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इस दुनिया में विज्ञान के क्षेत्र में यदि कोई सबसे प्रसिद्ध समीकरण है, तो उसे E = mc 2 ,
माना जा सकता है। इस समीकरण से लगभग हर कोई परिचित है, जिसे जर्मनी (Germany) में
जन्मे भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाईन (Albert Einstein) द्वारा दिया गया था।इसे अल्बर्ट
आइंस्टाईन का विशेष सापेक्षता का सिद्धांत भी कहा जाता है, जो बताता है कि द्रव्यमान और
ऊर्जा एक ही भौतिक इकाई हैं और इन्हें एक दूसरे में बदला जा सकता है। समीकरण के
अनुसार किसी वस्तु के कुल द्रव्यमान को यदि प्रकाश की चाल के वर्ग से गुणा किया जाता है,
तो उस वस्तु की कुल ऊर्जा ज्ञात की जा सकती है। इस प्रकार इन तीनों राशियों के बीच एक
सम्बंध स्थापित होता है, जिसे E = mc 2 के रूप में निरूपित किया जाता है।
समीकरण में “E” किसी प्रणाली की ऊर्जा, “m” प्रणाली के द्रव्यमान और “c” प्रकाश की चाल
का प्रतिनिधित्व करते हैं।विश्वप्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिकविज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाईन द्वारा दिया
गया यह समीकरणशायद इतिहास का सबसे प्रसिद्ध समीकरण है, जिसने पदार्थ और
वास्तविकता के प्रति हमारे दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल दिया है। यदि इस समीकरण के
संदेश को समझें तो, इसका मतलब है कि एक प्रणाली का द्रव्यमान उसकी ऊर्जा को मापता है।
फिर भी कुछ ऐसी मौलिक चीजें हैं, जिनका यह समीकरण खुलासा करता है।
अगर हमc अर्थात
प्रकाश की चाल पर गौर करें, तो प्रति वर्ष एक प्रकाश वर्ष के रूप में रूपांतरण कारक C 2 , 1 के
बराबर है। तब हमें समीकरण E = m प्राप्त होगा, जिसका मतलब है, कि ऊर्जा और द्रव्यमान
समान हैं।
आइंस्टाईन के सबसे प्रसिद्ध समीकरण से तीन अर्थ प्राप्त किए जा सकते हैं। पहला यह कि
यदि कोई वस्तु या पिंड स्थिर हो तो उसमें भी एक ऊर्जा निहित होती है। हम यांत्रिक ऊर्जा,
रासायनिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा,गतिज ऊर्जा आदि प्रकार की ऊर्जाओं के बारे में जानते हैं, जो
गतिमान वस्तुओं में निहित होती हैं। लेकिन यदि कोई वस्तु गति नहीं कर रही है, तो उसमें भी
एक ऊर्जा निहित होती है, जो कि E = mc 2 से स्पष्ट है।दूसरा अर्थ यह है, कि द्रव्यमान को
शुद्ध ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। यह समीकरण हमें बताता है कि द्रव्यमान को
परिवर्तित करने से आपको कितनी ऊर्जा मिल सकती है।प्रत्येक 1 किलोग्राम द्रव्यमान को आप
ऊर्जा में बदल सकते हैं।इससे 9 × 10 16 जूल ऊर्जा प्राप्त होती है,जो कि 21 मेगाटन टीएनटी के
बराबर है।जब एक रेडियोधर्मी क्षयया एक परमाणु विखंडन या संलयन अभिक्रिया होती है, तब
जो द्रव्यमान हमें प्राप्त होता है, वह उस द्रव्यमान से कम होता है, जिसे हमने शुरूआत में लिया
था। नष्ट हुए द्रव्यमान की मात्रा वास्तव में ऊर्जा बन जाती है, तथा प्राप्त होने वाली ऊर्जा की
मात्रा को E = mc 2 द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। इस समीकरण का तीसरा अर्थ यह है, कि
ऊर्जा का उपयोग द्रव्यमान बनाने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि आप एक
फोटॉन और इलेक्ट्रॉन को पर्याप्त ऊर्जा के साथएक साथ तोड़तेहैं, तो आपको एक फोटॉनऔर
इलेक्ट्रॉन,और कणों की एक नई मैटर-एंटीमैटर (matter-antimatter) जोड़ी मिल जाएगी।दूसरे
शब्दों में, आपने दो नए विशाल कण बनाए होंगे।एक पदार्थ कण, जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन,
न्यूट्रॉन, आदि तथा एक एंटीमैटर कण, जैसे पॉज़िट्रॉन (Positron), एंटीप्रोटॉन (Antiproton),
एंटीन्यूट्रॉन (Anti-neutron), आदि। यह तभी संभव होगा यदि आप पर्याप्त ऊर्जा का उपयोग
करते हैं।
समय के साथ इस सिद्धंत पर कई शोध और प्रयोग किए गए।इस सूत्र की सहायता से रिएक्टरों
के अंदर न्यूट्रॉन्स के साथ यूरेनियम के परमाणुओं के संघटन से सम्बंधित प्रयोग किए
गए।परमाणु विखंडन में इस सूत्र का प्रयोग किया जाने लगा। इस सूत्र का इस्तेमाल परमाणु बम
के निर्माण में भी किया गया। यूं तो वैज्ञानिक लोककथाओं के अनुसार,अल्बर्ट आइंस्टाईन ने
1905 में इस समीकरण को तैयार किया था और एक ही झटके में, यह बता दिया था कि
सितारों और परमाणु विस्फोटों में ऊर्जा कैसे उत्सर्जित की जा सकती है। लेकिन वास्तव में
आइंस्टाईन न तो द्रव्यमान और ऊर्जा की तुल्यता पर विचार करने वाले पहले व्यक्ति थे,और न
ही उन्होंने वास्तव में इसे साबित किया था।
इस सिद्धांत की यात्रा की शुरूआत को देंखे तो यह
आइज़ैक न्यूटन (Isaac newton) के गति के सिद्धांतों से शुरू होती है। इसके बाद इलेक्ट्रॉन
की खोज करने वाले जे जे थॉमसन (J J Thomson) ने 1881में द्रव्यमान और ऊर्जा के सम्बंध
पर चर्चा की।1889 में अंग्रेजी भौतिक विज्ञानी ओलिवर हेविसाइड (Oliver Heaviside) ने यह
बताया कि प्रभावी द्रव्यमान m = (4⁄3) E / c 2 होना चाहिए।जर्मन भौतिक विज्ञानी विल्हेम
विएन (Wilhelm Wien) और मैक्स अब्राहम (Max Abraham) को भी समान ही परिणाम
मिला। <>1884 मेंजॉन हेनरी पोयंटिंग (John Henry Poynting) ने विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के लिए
ऊर्जा के संरक्षण पर एक प्रसिद्ध प्रमेय की घोषणा की।1904 मेंफ्रिट्ज हैसेनॉर्ल (Fritz
Hasenöhrl) ने “मूविंग बॉडीज़ में रेडिएशन के सिद्धांत” (theory of radiation in moving
bodies) पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि ऊष्मा अपने आप में समान द्रव्यमान वहन करती
है।इन सभी सिद्धांतों ने आइंस्टीन के समीकरण के लिए एक आधार का कार्य किया। इस प्रकार
इस समीकरण को आकार देने का श्रेय भले ही आइंस्टाईन को दिया जाता है, लेकिन इसके लिए
विभिन्न लोगों के वे सिद्धांत भी उत्तरदायी हैं, जिन्होंने इस समीकरण के लिए आधार का काम
किया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3i5ULgX
https://bit.ly/3zIDDUJ
https://bit.ly/2WeIAa1
चित्र संदर्भ
1. जर्मनी (Germany) में जन्मे भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाईन (Albert Einstein) द्वारा E = mc 2, का एक चित्रण (youtube)
2. इतिहास का सबसे प्रसिद्ध समीकरण है E = mc 2, जिसको दर्शाता एक चित्रण (Adobe Stock)
3.E = mc 2 के समीकरण में “E” किसी प्रणाली की ऊर्जा, “m” प्रणाली के द्रव्यमान और “c” प्रकाश की चाल का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसको संदर्भित करता एक चित्रण (1.bp)
4. विश्व भौतिकी वर्ष 2005 के आयोजन के दौरान ताइपे 101 पर द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता सूत्र प्रदर्शित किया गया था। जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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