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अपने दैनिक जीवन में हमारा सामना कई ऐसे लोगों से होता है जो यह कहते हैं कि “मैं दुनियादारी की चमक-धमक से
से बहुत दूर जाकर शांति और एकांत में अपना जीवन व्यतीत करना चाहता हूं”, और शायद आप में से भी कई लोग
ऐसे ही जीना पसंद करते हों। दरअसल इस प्रकार का रहन-सहन वास्तविक जीवन में भी संभव है जिसे ऑफ ग्रिड
लिविंग (Off Grid Living) कहा जाता है।
ऑफ ग्रिड लिविंग जीवन व्यतीत करने का एक ऐसा तरीका होता है, जहाँ आपका रहन-सहन और आपका घर अपनी
सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए पूरी तरह आत्मनिर्भर होता है। ऑफ ग्रिड इमारतों की डिजाइन की यह
विशेषता होती है कि यह किसी भी सार्वजनिक सुविधा का उपयोग किये बिना सभी ज़रूरी सुविधाओं से लैस होती हैं।
यह इमारते पूरी तरह से स्वावलंबी होती हैं जो बिजली पानी का प्रबंध खुद ही करती हैं “ऑफ ग्रिड” शब्द से लगता है
कि केवल बिजली के अभाव में जीवन जीना, परंतु इसके विपरीत इस जीवन शैली में में पानी, गैस और सीवर
सिस्टम जैसी सार्वजनिक सुविधाओं के लिए भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं।
यह जीवन शैली प्रायः पर्यावरण प्रेमियों
और उन लोगों के लिए है जो जीवन जीने की लागत को कम करना चाहते हैं। एक अनुमान के अनुसार संयुक्त राज्य
अमेरिका में लगभग 300,000 लोग इस प्रकार की जीवन शैली को अपनाते हैं, जिनमें से 70% से 75% लोग गरीबी
के कारण ऐसा करते हैं, इस शैली को अपने घर के अलावा दूसरे आवासीय समुदायों तक कर सकते हैं।
● बिजली का समाधान
इमारत में विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति के लिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा टरबाइन, माइक्रो हाइड्रो Micro-hydro
(“पानी की प्रचुरता वाले स्थानों में लगने वाला छोटा विद्युत संयंत्र जो जल की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
बदल देता है ”), और हाइब्रिड ऊर्जा प्रणाली (Hybrid energy systems) जो बिजली की सप्लाई को
नियंत्रित करती है का इस्तेमाल कर सकते हैं।
● पानी और सफ़ाई व्यवस्था
ताजे पानी के लिए आस-पास की धाराएँ, तालाब, नदियाँ और झीलें उपयोग में ली जा सकती हैं। कुएं और
झरने का पानी भी पिया जा सकता है, वर्षा जल संरक्षण भी किया जा सकता है। दूषित पानी को पीने योग्य
बनाने के लिए जैविक फ़िल्टर, कीटाणु रहित करने के लिए पराबैगनी प्रकाश और रासायनिक दवाओं
(क्लोरीन, क्लोरीन डाइऑक्साइड) का उपयोग किया जा सकता है। साथ ही पानी को उबालकर पीने का
उपाय भी किया जा सकते हैं।
कई लोगों के लिए विभिन्न परिस्थितियों में यह जीवन शैली बेहद फायदेमंद साबित हो सकती हैं, इस प्रकार के
जीवन जीने के कई फायदे हैं।
1. पर्यावरण अनुकूल बनना- इस तरह की जीवनशैली से आप दैनिक जीवन की लागत को बड़े पैमाने पर कम
कर सकते हैं। आपकी आवश्यकताओं को कम करने से निश्चित रूप से प्रकृति पर दबाव कम होगा।
2. समाज से दूरी- कई बार अनेक कारणों से लोग और समाज, मानसिक तनाव का कारण भी बन जाते है।
अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए भी इस दिनचर्या को सुझाया जाता है। साथ ही
आप स्वयं पर विशेष ध्यान दे सकते हैं, अपनी कमजोरियों और ताकत पर आत्ममंथन कर सकते हैं। सबसे
ज़रूरी यह है कि आप आत्मनिर्भरता के गुड सीख सकते हैं।
3. लागत कम करना- कभी-कभी हम अपनी जरूरतों को इस हद तक बढ़ा-चढ़ा देते हैं कि समय के साथ उनकी
पूर्ति करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए ऑफ-ग्रिड रहन-सहन करके आप अपनी जरूरतों को सीमित कर
सकते हैं। इन आवश्यकताओं में सार्वजानिक बिजली, पानी और गैर-आवश्यक उत्पादों और सेवाओं तक
आपकी पहुंच शामिल है।
पूरी दुनिया में ऐसे कई लोग और समुदाय हैं जो इस तरह रह रहे हैं जिससे समाज पर उनकी निर्भरता कम हो रही है।
हमारा देश के कुछ गाँव भी इसी तर्ज जीवन यापन कर रहे हैं।
1. अरना झरना (जोधपुर, राजस्थान) यह समुदाय रेगिस्तानी वनस्पतियों और जीवों के लिए एक अभयारण्य
के रूप में कार्य करता है। हालांकि इस गाँव में अधिकतर ग्रामीण समुदाय रहते हैं किन्तु विदेशी आगंतुकों के
लिए भी यहां आवास और स्थानीय भोजन भी उपलब्ध हैं।
2. ऑरोविले (Auroville) और साधना वन (पुडुचेरी, तमिलनाडु) इस इको गाँव (Eco Village) की स्थापना
1968 में एक फ्रांसीसी प्रवासी-मीरा अल्फासा (भक्तों को "द मदर" के रूप में जानी जाती है) द्वारा की गई
थी, जो भारतीय नव युग के दार्शनिक श्री अरबिंदो की लंबे समय के आध्यात्मिक साथी रही थीं । वर्तमान में
यहाँ दुनिया भर के लगभग 2,500 निवासियों का घर है।
3. गोवर्धन इको विलेज (पालघर, महाराष्ट्र) मुंबई से सत्तर मील उत्तर में, यह इको-आश्रम पश्चिमी घाट की
तलहटी, भारत की निचली तलहटी में स्थित है। इस्कॉन द्वारा संचालित - भारत के बाहर हरे कृष्ण
आंदोलन के रूप प्रचलित है, यहाँ से पर्यावरण संरक्षण संबंधी कई गतिविधियां चलाई जाती हैं।
4. केडिया गांव (जमुई, बिहार) 2014 में, ग्रीनपीस इंडिया द्वारा बिहारी गांव को एक पर्यावरण-कृषि समुदाय
के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से विकसित किया गया, और आज यह गांव पूरी तरह से रासायनिक
मुक्त है। ग्रामीण प्राकृतिक सामग्री से अपने स्वयं के कीटनाशक और उर्वरक बनाते हैं, और प्रत्येक घर में
एक बायोगैस संयंत्र पाया जाता है।
5. शाम-ए-सरहद गांव (भुज, गुजरात) यह गाँव विशेष तौर पर पारंपरिक मिट्टी-ईंट, फूस के घरों का उपयोग
करता है, और विभिन्न कार्यशालाओं की व्यवस्था भी करता है।
अनगिनत फायदों के साथ ही ग्रिड से बाहर होने के कुछ नुकसान भी हैं। जैसे जंगलों के निकट जानवरों का खतरा
और कई इलाकों में पानी की कमी, समाज से पूरी तरह कट जाना, अति आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
इत्यादि। कोरोना जैसी संक्रामक महामारी के समय में ऐसा एकांत जीवन किसी वरदान से कम नहीं होगा बशर्ते आप
में कठिन परिस्थितियों में और अपनी जरूरतों के अभाव में खुश और संतुष्ट रहने की क्षमता हो।
संदर्भ
https://bit.ly/2S2cNah
https://bit.ly/34BLLt7
https://bit.ly/3pbJKND
https://bit.ly/3z6eBjk
https://bit.ly/3g0QHNf
https://bit.ly/3ibKvF8
चित्र संदर्भ
1. जंगल में एकांत घर का एक चित्रण (unsplash)
2. छोटे पवन टरबाइन, सौर पीवी, ऊर्जा भंडारण का उपयोग कर माइक्रो-ग्रिड का एक चित्रण (wikimedia)
3. केतुरा में ईलॉट ऑफ ग्रिड विलेज का एक चित्रण (wikimedia)
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