कोरोना के दौरान उभरे नए शब्‍दों का एतिहासिक परिदृश्‍य

ध्वनि 2- भाषायें
15-06-2021 12:16 PM
कोरोना के दौरान उभरे नए शब्‍दों का एतिहासिक परिदृश्‍य

भाषा भावाभिव्‍यक्ति का प्रमुख माध्‍यम है, वर्तमान समय में फैली महामारी के दौरान किसी के भी द्वारा बोला गया प्रत्‍येक शब्‍द मायने रखता है। लेकिन 1.3 बिलियन आबादी वाले भारत जैसे देश , जहां इतनी भाषाएं बोली जाती हैं, में कोविड-19 (COVID-19) से संबंधित जानकारी देना सच में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ हैं, और 19,500 से अधिक बोलियाँ मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं। इनमें से 121 भाषाओं के 10,000 से अधिक वक्ता हैं। सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भारतीय भाषाओं में हिंदी, बंगाली, तमिल और तेलुगु शामिल हैं, हालांकि सभी अकादमिक वैज्ञानिक कार्य अंग्रेजी में होते हैं।पानी की कमी और खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में बसे लाखों लोगों के साथ, भारत में किसी संक्रामक बीमारी के प्रभाव को कम करना हमेशा एक चुनौती रहा है। इसके अलावा स्थानीय भाषाओं में सटीक, सुलभ कोरोना वायरस (coronavirus) जानकारी लाना इस लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
भारत की राष्ट्रीय और राज्य सरकारें कई भारतीय भाषाओं में घोषणाएँ कर रही हैं और दिशानिर्देश जारी कर रही हैं, कई वैज्ञानिकों और समूहों जैसे राजमानिकम (Rajamanickam) ने भी स्वेच्छा से कोविड-19 (COVID-19) संसाधनों का अनुवाद करने और व्याख्याकार, तथ्य-जांच और धोखाधड़ी की जानकारी एकत्रित करने के लिए स्वेच्छा से काम किया है।
लोगों को उस भाषा और प्रारूप में जानकारी की आवश्यकता होती है जिसे वे स्वयं और अपने समुदायों को कोविड-19 से सुरक्षित रखने के लिए समझते हैं। इस जानकारी के बिना, उन्हें अक्सर खतरनाक गलत सूचनाओं के बीच छोड़ दिया जाता है।128 मिलियन से अधिक वक्ताओं के साथ अंग्रेजी, हिंदी के बाद भारत में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, जिसके 660 मिलियन से अधिक वक्ता हैं। दोनों अक्सर भाषा सेतु का काम करते हैं। लेकिन मातृभाषा संचार अपूरणीय है। ऑल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क (All India Peoples Science Network) के महासचिव पी. राजमणिकम ने कहा, “कोविड-19 के दो चरम बिन्‍दु हैं: या तो लोग बहुत आश्वस्त हैं कि उन्हें कुछ नहीं होगा, या वे अनावश्यक रूप से चिंतित हैं।” "इसके अलावा, बीमारी के बारे में गलत धारणाएं हैं और बदनामी का डर है।" हाल ही में गोमूत्र और गोबर जैसे असत्यापित उपचारों सहित सोशल मीडिया (social media) के माध्यम से अनेक अफवाहें और गलत सूचनाएं फैलाई गई, और संदिग्ध दावे किए जा रहे थे कि भारतीयों में बेहतर प्रतिरक्षा है। कुछ भ्रामक कहानियों के परिणामस्वरूप रोगियों और डॉक्टरों को कलंकित किया गया,कई कोविड-19 से संक्रमित लोगों ने आत्‍महत्‍या कर दी।
कम से कम एक मामले में, भाषा के उपयोग ने अनपेक्षित भ्रम पैदा किया है: मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पूर्वोत्तर भारत में एक व्यक्ति जिसे मास्क (Mask) खरीदने के लिए कहा गया था, वह मांस खरीदकर ले आया जो कि शब्‍द समानता के कारण भ्रमित हो गया। कोशकारों के लिए बहुत कम समय में एक शब्द के उपयोग में घातीय वृद्धि का निरीक्षण करना और उस शब्द का वैश्विक बोली पर हावी होना, यहां तक ​​कि अधिकांश अन्य विषयों को छोड़कर, एक दुर्लभ अनुभव होता है।जैसा कि कोविड-19 बीमारी के प्रसार ने अरबों लोगों के जीवन को बदल दिया है, इसने महामारी विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में विशेषज्ञ शब्दों को शामिल करते हुए सामान्य आबादी के लिए एक नई शब्दावली की शुरुआत की है, कोविड-19 की रोकथाम हेतु किए गए प्रयासों को क्रियान्वित करने के लिए कई नए शब्‍द लाए गए।यह शब्दावली का एक सुसंगत विषय है कि महान सामाजिक परिवर्तन महान भाषाई परिवर्तन लाता है, और यह वर्तमान वैश्विक संकट की तुलना में कभी भी सत्य नहीं हुआ है। पिछले कुछ हफ्तों में समाचार, सोशल मीडिया (social media) और सरकारी ब्रीफिंग (government briefings) और एडिक्ट्स (edicts) के माध्यम से हम जिन नए शब्‍दों से परिचित हो रहे हैं, वास्‍तव में वे उन्‍नीसवीं सदी से ही प्रचलित हैं, जैसे आत्म-अलगाव (Self-isolation) (1834 से दर्ज) और आत्म-पृथकता (self-isolating ) (1841), अब एक संक्रामक बीमारी को नियंत्रित करने या प्रसारित करने से रोकने के लिए स्‍वयं-लगाए गए अलगाव का वर्णन करते हैं, 1800 के दशक में अक्सर उन देशों पर लागू होते थे जिन्होंने खुद को बाकी दुनिया से राजनीतिक और आर्थिक रूप से अलग करना चुना था।इन उन्नीसवीं शताब्दी के शब्दों को आधुनिक उपयोग में लाया गया है, हाल ही में महामारी और विशेष रूप से वर्तमान संकट ने वास्तव में नए शब्दों, वाक्यांशों, संयोजनों और संक्षेपों की उपस्थिति देखी है जो जरूरी नहीं कि कोरोनावायरस महामारी के लिए गढ़े गए थे, लेकिन महामारी की शुरूआत के साथ ही इनका व्‍यापक उपयोग देखा गया।
इंफोडेमिक (infodemic) (सूचना और महामारी से एक पोर्टमैंटू शब्द (portmanteau word) (दो भिन्‍न- भिन्‍न शब्‍दों की ध्‍वनियों का कुछ भाग ले कर बनाया गया तीसरा शब्‍द)) संकट से संबंधित अक्सर निराधार मीडिया और ऑनलाइन जानकारी का प्रसार है। यह शब्द 2003 में सार्स (SARS) महामारी के लिए गढ़ा गया था, लेकिन इसका उपयोग कोरोनावायरस के आसपास की खबरों के वर्तमान प्रसार का वर्णन करने के लिए भी किया जा रहा है। इस वाक्‍यांश से तात्‍पर्य स्‍थान-में- आश्रय (shelter-in-place) से है, यह एक प्रोटोकॉल (protocol) है जो लोगों को उस स्थान पर सुरक्षा की जगह खोजने के लिए निर्देश देता है जब तक कि सब कुछ स्पष्ट नहीं हो जाता है, परमाणु या आतंकवादी हमले की स्थिति में 1976 में जनता के लिए एक निर्देश के रूप में तैयार किया गया था। लेकिन अब लोगों को खुद को और दूसरों को कोरोनावायरस से बचाने के लिए घर के अंदर रहने की सलाह के रूप में अनुकूलित किया गया है। सामाजिक दूरी , पहली बार 1957 में इस्तेमाल किया गया था, मूल रूप से एक शब्द के बजाय एक रवैया था, जो सामाजिक रूप से दूसरों से खुद को दूर करने के लिए एक अलगाव या जानबूझकर प्रयास का जिक्र करता था - अब हम सभी इसे संक्रमण से बचने के लिए अपने और दूसरों के बीच एक शारीरिक दूरी बनाए रखने के रूप में जानते हैं।
नए और पहले के अज्ञात संक्षिप्ताक्षरों ने भी हमारी रोजमर्रा की शब्दावली में अपना स्थान बना लिया है। जबकि डब्‍ल्‍यूएफएच (WFH) (working from home) (घर से काम करना) 1995 से अस्तित्‍व में है, हम में से कई लोगों के लिए यह संक्षिप्त नाम जीवन का एक तरीका बनने से पहले बहुत कम लोगों को पता था। पीपीई (PPE) ने अब लगभग सार्वभौमिक रूप से व्यक्तिगत सुरक्षा (या सुरक्षा) उपकरण के रूप में मान्यता प्राप्त कर ली है जो कि 1977 से ही अस्तित्‍व में था, किंतु यह पूर्व में शायद स्वास्थ्य देखभाल और आपातकालीन पेशेवरों तक ही सीमित था। पूर्ण वाक्यांश - व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (personal protective equipment) - 1934 से बहुत पहले का है। एक ऐतिहासिक शब्दकोश के रूप में, ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी (ओईडी) (Oxford English Dictionary (OED)) पहले से ही ऐसे शब्दों से भरा हुआ है जो हमें बताते हैं कि हमारे पूर्वज भाषाई रूप से उन महामारियों से कैसे जूझते थे जिन्हें उन्होंने देखा और अनुभव किया। जो सर्वप्रथम चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में उजागर हुए, जब 1347-50 का महान प्लेग और इसके अनुवर्ती, जिसने यूरोप (Europe) की अनुमानित 40-60 प्रतिशत आबादी को खतम कर दिया था, जिसका भय हमेशा बना रहेगा। इस प्रकार अन्‍य कई महामारियां आई जिन्‍होंने बड़ी मात्रा में तबाही मचाई।जैसे- जैसे दुनिया का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे बीमारियों और उनकी शब्दावली का भी प्रसार हुआ। जब मानवता अप्रत्याशित और चौंकाने वाले अनुभवों से जूझती है, तो मौजूदा शब्द परिणामी भय, दु:ख और आघात को अभिव्‍यक्‍त करने हेतु पर्याप्त लगने लगते हैं। मानवीय भाषाओं को नए भावों के लिए जगह बनानी होगी और मौजूदा शब्दों के दायरे का विस्तार करना होगा। पिछले महीने, ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी ने कोविड-19 (COVID-19) और महामारी से संबंधित कुछ अन्य शब्दों को शामिल करने के लिए एक असाधारण अपडेट किया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3vbRwIR
https://bit.ly/3gyOJEm
https://bit.ly/3gumXZj
https://bit.ly/3wurEJm

चित्र संदर्भ
1. महामारी संबंधित विभिन्न शब्द संग्रह का एक चित्रण (etimg)
2. भारत के राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा का एक चित्रण (wikimedia)
3. संचार त्रुटि दर्शाने वाला एक चित्रण (flickr)
4. संक्षिप्ताक्षरों के चार्ट का एक चित्रण (flickr)

पिछला / Previous

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.