अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के साथ भयावह नरसंहार का साक्ष्य सिकंदर बाग

वास्तुकला 1 वाह्य भवन
12-05-2021 09:29 AM
अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के साथ भयावह नरसंहार का साक्ष्य  सिकंदर बाग

भारत के प्रथम स्वअतंत्रता संग्राम के दौरान कई लोग मारे गए जिसमें भारतीय एवं ब्रिटिश दोनों शामिल थे।1857 की लड़ाई की शुरूआत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) के शासन के तहत बहुत बड़ी आबादी को कुचल दिया गया और उनका शोषण किया गया। जिसके परिणामस्वतरूप दिल्ली, झांसी और लखनऊ के पुराने शहर में लोगों के द्वारा बड़ी संख्या में बंदूकें उठा दी गयीं।यहां ब्रिटिश रेजीडेंसी (British Residency), दिलकुशा महल जैसी स्मारक हैं जो आज भी अस्तित्वं में हैं। ऐसी ही एक स्मारक है सिकंदर बाग, जो अब लखनऊ का सिविल लाइन्स क्षेत्र (Civil Lines Area) है। अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह (आर. 1847 - 1856) के लिए एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में, विद्रोह से ठीक 10 साल पहले सिकंदर बाग बनवाया गया था। इस बाग को लगभग 1800 में नवाब सआदत अली खान द्वारा शाही बाग के रूप में तैयार किया गया था। सिकंदर बाग वाजिद अली शाह का एक सुव्यवस्थित उद्यान था, जिसका निर्माण उनकी ताजपोशी के तुरंत बाद, उनकी पसंदीदा रानी, उमराव के लिए किया गया था। सिकंदर महल के नाम से जाना जाने वाले उस समय उद्यान परिसर को बनाने में लगभग 5 लाख रुपये लगे थे, जो उस समय 137 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला था। प्लास्टर (plaster) के सांचों से सजी लखौरी ईंटों के उच्च दिवारों के अंदर, ग्रीष्माटवास, मस्जिद और बगीचा बना है, बगीचे के केन्द्र में छोटा सा लकड़ी का मंडप है, इसी मण्डप में कला प्रेमी नवाब वाजिद अली शाह द्वारा कथक नृत्य की शैली में प्रसिद्ध रासलीला का मंचन किया जाता था। यहीं पर मुशायरों और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन भी किया जाता था।कला प्रेमी नवाब वाजिद अली शाह द्वारा इन कलाओं को संरक्षण दिया गया था।

सिकंदर महल के तीन बुलंद प्रवेश द्वारों में से आज एक ही शेष बचा है। 1857 के विद्रोह के दौरान भारी बमबारी के बीच अन्य दो ध्ववस्तम हो गए थे। हालांकि, जो प्रवेश द्वार बचा हुआ है, वह बड़ी खूबसूरती से संरक्षित है, और लखनवी डिजाइन (Lucknowi design) का एक शानदार उदाहरण है। अंदर से इसे भित्तिचित्रों से सजाया गया है, जो शहर की प्रतिष्ठित चिकन कढ़ाई से मिलते जुलते हैं।ये तत्कालीन दरबारी चित्रकार काशी राम द्वारा तैयार किए गए थे। नवाब कलाकार की इस कला से काफी प्रभावित हुए और उन्हेंश सम्माैनित भी किया।प्रवेश द्वार का बाहरी हिस्सा कला और संस्कृति के इस शहर के महानगरीय इतिहास का प्रमाण देता है। इसकी वास्तुकला में भारतीय (Indian), फारसी (Persian), यूरोपीय (European) और चीनी (Chinese) डिजाइन (Design) के तत्व जिनमें मुख्य त: मेहराब, पेडिमेंट्स (pediments), छतरियां (chhatris), स्तंभ और पगोडा (pagodas)शामिल हैं। मुगलों के शासन काल के दौरान सम्माोननीय और लोकप्रिय मछली माही मारतीब (Mahi Maratib) की आकृति भी इसमें दिखाई देती है।
अफसोस की बात यह है कि विश्राम और मनोरंजन के लिए जो जगह बनाई गई थी, वह जल्द ही भयानक रक्तपात का गवाह बन गयी। 1856 में, नवाब को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कथित कुकृत्य और अराजकता के आधार पर पदच्युत कर दिया था, और अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। वाजिद अली शाह और उनके दल को कलकत्ता के मेटियाब्रुज(Metiabruz) में निर्वासित कर दिया गया था। लखनऊ विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक यह भी था, जो लोग नवाब के प्रति श्रद्धा रखते थे उन्हों ने इस विद्रोह में बड़ चढ़ कर हिस्सा लिया और लखनऊ इस विद्रोह का केंद्र बन गया। इस विद्रोह की मुखिया नवाब की दूसरी पत्नी बेगम हजरत महल थी।
स्थानीय ब्रिटिश अधिकारियों और ब्रिटिश आबादी ने लखनऊ रेजीडेंसी (Lucknow Residency) के अंदर खुद को बंद कर लिया, जहां पर भारतीय क्रांतिकारियों ने तीव्रता से घेराबंदी कर ली। भारतीय विद्रोह के दौरान लखनऊ में ब्रिटिश रेजीडेंसी (British Residency) की घेराबंदी के समय सिपाही विद्रोहियों ने सिकंदर बाग में शरण ली। सिकंदर बाग कमांडर-इन-चीफ सर कॉलिन कैंपबेल (Commander-in-Chief Sir Colin Campbell) के नियोजित मार्ग, जो घिरी हुई रेजिडेंसी को राहत देने के लिए बनाया गया था, के रास्ते में स्थित था। 16 नवंबर 1857 को ब्रिटिश फौजों ने बाग़ पर चढ़ाई कर लगभग 2,200 सिपाहियों को मार डाला था। लड़ाई के दौरान मरे ब्रिटिश सैनिकों तो एक गहरे गड्ढे में दफना दिया गया लेकिन मृत भारतीय सिपाहियों के शवों को यूँ ही सड़ने के लिए छोड़ दिया गया था। 1858 की शुरूआत में फेलिस बीटो (Felice Beato) ने परिसर के भीतरी हिस्सों की एक कुख्यात तस्वीर ली थी जो पूरे परिसर में मृत सैनिकों के बिखरे पड़े कंकालीय अवशेषों को दिखाती है। इस विद्रोह में ऊदा देवी का नाम उल्लेरखनीय है, इन्हों ने बड़ी वीरता के साथ सिकंदर बाग में ब्रिटिश सेना का सामना किया।अवध के एक दलित परिवार में जन्मीं, ऊदादेवी राष्ट्रवाद के लिए योगदान देने के लिए दृढ़ थीं, और उन्हों ने बेगम हजरत महल से मदद की गुहार लगाई। बेगम ने उनकी क्षमता को पहचानते हुए, उनको एक सर्व-महिला बटालियन (Battalion) बनाने में मदद की। इस प्रकार ऊदादेवी और उनके पति सशस्त्र प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। ऊदादेवी के पति की मौत सिकंदर बाग में हुई थी। अपने पति की मृत्युस के बाद ऊदादेवी ने अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी जिसके चलते उनकी इसी बाग में मृत्युम हो गयी।
समय के साथ बगीचे के बाहर से खोदकर निकाले गए तोप के गोले, तलवारें, ढालें और बंदूकों के हिस्से अब लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में प्रदर्शित किए जाते हैं। बगीचे की पुरानी दीवारों पर तोप के गोलों के निशान अभी भी उस हिंसक दिन की घटनाओं की गवाही देते हैं। आज, बाग का एक हिस्साा राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान के कार्यालय के रूप में उपयोग किया जा रहा है और दूसरा भाग एएसआई (ASI) के अंतर्गत सुरक्षित है, जहाँ अभी भी सिकंदर बाग के बचे हुए द्वारों में से एक को देखा जा सकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/33oIv3p
https://bit.ly/3o6e63x
https://bit.ly/3hcsK8a

चित्र संदर्भ:-
1.सिकंदर बाग का एक चित्रण (Wikimedia)
2 .बुलंद प्रवेश का एक चित्रण (staticflickr)
2 .लखनऊ रेजीडेंसी का एक चित्रण (Wikimedia)

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