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पजामा (Pyjamas) पुरुषों‚ महिलाओं और बच्चों द्वारा पहना जाने वाला एकआरामदायक वस्त्र है। इन्हें आमतौर पर सोने के लिए‚ घर में काम करने और
आराम करने के लिए पहना जाता है। पश्चिमी दुनिया में अपनाए गए पजामा
नरम‚ गर्म और पारंपरिक रूप से ढीले वस्त्र हैं‚ जो भारतीय और फारसी
(Persian) नीचे पहनने वाले पयजामा से प्राप्त होते हैं। पजामा को पारंपरिक रूप
से उपयोगितावादी कपड़ों के रूप में देखा जाता है‚ वे अक्सर फैशनेबल और
लोकप्रिय कल्पना में विदेशी छवि का प्रतिबिंब होते हैं। पजामा वन-पीस या टू-पीस
वस्त्र हो सकता है‚ जिसमें विभिन्न लंबाई तथा चौड़ाई के ढीले-ढाले पैंट होते हैं।
मूल पजामा ढीले और हल्के ट्राउजर (trousers) हैं‚ जो उपयुक्त कमरबंद से
सुसज्जित होते हैं और कई भारतीय सिखों‚ मुसलमानों और हिंदुओं द्वारा पहने
जाते हैं।
इसे बाद में भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India
Company) के शासन के दौरान यूरोपीय लोगों (Europeans) द्वारा अपनाया
गया। पजामा शब्द हिंदी के “पाय जामा” (pae jama) या “पै जामा” (pai jama)
से आया है‚ जिसका अर्थ है पैर के कपड़े‚ और इसका उपयोग ओटोमन
(Ottoman) साम्राज्य के समय का है। पजामा पारंपरिक पतलून थे‚ जो भारत‚
ईरान‚ पाकिस्तान और बांग्लादेश में दोनों लिंगों द्वारा पहने जाते थे। भले ही
पजामा हिंदी शब्द है‚ लेकिन इसी तरह के वस्त्र पूरे मध्य और सुदूर पूर्व में
पारंपरिक वेशभूषा में पाए जाते हैं। इन देशों में पजामा यूरोपीय लोगों द्वारा
अपनाया गया था‚ और बाद में ये विदेशी लाउंजवियर (loungewear) के रूप में
उभरा था। पजामा पहनना बीसवीं शताब्दी तक व्यापक नहीं था‚ लेकिन उन्हें
सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में प्रतिष्ठा और सांसारिक ज्ञान के संकेतक के रूप में
अपनाया गया था।
पजामा को आम तौर पर 1870 के आसपास पश्चिमी दुनिया का माना जाता है‚
जब ब्रिटिश उपनिवेशों‚ जिन्होंने उन्हें पारंपरिक नाइटसूट (nightsuits) के विकल्प
के रूप में अपनाया था‚ ने उनकी वापसी का कार्य जारी रखा। दक्षिण एशिया
(South Asia) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में कभी-कभी रात्रि के कपड़े
(night suits) के रूप में पहने जाने वाले पारंपरिक पजामा (Traditional
pajamas) में नरम कपड़े जैसे फलालैन (flannel) या हल्के सूती कपड़े से बने
शर्ट और पतलून के संयोजन होते हैं। शर्ट में आम तौर पर बिना कफ वाली एक
जेब और आस्तीन होते हैं।
समकालीन पजामा‚ पारंपरिक पजामा से ही उत्पन्न होते हैं। दोनों शैली में कई
भिन्नताएँ होती हैं जैसे छोटी आस्तीन का पजामा‚ अलग-अलग लंबाई के पजामा‚
और विभिन्न गैर-पारंपरिक सामग्रियों को शामिल करने वाले पजामा। 1902 तक
पुरुषों के पजामा अधिक पारंपरिक नाइटशर्ट (nightshirts) के साथ व्यापक रूप से
और फलालैन (flannel) और मद्रास (madras) जैसे कपड़ों में उपलब्ध थे। पजामा
को आधुनिक और सक्रिय जीवन शैली के लिए उपयुक्त माना जाता था। 1920 के
दशक के दौरान सुगठित तथा द्विलिंगी फैशन ने महिलाओं द्वारा पजामा पहनने
को लोकप्रिय बनाने में मदद की। पुरुषों के पजामा हमेशा कपास‚ रेशम या
फलालैन से बने होते थे‚ जबकि महिलाओं के पजामा अक्सर चमकीले मुद्रित रेशम
या रेयान (rayon) से बने होते थे और रिबन या लेस के साथ सुव्यवस्थित किये
जाते थे। 1940 के दशक तक महिलाओं का “शॉर्टी” (shortie) पजामा प्रचलित था‚
जो बाद में “बेबी डॉल” (baby doll) पजामा में विकसित हो गया। 1960 के दशक
के मध्य तक‚ बेबी-डॉल पजामा लाखों लड़कियों और महिलाओं के लिए मानक
ग्रीष्मकालीन नाइटवियर था। 1970 के दशक के दौरान यूनिसेक्स (unisex) शैली
की लोकप्रियता के साथ‚ पजामा अक्सर पुरुषों के कपड़ों से प्रेरित होते थे।
सिलवाया गया साटन पजामा 1920 के दशक से ही काफी लोकप्रिय था। इस
दशक में‚ वियतनाम (Vietnam) और चीन (China) की पारंपरिक पोशाक पर
आधारित जातीय शैलियों को‚ फैशन विरोधी और पहनने वाले के राजनीतिक
विचारों की अभिव्यक्ति के रूप में पहना जाता था।
पजामा को बीसवीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों में फैशनेबल पोशाक में रूपांतरित
किया जाने लगा‚ जब डिजाइनरों ने उन्हें चाय के गाउन के एक सुंदर विकल्प के
रूप में प्रचारित किया। फ्रांसीसी (French) फैशन डिजाइनर पॉल पोइरेट (Paul
Poiret) ने 1911 की शुरुआत में दिन और शाम दोनों के लिए पजामा शैलियों की
शुरुआत की‚ और उनकी प्रतिष्ठा ने उनकी अंतिम स्वीकृति में एक बड़ी भूमिका
निभाई। समुद्र तट पजामा (Beach pajamas)‚ जो समुद्र के किनारे और बोर्डवॉक
पर चलने के लिए पहना जाता था‚ 1920 के दशक की शुरुआत में गैब्रिएल
“कोको” चैनल (Coco Chanel) द्वारा लोकप्रिय हुआ था। पहले समुद्र तट पजामा
कुछ रोमांचकारी लोगों द्वारा पहने जाते थे‚ लेकिन दशक के अंत तक औसतन
महिलाओं के लिए यह स्वीकार्य पोशाक बन गई थी। शाम के पजामा‚ जिसे घर
पर अनौपचारिक भोजन के लिए एक नए प्रकार की पोशाक के रूप में पहना जाना
था‚ को भी इस दशक के दौरान व्यापक रूप से स्वीकार किया गया। शाम का
पजामा 1930 के पूरे दशक में लोकप्रिय रहा और 1960 के दशक में “पलाज़ो
पजामा” (palazzo pajamas) के रूप में फिर से उभरा। पलाज़ो पजामा को रोमन
डिजाइनर आइरीन गैलिट्जाइन (Irene Galitzine) ने 1960 में मनोहर लेकिन
अनौपचारिक शाम की पोशाक के रूप में पेश किया था। उन्होंने 1960 के दशक के
दौरान फैशन को बहुत प्रभावित किया और 1970 के दशक में भी जारी रखा।
पलाज़ो पजामा बेहद चौड़े और मुलायम रेशम से बने होते हैं तथा बीड और झालर
लगाकर सजाए जाते हैं। 1970 के दशक के दौरान‚ शाम के कपड़े और लाउंजवियर
का विलय हो गया‚ क्योंकि शाम की शैली सरल और असंरचित हो गई थी।
हैल्स्टन (Halston)‚ विशेष रूप से साटन (satin) और क्रेप (crepe) के अपने
बेस-कट पैंटसूट (bias-cut pantsuits) के लिए जाने जाते थे‚ जिसे वे “पजामा
ड्रेसिंग” (pyjama dressing) कहते थे। पोशाक की इस बढ़ी हुई अनौपचारिकता ने
पजामा को आधुनिक फैशन में एक मुख्य वस्त्र बना दिया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3cXfsZS
https://bit.ly/3GbBiW7
https://bit.ly/3lhHdAO
https://bit.ly/3xuAkkx
चित्र संदर्भ
1. भांति-भांति के पायजामा पहने भारतीयों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. टू-पीस पुरुषों के पजामें को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नाइटसूट (nightsuits) के विकल्प के रूप में पैजामे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 4-एच समर स्कूल, 1940 में गर्ल्स पायजामा पार्टी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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