बाराबंकी जिले में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आने के पीछे क्या कारण है और इस समस्या का क्या कोई समाधान है?

नदियाँ
11-08-2021 07:58 AM
बाराबंकी जिले में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आने के पीछे क्या कारण है और इस समस्या का क्या कोई समाधान है?

लखनऊ से करीब 85 किलोमीटर दूर बाराबंकी जिले में प्रत्येक वर्ष घाघरा की बाढ़ कहर ढाती है। बाढ़ की वजह से कई गांव उजड़ जाते हैं। दरसल प्रत्येक वर्ष बरसात के मौसम में नेपाल द्वारा कुछ लाख क्यूसेक (Cusec- क्यूसेक प्रवाह दर की एक इकाई है, जिसका उपयोग ज्यादातर संयुक्त राज्य अमेरिका में जल प्रवाह, विशेष रूप से नदियों और नहरों के संदर्भ में किया जाता है।नदियों का प्रवाह या निर्वहन, यानी, प्रति इकाई समय में एक स्थान से गुजरने वाले पानी की मात्रा, आमतौर पर क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (Cubic feet per second) या क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड (Cubic metres per second) की इकाइयों में व्यक्त की जाती है।) पानी छोड़ा जाता है, जिस कारण तराई के हालात बिगड़ने लगते हैं।एक पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है, तो पानी कोसी, घाघरा, कमला बालन, बागमती और नारायणी सहित सभी प्रमुख उत्तर भारतीय नदियों में बह जाता है।नेपाल द्वारा छोड़े गये पानी की वजह से नदी का पानी खतरे के निशान से ऊपर पहुंच जाता है तथा विनाश का कारण बनता है।
नदी का पानी तराई के गांवों में पूरी तरह से पहुंच जाने के कारण यहां के लोगों को सुरक्षित स्थानों के लिए पलायन करना पड़ता है। बाढ़ के कारण गांवों को जोड़ने वाले मार्गों पर पानी भर जाता है जिससे लोगों को आवागमन में भी दिक्कतें होने लगती हैं। इन गांवों में करीब 35 हज़ार की आबादी बाढ़ की समस्या से प्रभावित होती है। बाढ़ से पीड़ित लोगों का कहना होता है कि पानी भर जाने से गांवों में रुकना संभव नहीं है जिससे उन्हें ऊंचे स्थानों में पलायन करना पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए लोगों ने बाराबंकी से बहराइच को सीधे जोड़ने के लिए एक पुल बनाए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि पुल बन जाता है तो इससे कई समस्याओं का निवारण हो सकेगा। हालांकि सरकार द्वारा इस समस्या का हल ढूँढने पर विचार किया जा रहा है, लेकिन पुल निर्माण की परियोजना बहुत बड़ी होने तथा इसमें लगने वाले अत्यधिक खर्च के कारण वे इस परियोजना को शुरू करने में विचार कर रह हैं। प्रशासन के मुताबिक पुल करीब तीन किलोमीटर का होगा और 10 किलोमीटर की सड़क बनेगी। ऐसे में एक निश्चित आबादी के लिए इतने रुपये खर्च करना कहां तक ज़रुरी है? लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यही पुल उद्योग और संसाधन से विहीन इस इलाके के लिए विकास की राह खोलेगा। पुल के न होने से इलाके का विकास रुका हुआ है। पुल नहीं है तो सड़क नहीं है, सड़क नहीं है तो काम-धंधा भी नहीं है। पढ़ाई-लिखाई में तो समस्या है ही साथ ही लोगों की शादियां होने में भी दिक्कतें आती हैं।
पुल के बन जाने से दोनों जिलों के लाखों लोगों को रोज़गार के नए साधन मिल जाएंगे और क्षेत्र विकास की ओर अग्रसर होगा। घाघरा, जिसे करनाली भी कहा जाता है, एक बारहमासी नदी है जो मानसरोवर झील के पास तिब्बती पठार से निकलती है।यह नेपाल में हिमालय से बहती है और भारत में ब्रह्मघाट पर शारदा नदी में मिल जाती है। साथ में वे घाघरा नदी बनाते हैं, यह गंगा नदी की एक प्रमुख उपनदी है। 507 किलोमीटर (315 मील) की लंबाई के साथ यह नेपाल की सबसे लंबी नदी है।बिहार के रेवेलगंज में गंगा के साथ संगम तक घाघरा नदी की कुल लंबाई 1,080 किलोमीटर है।यह आयतन के हिसाब से गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है और यमुना के बाद लंबाई के हिसाब से गंगा की दूसरी सबसे लंबी सहायक नदी है।
प्राचीन और वर्तमान प्रवाह के बीच की निचली भूमि में आमतौर पर चावल की अच्छी फसल होती है, लेकिन कभी-कभी पानी बारिश के बाद बहुत देर तक रहता है, जिस कारण ये फसलें सड़ जाती हैं, और वसंत फसलों को बोया नहीं जा सकता है। इसलिए नदी का उपयोग सिंचाई के प्रयोजनों के लिए नहीं किया जाता है। तहसील फतेहपुर का कुछ भाग तथा तहसील राम सनेही घाट का कुछ भाग इसके तट पर पड़ता है।

संदर्भ :-

https://bit.ly/3lOVg1D
https://bit.ly/3AwDMvo
https://bit.ly/3CtvO81
https://bit.ly/3xxJnzr

चित्र संदर्भ
1. उत्तरकाशी की बाढ़ में इमारतें और सड़कें बह गईं जिसका एक चित्रण (flickr)
2. चारों तरफ से बाढ़ से गिरे भू-क्षेत्र का एक चित्रण (flickr)
3. नदी में बने पुल के निकट स्नान करते लोगों का एक चित्रण (flickr)

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