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क्रिसमस (Christmas) के आते ही विश्व भर में रह रहे ईसाई काफी धूमधाम से जश्न मनाना शुरू
कर देते हैं और चमकदार रोशनी, सुंदर आकृतियों और क्रिसमस के वृक्ष से अपने घरों को काफी
आकर्षक रूप से सजाते हैं। इस दिन क्रिसमस वृक्ष को विभिन्न आकर्षक चीजों से सजाया जाता है, ये
अधिकतर एक सदाबहार शंकुवृक्ष, जैसे कि देवदार, स्प्रूस (Spruce), चीड़ या इनके समान दिखने
वाला एक कृत्रिम पेड़ होता है। क्रिसमस के वृक्षों को इस दिन के लिए सजावट के रूप में उपयोग
करने से पूर्व इन्हें केवल विनम्र, सुगंधित सदाबहार माना जाता था, जो कठोर सर्दियों के महीनों के
दौरान हर्ष के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध थे।प्राचीन संस्कृतियों में, शीतकालीन संक्रांति को आने वाले
उज्ज्वल दिनों की शुरुआत के रूप में मनाया जाता था, क्योंकि वे मानते थे कि इस समय सूर्य
भगवान अपनी ताकत को पुनः प्राप्त कर रहे हैं। चूंकि सदाबहार पेड़ सभी चार मौसमों के दौरान हरे
भरे रहते हैं, इसलिए उन्हें आने वाले गर्म महीनों की याद के रूप में संक्रांति के समन्वय में प्रदर्शित
और संमिलित किया लगाया जाता था।मिस्र (Egypt) में भी इसी तरह की परंपरा को अपनाया गया,
जैसे-जैसे मौसम ठंडा और रातें लंबी होती गईं, “सूर्य देव रा (Sun God ‘Ra’)”आमतौर पर दुर्बल होते
गए। इसी वजह से संक्रांति को ऋतुओं में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाने लगा, इसलिए
मिस्रवासियों द्वारा अपने घरों को ताड़ के पत्तों और शाखाओं से सजाया जाता था। साथ ही सूत्रों के
मुताबिक 1600 के आसपास अलसैस (Alsace) में पहले प्रलेखित क्रिसमस वृक्ष और पूर्व-ईसाई
परंपराओं के बीच एक संबंध को प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए, एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका
(Encyclopaedia Britannica) के अनुसार, "अनन्त जीवन का प्रतीक सदाबहार वृक्षों, पुष्पांजलि और
मालाओं का उपयोग प्राचीन मिस्रियों, चीनी (Chinese) और इब्रियों (Hebrews) का एक प्रचलन था।
गैर-ईसाई यूरोपीय (European) लोगों के बीच वृक्ष पूजा आम थी और क्रिसमस के समय में शैतान
को डराने और पक्षियों के लिए एक पेड़ स्थापित करने के लिए नए साल में घर और खलिहान को
सदाबहार से सजाने के स्कैंडिनेवियाई (Scandinavian) रीति-रिवाज उनके ईसाई धर्म में रूपांतरण
करने तक बचे रहे।सैटर्नलिया (Saturnalia) के रोमन (Roman) क्रिसमस से जुड़े अन्य पूर्ववर्ती रीति-
रिवाजों के साथ मध्य-सर्दियों के त्योहार के दौरान, घरों को सदाबहार पौधों की पुष्पांजलि के साथ
सजाया करते था। वहीं डोनर (Donar) के ओक (Oak) को काटने वाले संत बोनिफेस (Boniface)
की कहानी 8 वीं शताब्दी में जर्मनों (Germans) के बीच बुतपरस्त प्रथाओं को दर्शाती है।ऐसा कहा
जाता है कि टूटे हुए ओक के पेड़ के स्थान पर एक सदाबहार पेड़ उग जाता है, जिसका त्रिकोणीय
आकार त्रिदेव का प्रतिनिधित्व करता है और ऐसा प्रतीत हुआ कि वो स्वर्ग की ओर इशारा कर रहा
है।
हालाँकि, आधुनिक क्रिसमस वृक्ष की उत्पत्ति पश्चिमी जर्मनी में हुई थी। एडम और इव (Adam and
Eve) के बारे में एक लोकप्रिय मध्ययुगीन नाटक का मुख्य आधार एक "स्वर्ग का पेड़ (Paradise
tree)" था, जो गार्डन ऑफ एडेन (Garden of Eden) का प्रतिनिधित्व करता था। जर्मनों द्वारा 24
दिसंबर को एडम और इव के धार्मिक पर्व के दिन अपने घरों में एक स्वर्ग के पेड़ लगाया गया।
उन्होंने उस पर वेफर्स (Wafer) लटकाए (युखारिस्तीय समुदाय का प्रतीक, मोचन का ईसाई संकेत);
हालांकि समय के साथ परंपरा में वेफर्स को विभिन्न आकृतियों के कुकीज़ (Cookies) द्वारा बदल
दिया गया था।साथ ही विश्व के प्रकाश के रूप में मसीह का प्रतिनिधित्व करने के लिए मोमबत्तियों
को अक्सर जोड़ा जाता था।16वीं शताब्दी तक यह स्वर्ग के पेड़ को क्रिसमस वृक्ष के साथ विलीन कर
दिया गया।18 वीं शताब्दी तक जर्मन लूथरन (Lutherans) के बीच यह रिवाज व्यापक रूप से फेला।
19 वीं शताब्दी की शुरुआत में इसे इंग्लैंड (England) में पेश किया गया।जैसे-जैसे 20 वीं शताब्दी में
तकनीकी और औद्योगिक विकास हुआ, वैसे-वैसे अधिक घरेलू सजावट ने चमकदार बिजली की
रोशनी और कृत्रिम सामग्री, जैसे झिलमिल को रास्ता दिया। आयातित जर्मन कांच के गहनों से प्रेरित
लोकप्रिय शाइनी ब्राइट (Shiny Brite) आभूषणों ने 1900 के दशक की शुरुआत में अमेरिकी
(America) आभूषण उद्योग की शुरुआत को चिह्नित किया।
वहीं अन्य धार्मिक त्योहारों की तुलना में, (अन्य धर्मों के लोगों की तुलना में ईसाई लगभग 2.3%
हैं), भारत में क्रिसमस काफी छोटा त्योहार है। यह कहा जा सकता है कि भारत की जनसंख्या 1
बिलियन से अधिक है, इसलिए भारत में 25 मिलियन से अधिक ईसाई हैं। मुंबई में सबसे बड़ा
भारतीय ईसाई समुदाय मौजूद है, जिनमें अधिकांश ईसाई रोमन कैथोलिक (Roman Catholics)
हैं।भारत के सबसे छोटे राज्य गोवा में, लगभग 26% लोग ईसाई हैं। वहीं मुंबई में कई ईसाई गोवा
से आए हैं या उनका मूल शहर गोवा है। मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम (सभी भारत के
पूर्व में) राज्यों में भी ईसाइयों की उच्च आबादी मौजूद है।साथ ही मध्यरात्रि सामूहिक एकत्रण भारत
में ईसाइयों, विशेष रूप से कैथोलिकों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण सेवा है। इसमें पूरा परिवार
सामूहिक रूप से जलूस निकालते हैं और इसके बाद विभिन्न व्यंजनों, (ज्यादातर करी) और उपहार
देने और प्राप्त करने की एक विशाल दावत का आयोजन करते हैं। क्रिसमस के दिन भारत में चर्चों
को पॉइन्सेटिया (Poinsettia) फूलों और मोमबत्तियों से सजाया जाता है।चूँकि हमारे पास भारत के
कई हिस्सों में देवदार और देवदार के पेड़ नहीं हैं, एक केले या आम के पेड़ को सजाया जाता है (या
जो भी पेड़ लोग सजाने के लिए पा सकते हैं!)। कभी-कभी लोग अपने घरों को सजाने के लिए आम
के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3mv82C8
https://bit.ly/3qmdwAn
https://bit.ly/3pmNlu0
चित्र संदर्भ
1. प्रांग एंड कंपनी (बोस्टन) द्वारा क्रिसमस कार्ड के रूप में दर्शाया गया क्रिसमस ट्री को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. जगमगाती मालाओं से सजाए गए क्रिसमस वृक्ष को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. क्रिसमस वृक्ष को को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. चर्च में क्रिसमस ट्री को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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