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हमेशा से ही नयी पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी के लिए चिंता का विषय होती है, क्यों कि पुरानी पीढ़ी को यह
लगता है, कि विभिन्न कारकों के कारण नयी पीढ़ी या युवा पीढ़ी गलत मार्ग पर अग्रसर है।जॉर्ज ऑरवेल
(George Orwell), जो कि एक अंग्रेजी उपन्यासकार, निबंधकार, पत्रकार और आलोचक थे, के अनुसार
“हर पीढ़ी अपने आप को उसके पहले की पीढ़ी तथा उसके बाद आने वाली पीढ़ी से अधिक बुद्धिमान
समझती है, या होने की कल्पना करती है।" इस भावना को जुवेनोइया (Juvenoia) का नाम दिया गया
है। जुवेनोइया, एक भय की भावना है, जो विभिन्न कारकों की वजह से पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी के प्रति
होती है। यह युवाओं और समाज पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव का डर है।
दैनिक रूप से प्रकाशित होने वाले कई लेख, पत्र, इंटरनेट पोस्ट आदि पुराने समय और नए समय की
तुलना करते हैं, जो कि गंभीर और व्यंगात्मक दोनों रूपों में आश्चर्यजनक है। हम आजकल के बच्चों के
बारे में पर्याप्त जानकारी हासिल नहीं कर सकते हैं, और न ही यह जान सकते हैं, कि पुराने अच्छे समय
में बच्चा होना कितना अलग और अच्छा था। पीढ़ीगत लेबल मानव इतिहास को डरावना और गन्दा
दिखाने के बजाय व्यवस्थित और विवेकपूर्ण बनाते हैं। इसके अलावा वे उनका उपयोग करने वालों को
खुश करने के लिए एक सुखद संदेहास्पद प्रवृत्ति भी हैं।
जुवेनोइया शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले समाजशास्त्री डेविड फिंकेलहोर (David Finkelhor) द्वारा
किया गया था, जो उस अतिरंजित भय को दर्शाता है, जो बच्चों या नई पीढ़ी को प्रभावित करने वाली
चीजों के प्रति है।पुरानी पीढ़ी का मानना है, कि वर्तमान समय में आईफोन, इंटरनेट, रॉक संगीत आदि के
कारण दुनिया बच्चों या नई पीढ़ी के लिए उपयुक्त नहीं है, जैसे कि पहले हुआ करती थी। पीढ़ीगत संघर्ष
वास्तव में बहुत समय पहले से चला आ रहा है। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में, अरस्तू ने कहा था,कि
“युवाओं की गलतियाँ अधिकता और प्रबलता के कारण होती हैं, उन्हें लगता है कि वे सब कुछ जानते
हैं”। इसी प्रकार से 1900 की शुरुआत में रोमेन रोलैंड (Romain Rolland - एक फ्रांसीसी लेखक) द्वारा
भी यह शिकायत की गयी थी, कि नई पीढ़ी के युवा आनंद और हिंसक खेलों से अत्यधिक प्यार करते हैं,
इसलिए आसानी से ठगे जा सकते हैं।1871 की संडे मैगज़ीन में टेक्स्टिंग या मैसेजिंग के बारे में लिखा
गया था, कि अब हम कागज की एक वास्तविक शीट पर अच्छी बातें लिखने के लिए बैठने के बजाय,
तेजी से कई छोटे नोट्स या मैसेज भेज देते हैं।
नए लोग और समाज जिस दिशा में जा रहा है,उसे हमेशा कुछ अस्वीकृति के साथ देखा गया है।
हालांकि,यह पूर्वाग्रह निरर्थक प्रतीत होता है, क्यों कि लगातार चिंता करने के बावजूद भी 'बच्चे पहले की
तुलना में बेहतर हैं।“ उदाहरण के लिए उनके द्वारा नशीली दवाओं का उपयोग कम हो गया है, वे
व्यायाम करते हैं, उनकी गणित और लेखन दक्षता में वृद्धि हुई है, युवा लोगों द्वारा किए जाने वाले
अपराधों में कमी आई है, आदि। लेकिन इन सबके बावजूद भी जुवेनोइया मौजूद है,क्यों कि बच्चे एक
प्रजाति का भविष्य हैं, इसलिए यह मान लेना उचित है, कि प्रकृति एक प्रजाति में विशेषताओं का चयन
करेगी, जिससे कि वयस्क सदस्य उस माध्यम को प्राथमिकता देंगे जिसके साथ वे स्वयं बड़े हुए थे।
आखिरकार, माता-पिता,प्रजातियों के लिए एक प्रजनन सफलता थे। उन्होंने नए सदस्य बनाए।तो जो भी
विकल्प और प्रभाव उन्हें उस मुकाम तक लाए, वह काफी अच्छा रहा होगा। इसमें किसी भी प्रकार के
विचलन से समस्या उत्पन्न हो सकती है। तो उनका युवाओं के बारे में चिंता करना स्वाभाविक रूप से
चुना गया हो सकता है, लेकिन हमारा दिमाग अतीत को ठीक से याद नहीं रखता या यादों को निष्पक्ष
रूप से या तर्कसंगत रूप से लागू नहीं करता। इस तरह की सोच के कई दिलचस्प कारण हैं। पहला
कारण तो यह है, कि सामाजिक स्तर पर, युवाओं और उनके बारे में चिंताओं को अक्सर बढ़ा-चढ़ा कर
पेश किया जाता है, जिससे भय और अधिक प्रभावी हो जाता है।लोग पहले की अपेक्षा वर्तमान समय में
एक-दूसरे के अधिक संपर्क में हैं। हालांकि, किशोरों की समस्याओं में अक्सर वे लोग शामिल होते हैं,
जिन्हें किशोर पहले से जानता है, किंतु जब इस समस्या में ऐसे लोग भी शामिल हो जाते हैं, जिन्हें
किशोर नहीं जानता तब डर की भावना और भी अधिक बढ़ जाती है।जुवेनोइया का एक अन्य कारण
व्यक्तिगत भी है। जब पुरानी पीढ़ी युवा थी, तब भी वे कारक मौजूद थे, जिनके लिए वे आज चिंता
करते हैं। किंतु नई ज़िम्मेदारियाँ और अनुभव हमेशा उन खतरों के बारे में उन्हें अधिक जागरूक करते हैं
जो हमेशा से मौजूद थे।हम अतीत को अमूर्त रूप से याद करते हैं। इसलिए हमारे दिमाग में उन बातों
को रखने की अधिक संभावना होती है, जिन्हें हमने अतीत में महसूस किया था।जुवेनोइया प्राकृतिक है
तथा वास्तव में, इसकी एक स्वस्थ खुराक महत्वपूर्ण भी है।
नयी पीढ़ी के प्रति पुरानी पीढ़ी को जो डर या चिंता होती है, वह लगभग हर पीढ़ी में देखने को मिलती
है, फिर चाहे वह डर ऑटोमोबाइल के प्रभाव से सम्बंधित हो, या फिर समाज की नैतिकता पर रॉक एन
रोल के प्रभाव से या युवाओं की सामाजिकता पर किताबों के प्रभाव से। हालांकि ये सभी डर माता-पिता
के निराधार भय की तरह लगते हैं।अतीत में, जितना भी तकनीकी विकास हुआ उसने बच्चों को हानि
नहीं पहुंचाई, किंतु आधुनिक युग में जो तकनीकी विकास हो रहा है, वो युवाओं के लिए चिंता का विषय
बन सकता है।
उदाहरण के लिए एक स्मार्टफोन की लत नशे की लत के समान है। एक अध्ययन के
अनुसार कुछ युवाओं को जब स्मार्टफोन छोड़ने के लिए कहा गया, तो उनमें रक्तचाप और हृदय गति में
वृद्धि के साथ-साथ मानसिक अस्वस्थता जैसे लक्षण दिखाई दिए। अध्ययन में यह भी पाया गया कि
उन्होंने शब्द खोज जैसे संज्ञानात्मक कार्यों में भी खराब प्रदर्शन किया। जब से स्मार्टफोन के माध्यम से
बच्चे सोशल मीडिया के संपर्क में आए हैं, तब से उनके बीच अवसाद और आत्महत्या के मामलों में
वृद्धि हुई है।हालाँकि, इन सभी समस्याओं का कारण स्मार्टफ़ोन को नहीं बल्कि सोशल मीडिया को माना
जाना चाहिए। स्मार्टफ़ोन का दुरुपयोग ही सबसे बड़ी समस्या है।स्मार्टफोन को नुकसान के बजाय संपत्ति
के रूप में इस्तेमाल करने से उसका लाभ उठाया जा सकता है, इसलिए शायद हमें इस बारे में युवाओं
की चिंता करने से बचना चाहिए और अधिक प्रमुख समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।जुवेनोइया, को
एफेबिफोबिया (Ephebiphobia) भी कहा जाता है, तथा इसका राष्ट्रों के आर्थिक स्वास्थ्य पर गंभीर
प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे अनेकों शोध हैं, जो यह बताते हैं कि युवाओं का डर लोकतंत्र के स्वास्थ्य को
प्रभावित करता है।वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के बीच यह डर सार्वजनिक, सामाजिक, राजनीतिक,
धार्मिक और सांस्कृतिक भागीदारी को कमजोर कर रहा है।चूंकि यह स्वयं युवा लोगों को प्रभावित करता
है, इसलिए इसे सफल शैक्षणिक उपलब्धि और सफल सामाजिक अंतःक्षेप कार्यक्रमों के लिए एक बाधा के
रूप में पहचाना गया है। जुवेनोइया सामाजिक भेदभाव को भी जन्म देता है। इसका उपयोग वाणिज्यिक
क्षेत्र में आर्थिक लाभ कमाने के लिए किया जा रहा है। यह भावना स्कूलों में सहनशीलता को खत्म कर
किशोर अपराध को बढ़ावा दे रही है, इसलिए इसकी अधिकता उचित नहीं है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3xRYWCN
https://bit.ly/3j74qFr
https://bit.ly/3wTFNjM
चित्र संदर्भ
1. बच्चों पर तकनीकी प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
2. डेविड फिंकेलहोर (David Finkelhor) के जुवेनोइया पर विचार का एक चित्रण (linkedin)
3. मोबाइल फ़ोन के प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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