नदियाँ किसी भी शहर के बसाव में प्रमुख भूमिका निर्वहन करती हैं परन्तु एक बार शहर बस जाता है तो नदी के विनाश की कहानी शुरू हो जाती है।
ऐसी ही कुछ कहानी है लखनऊ के प्रमुख गोमती नदी की। गोमती उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक है तथा इसकी कुल लम्बाई 900 किलो मीटर की है। यह नदी यहाँ के मैदानी भागों में जल की उपलब्धता कराती है। लखनऊ शहर को बसाते वक्त यह ध्यान में रखा गया था कि शहर नदी की शीतलता के करीब रहे और ऐसा किया भी गया और लखनऊ बड़ी खूबसूरती से बसाया गया।
आज वर्तमान में करीब तीन शताब्दियों के बाद ना वो बसाया हुआ लखनऊ शहर बचा है ना ही वो नदी जो कलकल कलरव करती बहा करती थी। अब बची है तो बस प्रदूषण की मार झेलती गोमती “नाला”।
गोमती का उद्गम पीलीभीत जिले के माधोटान्डा नामक स्थान से होता है। कई जिलों से होते हुए यह नदी गंगा में मिल जाती है।
गोमती नदी का विवरण पुराणों में भी किया गया है। पुराणों के अनुसार गोमती वशिष्ट मुनी की पुत्री है। ऐसी मान्यता है की एकादशी में गोमती में स्नान करने पर सारे पाप धुल जाते हैं। हिंदू ग्रन्थ श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार गोमती उन पवित्र नदियों में से हैं जो मोक्ष प्राप्ति का मार्ग हैं। पौराणिक मान्यता ये भी है कि रावण वध के पश्चात "ब्रह्महत्या" के पाप से मुक्ति पाने के लिये भगवान श्री राम ने भी अपने गुरु महर्षि वशिष्ट के आदेशानुसार इसी पवित्र पावन आदि-गंगा गोमती नदी में स्नान किया था एवं अपने धनुष को भी यहीं पर धोया था और स्वयं को ब्राह्मण की हत्या के पाप से मुक्त किया था।
आध्यात्म से जुड़ी यह नदी आज अपनी आखरी सासें ले रही है। लखनऊ में मात्र वर्षा ऋतु में इस नदी के बहाव को देखा जा सकता है अन्यथा यह नदी एक नाले के रूप में सिकुड़ जाती है। रोज कितने ही प्रकार के रसायन इस नदी में पड़ते रहते हैं। कपड़ों का रंग आदि इस नदी के जीवन के लिये खतरा बन रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नही जब गोमती, सरस्वती नदी की तरह मात्र एक कहानी बन जायेगी।