बढती जनसँख्या के आर्थिक प्रभाव तथा महामारी से बच्चों की शिक्षा पर असर

नगरीकरण- शहर व शक्ति
14-06-2021 09:20 AM
बढती जनसँख्या के आर्थिक प्रभाव तथा महामारी से बच्चों की शिक्षा पर असर

जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास दोनों ही परस्पर विवादस्पद विषय रहे हैं। क्यों की अधिक आय वाले देशों में जनसँख्या का कम होना यहाँ पर सामाजिक और आर्थिक विषमतायें उत्पन्न कर सकता है, वहीं कम आय वाले देशों में बढती जनसँख्या देश के समग्र विकास को प्रभावित कर सकती है। हालाँकि दूसरे देशों में पलायन करने से दोनों प्रकार की समस्याएं हल हो सकती हैं, परंतु इसे किसी स्थाई समाधान के तौर पर नहीं देखा जाता। आर्थिक विश्लेषणों से पाया गया कि, प्रवास अथवा पलायन से राष्ट्रीय और वैश्विक आर्थिक असमानता उत्पन्न हो सकती है। यदि जनसंख्या वृद्धि और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि सामान दर से होती है, तब जनसँख्या बढ़ने के साथ-साथ आर्थिक विकास ग्राफ भी ऊपर की ओर उठेगा। परंतु यदि जनसख्या बढ़ने से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कमी देखी जाती है, तब यह आर्थिक विकास दर पर विपरीत असर करेगा।
अर्थशास्त्रियों द्वारा सैद्धांतिक तर्क दिए जाते हैं कि, जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि को धीमा कर देती है। और विपरीत एक अवधारणा यह भी है कि, जनसंख्या वृद्धि अधिक आर्थिक विकास को उत्तेजित करती है। अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस (1993) ने सर्वप्रथम और सबसे प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक को प्रतिपादित किया और दर्शाया कि, जनसंख्या वृद्धि का अच्छी जीवन शैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनके अनुसार जनसंख्या में खाद्य आपूर्ति की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ने की प्रवृत्ति है, अतः जनसँख्या वृद्धि में कमी होने पर खाद्यान और अन्य सुविधाएँ सुलभता से वितरित हो जाती हैं। दुनिया के दूसरे देशों की ही भांति भारत की विकास दर में पिछले कुछ दशकों में कमी देखी गई है, जिसका प्रमुख कारण देश में बढ़ता शहरीकरण तथा शिक्षित लोगों की बढती संख्या है। साथ ही यह भी अनुमान लगाए जा रहे हें कि, 2060 के दशक की शुरुआत तक देश की जनसँख्या 1.7 बिलियन तक पहुँच सकती है। जिसका सीधा प्रभाव पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में पड़ेगा। हालाँकि इन सभी अनुमानों के बीच संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2019 के मध्य में भारत की जनसख्या वृद्धी में कमी देखी गई है। रिपोर्ट यह बताती है कि, 2001 से 2011 की तुलना में, 2010 से 2019 के मध्य जनसख्या वृद्धी में दशमलव (.4) प्रतिशत की कमी देखी गई है। अनुमान है कि जल्द ही भारत की जनसँख्या 1.5 बिलियन के आंकड़े को छू सकती है। परंतु महिलाओं में परिवार नियोजन के स्तर पर बढ़ती जागरूकता को देखते हुए देश की जनसंख्या वृद्धी दर में कमी देखी जा सकती है। आधिकारिक सरकारी आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे कुछ अन्य राज्यों में औसत प्रजनन दर अभी भी 3 से ऊपर है, जो की देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंता का सबब बन सकती है। हालाँकि अखिल भारतीय (पूरे भारत में) औसत प्रजनन दर 2.3 के आसपास है। “किसी निश्चित आयु वर्ग की महिला द्वारा एक वर्ष के दौरान पैदा किए गए जीवित बच्चों की संख्या जो सामान उम्र की महिलाओं की औसत जनसंख्या के आनुपातिक हो प्रजनन दर कहलाती है ”। देश में जनसँख्या सम्बधित अनेक आंकड़ों को कोरोना महामारी ने या तो बदल दिया है, अथवा कुछ स्तर पर निश्चित ही प्रभावित किया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (Center for Science and Environment) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में देश की भावी पीड़ी को, महामारी से सर्वाधिक प्रभावित बताया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि महामारी के कारण 375 मिलियन बच्चे लंबे समय तक कम वजन, कुपोषण, आर्थिक हानि और शिक्षा गुणवत्ता में कमी जैसी परेशानियों का सामना कर सकते हैं। वही रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि, महामारी के कारण दुनिया भर के लगभग 500 मिलियन से अधिक बच्चों को स्कूली शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है, जिनमे से लगभग 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे केवल भारत में हैं।
देश के विद्यालयों में मध्याहन भोजन जैसी व्यवस्थाओं ने गरीब माता पिता को भी अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए प्रोत्साहित किया था, परंतु महामारी ने इस महत्वकांशी योजना को भी स्थगित कर दिया है। देश में लॉकडाउन के दौरान बच्चों के दाखिले और परीक्षाए रद्द करनी पड़ी, नए दाखिले स्थगित करने पडे, हालाँकि इस बीच ऑनलाइन कक्षाओं का चलन भी तेज़ी बड़ा। कुछ अनुमानों के अनुसार, केवल 24 प्रतिशत भारतीय परिवारों और केवल 38 प्रतिशत भारतीय स्कूली बच्चों की इंटरनेट तक पहुंच बढ़ी है। लेकिन शहरी भारत में जहां 42 प्रतिशत परिवार इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं, वहीं ग्रामीण भारत में केवल 15 प्रतिशत ही इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं अतः ऑनलाइन शिक्षा अभी भी स्थाई उपाय नहीं है । उक्त आंकड़ों से एक बात स्पष्ट रूप से उभरकर आती है, कि महामारी के दौरान अथवा बाद में, हमें देश की भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य और शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। सरकारों को इनके अनुरूप नई योजनायें निर्धारित करनी होंगी,ताकि वर्तमान भले ही चुनौती दे रहा हो परंतु देश का भविष्य निश्चित तौर पर उज्व्वल रहे।

संदर्भ
https://bit.ly/3iCgo9O
https://bit.ly/3czAz4E
https://bit.ly/3wo9j0I
https://bit.ly/3xlVQGX

चित्र संदर्भ
1. भारतीय स्ट्रीट किड्स का एक चित्रण (flickr)
2. मध्याहन भोजन करते बच्चों का एक चित्रण (flickr)
3. 1951 से 2014 तक भारत की आर्थिक विकास दर का एक चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.