विद्या आरंभ के लिए विशेष है, बसंत पंचमी अथवा सरस्वती पूजा का त्योहार

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
05-02-2022 03:00 PM
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विद्या आरंभ के लिए विशेष है, बसंत पंचमी अथवा सरस्वती पूजा का त्योहार
आज पूरे भारत में बसंत पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है, जिसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।बसंत पंचमी का यह पर्व ज्ञान, भाषा, संगीत और सभी कलाओं की देवीसरस्वती को समर्पित एक पर्व है तथा लोग इस दिन विभिन्न रूपों में देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।यह पर्व बसंत के आगमन का भी प्रतीक है।
देवी सरस्वती को समर्पित इस त्योहार के दिन अधिकांश स्कूल और कॉलेज सरस्वती पूजा की व्यवस्था करते हैं। देवी सरस्वती अपने सभी रूपों में रचनात्मक ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक हैं,जिसमें लालसा और प्रेम भी शामिल है।इस दिन विद्या आरंभ नामक रस्म का भी आयोजन किया जाता है।विद्या आरंभ,छोटे बच्चों को दुनिया की शिक्षा और औपचारिक शिक्षा से परिचित कराने की रस्म है।विद्या आरंभ जिसे संस्कृत में विद्यारंभम भी कहा जाता है,एक हिंदू परंपरा है, जो छोटे बच्चों को ज्ञान, अक्षरों और सीखने की प्रक्रिया की दुनिया से परिचित कराती है। यह समारोह 2-5 वर्ष की आयु के बीच के बच्चे के लिए किया जा सकता है। मुख्य रूप से केरल में यह अनुष्ठान आमतौर पर नवरात्रि के अंतिम दिन, यानी विजयादशमी के दिन आयोजित किया जाता है, जहां बच्चों को औपचारिक रूप से संगीत, नृत्य, भाषा और अन्य लोक कलाएं सीखने के लिए पेश किया जाता है।
विद्यारंभम की रस्म को घर पर भी शुभ मुहूर्त पर अनुष्ठानों के बाद किया जा सकता है। इसमें दीक्षा-संस्कार का एक समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें बच्चे को शब्दांश के अक्षर सिखाए जाते हैं।तमिलनाडु में इस रस्म को मुधल एझाथु तथा ओडिशा में खादी चुआन के नाम से जाना जाता है, जो मुख्य रूप से गणेश चतुर्थी और बसंत पंचमी पर किया जाता है। इसके अलावा विजयादशमी का दिन जो कि नवरात्रि समारोह का दसवां और अंतिम दिन होता है,को भी किसी भी क्षेत्र में सीखने की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन सीखने और दीक्षा लेने की प्रक्रिया का आयुध पूजा अनुष्ठान से भी गहरा संबंध है।
आमतौर पर विजयादशमी के दिन पूजा के लिए रखे गए उपकरणों को फिर से उपयोग के लिए ले लिया जाता है। यह एक ऐसा दिन भी माना जाता है जब विद्या की देवी सरस्वती और गुरुओं को गुरुदक्षिणा देकर उनकी पूजा की जाती है। इस सामान्य प्रथा में हजारों लोग अपने बच्चों को सीखने की दीक्षा देने के लिए मंदिरों में ले जाते हैं। शब्दांश की दुनिया में सीखने की शुरूआत आमतौर पर मंत्र के लेखन से शुरू होती है।यह मंत्र “ओम हरि श्री गणपतये नमः, अविखनामस्थु, श्री गुरुवे नमः, श्री सरस्वती सहायम" है,जिसका मतलब है कि "हरि (भगवान विष्णु), श्री (समृद्धि की देवी), और भगवान गणपति को नमस्कार"।प्रारंभ में, मंत्र को बच्चे द्वारा रेत पर या चावल के दाने की ट्रे में, समारोह आयोजित करने वाले गुरु (आमतौर पर एक पुजारी या गुरु) की देखरेख में लिखा जाता है। फिर, गुरु बच्चे की जीभ पर सोने से मंत्र लिखता है।रेत पर लिखना अभ्यास को दर्शाता है,अनाज पर लिखना ज्ञान की प्राप्ति को दर्शाता है, जो समृद्धि की ओर ले जाता है। जीभ पर सोने से लिखने से विद्या की देवी की कृपा का आह्वान किया जाता है, जिससे बच्चे को सच्चे ज्ञान के धन की प्राप्ति हो। अनुष्ठान में सीखने की प्रक्रिया की शुभ शुरुआत के लिए भगवान गणपति का आह्वान भी किया जाता है। अक्षराभ्यासम नाम से जाने जानी वाली यह रस्म कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हिंदू परिवारों में बहुत आम है।ऐसा नहीं है, कि केवल भारत में ही देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। दुनिया के अन्य देशों जैसे इंडोनेशिया (Indonesia),चीन (China),जापान (Japan),कंबोडिया (Cambodia),थाईलैंड (Thailand),म्यांमार (Myanmar), तिब्बत (Tibet) आदि में भी देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।इंडोनेशिया में पावुकोन (Pawukon) कैलेंडर का अंतिम दिन वतुगुनुंग (Watugunung), विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित है।सरस्वती बालिनी (Balinese) हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं। बाली में, सरस्वती दिवस मनाया जाता है, जो इंडोनेशिया में हिंदुओं के लिए मुख्य त्योहारों में से एक है।इस दिन लोग मंदिरों और पवित्र ग्रंथों में फूलों को भेंट करते हैं। सरस्वती दिवस के अगले दिन, बन्यु पिनारुह (Banyu Pinaruh), दिवस होता है। इस दिन, बाली के हिंदू लोग समुद्र, पवित्र झरने या नदी में जाते हैं, तथा देवी सरस्वती की पूजा करते हैं, और फिर सुबह उस पानी से खुद को साफ करते हैं। चीन में देवी सरस्वती बिंचैतीनी (Biàncáitiān) और मिशोयन्तियानी (Miàoyīntiān) के नाम से जानी जाती हैं, जिसका मतलब क्रमशः “वाक्पटु देवी" और “सुंदर ध्वनि की देवी” है।आमतौर पर चीनी बौद्ध मठों में उहें चौबीस देवों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।कंबोडिया में देवी सरस्वती और ब्रह्मा को 7 वीं शताब्दी के बाद से कंबोडियन एपिग्राफी (Epigraphy) में संदर्भित किया गया है।वाक्पटुता, लेखन और संगीत की देवी होने के कारण खमेर कवियों द्वारा उनकी प्रशंसा की गई है।यशोवर्मन (Yasovarman) युग के खमेर साहित्य में उन्हें वागीस्वरी और भारती के रूप में भी जाना जाता है।प्राचीन थाई साहित्य में, देवी सरस्वती को भाषण और सीखने की देवी माना गया है, जो कि ब्रह्मा की पत्नी हैं।समय के साथ, देवताओं पर हिंदू और बौद्ध अवधारणाएं थाईलैंड में भी स्वीकार कर ली गईं।भारत के अन्य देवताओं के साथ सरस्वती के प्रतीक पुराने थाई वाट (Thai wats– पूजा स्थल) में पाए जाते हैं।थाईलैंड में ताबीजों पर देवी सरस्वती और एक मोर की छवि को भी देखा जा सकता है।18वीं सदी की तिब्बती कलाकृति में देवी सरस्वती, एक वाद्य यंत्र पकड़े हुए दिखाई देती हैं। तिब्बत में, उन्हें संगीत की देवी या संगीत की तारा के रूप में जाना जाता है।जापान में देवी सरस्वती की पूजा कुछ अनोखे तरीके से की जाती है।यहां देवी सरस्वती के मंदिरों की एक बड़ी संख्या है, तथा देवी सरस्वती का पौराणिक नदी सरस्वती से संबंध होने के कारण, यहां पानी के कुंडों में उनकी पूजा की जाती है। टोक्यो (Tokyo) में देवी सरस्वती का सबसे ऊंचा मंदिर मौजूद हैं, जहां उन्हें वीणा लिए हुए दिखाया गया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3AYFo2j
https://bit.ly/34xS57W
https://bit.ly/3J3M4z2
https://bit.ly/3ooZuxA

चित्र संदर्भ:
1.चीनी बौद्ध देवताओं की मूर्तियां, केंद्र में सरस्वती के साथ, शंघाई, चीन में जेड बुद्ध मंदिर में(Wikimedia)
2.सरस्वती पूजा पर ज्ञान दीक्षा(youtube)
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