मधुमक्खी पालने वाले कैसे अमीर हो रहे हैं और हमारी नन्ही दोस्त मधुमक्खी किस संकट में हैं?

तितलियाँ व कीड़े
13-05-2021 05:24 PM
मधुमक्खी पालने वाले कैसे अमीर हो रहे हैं और हमारी नन्ही  दोस्त मधुमक्खी किस संकट में हैं?

यह माना जाता है कि पृथ्वी पर 90% खाद्य पदार्थों के उत्पादन में मधुमक्खी का बहुत बड़ा योगदान है। जिसमें कई प्रकार के फल-सब्जियां शामिल हैं। बादाम, काजू, संतरा, पेठा, कपास, सेब, कॉफी आम, भिंडी, आड़ू, नाशपाती, काली मिर्च, स्ट्रॉबेरी, अखरोट, तरबूज आदि मधुमक्खियों द्वारा ही परागित होते हैं। लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं है कि मानव प्रजाति मधुमक्खियों का ऋणी है। असल में, मधुमक्खियां बड़े पैमाने पर कई लोगों के लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत हैं। यहाँ हम जानते हैं कि किस प्रकार मधुमक्खियों से जुड़े उद्पाद आय का एक प्रमुख साधन हैं? विश्व भर में मधुमक्खियों की लगभग 20,000 से अधिक प्रजातियां पायी जाती हैं, लेकिन उनमें से केवल 7 प्रजातियां ऐसी होती हैं जो मधु (शहद ) का उत्पादन करती हैं। भारत में इनकी पांच प्रजातियां ही व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण समझी जाती हैं। मधुमक्खियां शहद, मोम, पराग, प्रोपोलिस और शाही जेली जैसी खास वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। मधुमक्खी पालक अन्य किसानों तथा वैज्ञानिकों को रानी मधुमक्खी भी बेचते हैं, जो शोध तथा जिज्ञासावश इन्हे खरीदते हैं। कई व्यवसायी मधुमक्खियों का प्रयोग कर फल और सब्जी उत्पादकों को परागण सेवा भी उपलब्ध कराते हैं। कई लोग मधुमक्खियों को एक शौक के रूप में रखते हैं। लोग इन्हे आय के प्रमुख स्रोत तथा कुछ लोग एक निष्क्रिय आय के तौर पर भी लेते हैं।

चूँकि शहद के अनगिनत फायदों से हम सभी भली-भांति परिचित हैं, अतः आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की मधुमक्खी पालन कितना बड़ा फायदे का सौदा साबित हो सकता है। भारत अपने कुल शहद उत्पादन का 60% प्रतिशत हिस्सा अमेरिका, कनाडा, अफ्रीका और पश्चिम एशिया जैसे देशों को निर्यात करता हैं। वहीं अब जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी अपने देशों में शहद की मांग को पूरा करने के लिए चीन के बजाय भारत का रुख करने लगे हैं। निर्यातकों के अनुसार अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपये का कमजोर हो जाना इन शहद खरीदारों का भारत के प्रति आकर्षण का प्रमुख कारण है। साथ ही चीन का शहद भारत की तुलना में अधिक महंगा भी है। जानकारों के अनुसार भारत से शहद का निर्यात वर्ष 2018-19 में 19% बढ़कर सालाना 61,333.88 टन हो गया, जिसकी कीमत 732.16 करोड़ रुपये है।

प्राचीन समय से ही आजीविका चलाने के लिए मधुमक्खी पालन एक प्रमुख व्यवसाय रहा है। बेहद कम खर्चे में शुरू किये जा सकने वाले मधुमक्खी पालन व्यवसाय में कई बार अप्रत्याशित लाभ की सम्भावना रहती है। एक मधुमक्खी पालक को सर्वप्रथम सही समय देखकर अपना उद्योग शुरू करना चाहिए। अर्थात जब किसी भौगोलिक क्षेत्र में सीजन शुरू होता है, जहाँ फूलों की कोई कमी नहीं होती। क्यों कि शहद बनाने के लिए फूल ही सबसे जरूरी माध्यम हैं। सामान्यतः मधुमक्खी पालन की शुरुआत किसी भी मौसम में की जा सकती है, परन्तु वसंत ऋतु इनका पसंदीदा मौसम होता है। क्यों कि आमतौर पर मधुमक्खियां गर्म मौसम की शौकीन होती हैं, और इसी बीच फूलों का खिलना भी शुरू होता है।
मधुमक्खी पालन को एपिकल्चर (Apiculture) भी कहा जाता है। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए कुछ उपकरणों की आवश्य्कता पड़ती है, जिसमे मधुमक्खियों के छत्ते बनाने हेतु एक बॉक्स नुमा घर भी होता है। यह ज़रूरी है की शहद बनाने वाली अच्छी नस्लों की मधुमक्खियों का ही चुनाव किया जाय। अपने व्यवसाय की शुरुआत एक अथवा दो छत्तों के साथ करें, और अनुभव बढ़ने के साथ-साथ अपने व्यवसाय का भी विस्तार करें, साथ ही प्रत्येक 7 से 8 दिनों के भीतर मधुमक्खियों के छत्तों का निरिक्षण भी करते रहें।

मधुमक्खी पालन भारत में सबसे पुराने व्यवसायों में से एक है, परन्तु हालिया वर्षों में इसने व्यापक लोकप्रियता हासिल की है। वर्तमान समय में, भारत में लगभग 35 लाख मधुमक्खी कॉलोनियां मानी जा रही हैं। और मधुमक्खी पालन करने वाले लोगों तथा कंपनियों की संख्या बहुत तेज गति से दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। परन्तु वर्तमान में जिस प्रकार मनुष्य प्रजाति कोरोना वायरस महामारी का सामना कर रही है, ठीक उसी प्रकार से मधुमक्खियां अपने स्वयं की वैश्विक महामारी से जूझ रही हैं। एक परजीवी घुन जिसे वरोआ डिस्ट्रक्टर (Varroa destructor) कहा जाता है, यह घुन मधुमक्खी के छत्ते में उनके अंडो के साथ ही विकसित होता है। इस घुन के अपने पंख नहीं होते इसलिए यह मधुमक्खी के शरीर में चिपक जाता है, और जब इन परजीवी घुनों की संख्या अधिक हो जाती है, यह मधुमक्खी को ख़त्म कर देता है। शुरुआत में केवल यह एशियाई मधुमक्खियों एपिस सेराना (Apis cerana) की कॉलोनियों को संक्रमित करता था। परन्तु वर्तमान में यह परजीवी घुन पश्चिमी मधुमक्खियों एपिस मेलिफेरा (Apis mellifera) पर भी हावी हो चुका है। यह परजीवी संभवतः 1950 के दशक में एशियाई देशों से पश्चिमी मधुमक्खियों को संक्रमित करने लगा था। केवल ऑस्ट्रेलिया और दूरदराज के द्वीपों की मधुमक्खियों को छोड़कर आज यह विश्व के देश, क्षेत्र में फैल गया है। प्रतिवर्ष हमारी अनगिनत प्यारी मधुमक्खियां इन परजीवी घुनों के कारण मर रही हैं, यही समय है हमें अपनी महामरियों से लड़ने के साथ-साथ हमारी दोस्त मधुमक्खियों की भी सहायता करनी होगी।

संदर्भ
● https://bit.ly/3ui9auL
● https://bit.ly/3uiqeRt
● https://bit.ly/3uhNdvX
● https://bit.ly/2QQQVxS
● https://bit.ly/3tbYhJC

चित्र संदर्भ
1.मधुमक्खी, भारतीय मुद्रा तथा वरोआ डिस्ट्रक्टर का एक चित्रण (Pixabay,Pixabay,Wikimedia)
2.मधुमक्खी पालन का एक चित्रण (Pixabay)
3.मधुमक्खी पालन का एक चित्रण (Unsplash)
4.वरोआ डिस्ट्रक्टर का एक चित्रण(Wikimedia)

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