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हर साल पूरे भारत में 2 अक्टूबर का दिन गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है।गांधी जी उन
महान लोगों में से एक हैं, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर
दिया, यही कारण है कि आज उन्हें राष्ट्र पिता के नाम से भी जाना जाता है। स्वतंत्रता के
प्रयासों के रूप में गांधी जी ने भारत के अनेकों स्थानों की यात्राएं की, जिनमें लखनऊ भी
शामिल है। लखनऊ की गोखले गली में एक पुराना बरगद का पेड़ आज भी मौजूद है, जिसे
1936 में स्वयं महात्मा गांधी ने एक पौधे के रूप में लगाया था।आइए गांधी जयंती के अवसर
पर आज गांधीजी के साथ हमारे शहर के ऐतिहासिक संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
महात्मा गांधी से जुड़ी अनेकों यादें आज भी लखनऊ अपने अंदर समेटे हुए है।महात्मा गांधी का
पहली बार लखनऊ आगमन 26 दिसम्बर 1916 को हुआ। इस समय वे कांग्रेस अधिवेशन के
लिए लखनऊ आए थे। इसी समय महात्मा गांधी की मुलाकात पहली बार देश के पहले
प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू से लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन में हुई।
जवाहरलाल
नेहरू, गांधी जी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।यह एक ऐसा अवसर था, जब जवाहर लाल
नेहरू ने देश की आजादी के लिए गांधी जी के साथ संघर्ष करने का निर्णय लिया। जवाहर लाल
नेहरू और महात्मा गांधी की यह बैठक 20 मिनट तक चली और इस बैठक ने भारत के
इतिहास को बदल दिया क्योंकि इसने भारतीय स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
महात्मा गांधी के
समान जवाहर लाल नेहरू भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की वार्षिक बैठक में हिस्सा लेने आए
थे।नेहरू ने अपनी आत्मकथा में 1916 में गांधीजी से हुई उनकी पहली मुलाकात के बारे में
लिखा है।जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी का बहुत सम्मान करते थे।उन्होंने लिखा कि 'मैंने
दक्षिण अफ्रीका में उनकी वीरतापूर्ण लड़ाई के लिए उनकी प्रशंसा की, लेकिन वे हम सभी युवाओं
से बिल्कुल अलग थे। चंपारण में उनके अहिंसा और विजय के साहसिक कार्य ने हमें जोश से
भर दिया था।उन्होंने अपने इस तरीके को पूरे भारत में भी लागू करने का फैसला लिया तथा
सफलता का वादा किया’। लखनऊ अधिवेशन के दौरान नेहरूजी ने अफ्रीका (Africa), कैरेबियन
द्वीप समूह (Caribbean Islands) और फिजी (Fiji) जैसे अन्य देशों में भेजे जाने वाले
भारतीय मजदूरों की भर्ती का विरोध किया।उन्होंने सभी कांग्रेसियों के सामने इसके सम्बंध में
एक बिल भी पेश किया, विशेष बात यह है कि गांधी जी ने भी इस बिल का भरपूर समर्थन
किया।यहीं से ही इन दोनों महान नेताओं के बीच मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ। हर साल
इस बैठक की याद में एक वार्षिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, तथा स्वतंत्रता दिवस और
2 अक्टूबर के दिन उनकी याद में यहां मोमबत्तियां जलाई जाती हैं।
लखनऊ के अंदर महात्मा गांधी के प्रयासों को याद दिलाने वाला एक और साक्ष्य फिरंगी महल
है।पुराने लखनऊ में मौजूद फिरंगी महल में महात्मा गांधी से जुड़ी अनेकों यादें मौजूद हैं।यहां
जटिल रूप से तैयार की गई 'खड़ाऊ'(लकड़ी की चप्पल) की एक जोड़ी है,जिसे महात्मा गांधी ने
मौलाना अब्दुल बारी (1878-1926) के घर में रहने के दौरान पहना था।मौलाना अब्दुल बारी
मुस्लिमों के प्रसिद्ध नेता और स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे उस समय फिरंगी महल मदरसा के
प्रमुख भी थे। महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन के साथ जुड़ाव ने फिरंगी महल को सुर्खियों
में ला दिया था। लेकिन यह घर कभी फ्रांसीसी व्यापारियों के कब्जे में था। इसलिए इसका नाम
फिरंगी महल रखा गया था।1921 में मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने बारी को एक तार भेजा
कि महात्मा गांधी लखनऊ आ रहे हैं।बारी उन्हें फिरंगी महल ले आए।
असहयोग आंदोलन और
खिलाफत आंदोलन से पहले जब हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत किए जाने का प्रयास किया जा
रहा था,तब महात्मा गांधी जब भी लखनऊ आते तो वे अक्सर यहां रुकते।फिरंगी महल की
अपनी यात्राओं को याद करते हुए,गांधी जी बताते थे कि कैसे बारी अपने प्रवास के दौरान एक
हिंदू रसोइया की व्यवस्था करते थे।ये दौरे जलियांवाला बाग हत्याकांड के तुरंत बाद हुए
थे,जिसने देश को झकझोर कर रख दिया था।बारी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए मुसलमानों से
दान एकत्र किया और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने और मुस्लिम समुदाय का गांधी जी में
विश्वास पैदा करने के लिए शहर के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में महात्मा गांधी के दौरे की व्यवस्था
की।
गांधी ने इन वर्षों के दौरान तीन अवसरों पर लखनऊ का दौरा किया। वे पहली बार मार्च 1919
में लखनऊ आए,जिसके बाद उनका आगमन सितंबर 1919 हुआ।जब भी गांधी जी फिरंगी महल
का दौरा करते तो सम्मान के एक संकेत के रूप में क्षेत्र के मुस्लिम परिवार मांस पकाने से
परहेज किया करते।गांधी जी के अलावा जवाहरलाल नेहरू,अब्दुल कलाम आजाद, सरोजिनी नायडू
जैसे नेताओं ने भी खिलाफत और असहयोग आंदोलनों के विभिन्न पहलुओं की योजना बनाने के
लिए फिरंगी महल में कई बैठकें आयोजित कीं।
इसके अलावा 27 सितंबर1929 कोलखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के उद्घाटन के समय भी
महात्मा गांधी लखनऊ के कला चतुर्भुज और मालवीय हॉल (Arts Quadrangle and Malviya
Hall – जिसे पहले बेनेट हॉल कहा जाता था) में आए थे, जहां उन्होंने सभी को संबोधित किया
था।
संदर्भ:
https://bit.ly/39TDq6q
https://bit.ly/3ikhiXt
https://bit.ly/3op3mzy
https://bit.ly/3m8v9kM
https://bit.ly/3kWsVFS
चित्र संदर्भ
1. अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान गांधीजी का एक चित्रण (facebook)
2. महात्मा गांधी की मुलाकात पहली बार देश के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू से लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन में हुई। जिसको संदर्भित करता एक चित्रण (feeds.abplive)
3. गांधीजी के खड़ाऊ और चश्मे का एक चित्रण (wikimedia)
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