इत्र का प्रयोग विश्व में आदिकाल से होता आ रहा है। कई भारतीय कर्मकाण्डों व धार्मिक अनुष्ठानों में इत्र का प्रयोग होता है। कालीदास की रचनाओं में विभिन्न प्रकार के पुष्पों के रस तथा चंदन के मिश्रण से बनाये जाने वाले द्रव्य का उल्लेख मिलता है जो कदाचित् इत्र ही है। प्राचीन काल में मिस्र, ग्रीस व अन्य कई देश भारत से चन्दन की लकड़ियों का व्यापार करते थे। उनके द्वारा लिखित साक्ष्यों से भारत में इत्र के उत्पाद को पुष्टि मिलती है। बौद्ध धर्म में भी इत्र का एक विशेष महत्व है। यही कारण है कि भारत में बड़े पैमाने पर इत्र का प्रयोग होता रहा है। करीब 538 ईस्वी में बौद्ध धर्म जापान और चीन में पहुँचा और यही वह दौर था जब पहली बार जापान के लोग इत्र से रूबरू हुये। भारत में इत्र बनाने के प्रमुख केन्द्रों में कन्नौज, जौनपुर, गाजीपुर व लखनऊ थे।
लखनऊ नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के इत्रों का प्रयोग बहुत पहले से किया जाता आ रहा है। लखनऊ विभिन्न प्रकार के पकवानों के लिये भी जाना जाता है। यहाँ के पकवानों में इत्र की बड़ी महत्ता है। लखनऊ में स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान विभिन्न प्रकार के इत्र व उनके प्रकारों पर कई शोध कर चुका है। गुलाब के विभिन्न प्रकारों और उनसे मिलने वाले इत्र पर भी राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान ने शोध किया है। संशोधन कि वजह से इत्र की गुणवत्ता और भी बढियाँ के होने के आसार बढ गये हैं। आज भी यहाँ पर विभिन्न इत्र की दुकानों को हम देख सकते हैं जो यहाँ पर इत्र मुहैया करवाते हैं।
1. मॉडर्न टेक्नॉलॉजी ऑफ़ परफ्यूम्स, फ्लॉवर्स एण्ड इसेन्शियल ऑयल्स (एडिशन-2), एन.आय.आय.आर. बोर्ड
2. लखनऊ- द सिटी ऑफ़ नवाब्स, स्टूडेंट एकेडमी
3. द कम्प्लीट टेक्नॉलॉजी- बुक ऑन हर्बल परफ्यूम्स एण्ड कॉस्मेटिक्स: एच. पंडा