों के लिए सीमा से बाहर था। महल के चारों ओर कांटेदार तार लगाए गए थे और रात-दिन 12 बड़े कुत्ते उस जगह की रखवाली करते थे।धीरे-धीरे, नौकरों में से एक को छोड़कर सभी ने यह स्थान छोड़ दिया और कुत्तों में से केवल एक बचा रहा।उसके बाद परिवार के बारे में ज्यादा कुछ नहीं सुना गया जब तक यह खुलासा नहीं हुआ कि 1993 में बेगम ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। 2017 में बेगम के बेटे की मौत के बाद यह बर्बाद महल खाली पड़ा है।पांच सौ साल पुरानी मालचा महल की संरचना अब किसी भूत बंगले से कम नहीं है। वर्तमान समय में ऐसे शिकारगाह या शिकार गृह मौजूद हैं, जहां आप जानवरों के अंगों की ट्राफी के रूप में शिकार अभियानों के साक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। इसे देखना किसी संग्रहालय को देखने से कम नहीं हैं, क्यों कि यहां आपको बाघ के सिर, एक सींग वाला गैंडा, काला भालू, बैल आदि की ट्राफियां देखने को मिलेंगी।
भारतीय उपमहाद्वीप में शिकार के इतिहासकी बात करें, तो इतिहासकारों का मानना है कि द्रविड़ों से पहले जो समाज मौजूद था, वह भोजन के लिए शिकार पर निर्भर था। सिंधु घाटी सभ्यता जैसे समाज, जो 3300-1300 ईसा पूर्व के बीच भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में पनपे थे, मांस के लिए जानवरों का शिकार करते थे। लगभग 1500 ईसा पूर्व आर्यों के आगमन के साथ खेल के लिए शिकार लोकप्रिय हुआ।बाहरी गतिविधियों के लिए उनका शौक शिकार के खेल में प्रकट हुआ, जो भोजन और मनोरंजन का एक स्रोत था।कई बार, शिकार को धर्म के माध्यम से भी मंजूरी मिली। पशु बलि इस काल की प्रचलित प्रथा थी, जिस कारण कई जानवरों का अंत हुआ। जाति व्यवस्था के स्तरीकरण के साथ, शिकार शाही लोगों का विशेषाधिकार बन गया तथा निम्न वर्गों के लिए एक व्यवसाय बन गया।1700-मध्य 1900 ईस्वी के बीच मुगल काल के दौरान शिकार का उपयोग दिखावटी तत्व के साथ-साथ युद्ध की सटीकता और योजना के लिए किया गया। शाही शिकार या तो शाही खेल संरक्षित या खुले जंगलों में आयोजित किए गए थे और कभी-कभी, स्थायी शिकार लॉज भी बनाए जाते थे। शाही शिकार प्रकृति पर प्रभुत्व स्थापित करने का एक तरीका था।अंग्रेज भी शिकार को पुरुषत्व का प्रदर्शन मानते थे, जो कि धैर्य, कौशल और नैतिकता जैसे गुणों को दर्शाता था।

संदर्भ:
https://bit.ly/3HSct2l
https://nyti.ms/3sHDnnh
https://bit.ly/3gM340n
https://bit.ly/3HRPlRS
https://bit.ly/3sCgnGc
https://bit.ly/3uYl14t

चित्र संदर्भ   

1. रायसीना हिल में हो रहे निर्माण (सी. 1920-1930s) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मालचा महल में नो इंट्री को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. मालचा महल गेट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. 1900 की शुरुआत में भारत में शिकार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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