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भारत आज कोरोना महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहा है। बेरोज़गारी तथा भोजन पानी की समस्याएं अपने चरम पर हैं। लॉकडाउन ज़रुरत और समस्या दोनों बन गया है। हालात यह हैं कि घरों में राशन, स्वास्थ्य, तथा अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की सप्लाई भी प्रभावित हुई है। ऐसे में मानवीय सहायता कार्यकर्ता (humanitarian aid workers) महामारी में मदद का हाथ बनकर कर आये हैं, और हर-संभव लोगों की सहायता कर रहे हैं।
मानवीय सहायता कार्यकर्ता ऐसे लोग होते हैं, जो युद्ध, बेघर, शरणार्थी और प्राकृतिक आपदाओं, और अकाल अथवा किसी वैश्विक महामारी जैसी समस्याओं के समय लोगों की मानसिक अथवा भौतिक रूप से सहायता करते हैं, तथा उन तक राहत पहुंचाते हैं।
ALNAP (मानवतावादी प्रणाली में काम करने वाली एजेंसियों का एक नेटवर्क) की गणना के उनके अनुसार दुनिया भर में मानवीय सहायता श्रमिकों की कुल संख्या 210,800 हैं। इनमे से लगभग 50% प्रतिशत लोग विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं से (NGOs), 25% प्रतिशत कर्मचारी रेड क्रॉस (Red Cross) तथा अन्य 25% प्रतिशत संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation UN ) से जुड़े हुए कार्यकर्ता हैं। 2010 में, यह जानकारी दी गयी की पिछले 10 वर्षों में मानवीय सहायता कार्यकर्ताओं की संख्या में लगभग 6% प्रति वर्ष की वृद्धि हुई। इन सहायताकर्मियों को कठिन परिस्थितियों, विषम वातावरण जैसी परिस्थितियों में लचीलेपन तथा जिम्मेदारी का भाव प्रदर्शित करना पड़ता है, ऐसी मुश्किल परिस्थितियों से सामना करने पर किसी भी आम व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप क्षति पहुंच सकती हैं, अथवा कोई गंभीर आघात लग सकता है।
भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने जो उत्पात मचाया है, उससे हम सभी भली-भांति परिचित हैं। अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं, पर्याप्त टेस्ट नहीं हो पा रहे हैं और न हीं अधिक लोगों तक टीके पहुँच पा रहे हैं। महामारी से मरने वालों की मृत्यु दर इतनी बढ़ चुकी हैं, की शमशानों, कब्रिस्तानों में भी जगह नहीं मिल पा रही हैं। बीती सर्दियों के मौसम में वायरस का प्रकोप थोड़ा कम होने पर सरकार द्वारा छूटें दी गयी। अभी थोड़ी राहत मिली ही थी की फिर से कोरोना की दूसरी लहर तांडव मचा रही है। इस संकट में जहां बड़े-बड़े अधिकारियों के हाथ पाँव फूल गए, वहीं लोगों को अपने-अपने स्तर पर राहत पहुँचाने के लिए आम नागरिकों समेत स्वयं सेवी संस्थाएं निजी कंपनियां और यहां तक कि फ़िल्मी जगत के लोग भी अपनी भागीदारी दे रहे हैं। और महामारी से असहाय पड़े लोगों की मदद कर रहे हैं। पूरे देश भर से लोगों द्वारा जरूरतमंदों सहायता करने के अनोखे तरीकों की घटनाएं सामने आ रही हैं।
1. झारखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र में अध्यापक का काम करने वाले 38 वर्षीय देवेंद्र को जब 1,400 किमी दूर दिल्ली से एक मित्र का फ़ोन आया, जिन्हे ऑक्सीज़न सिलेंडर नहीं मिल रहा था ऐसे में देवेंद्र ने किसी तरह सिलेंडर की व्यवस्था की, और अपने मित्र की मदद के लिए 24 घंटे लगातार गाडी चलाकर उस तक मदद पहुंचाई। आज वह एक रियल लाइफ हीरो हैं। संकट के इस समय में लोग सोशल मीडिया के माध्यम से मदद की गुहार लगा रहे हैं, और कई जरूरतमंद लोगों तक मदद पहुंचाई जा रही हैं।
2. कभी-कभी छोटे-छोटे प्रयास किसी बड़ी समस्या को हल कर देते हैं। ऐसी ही एक घटना आजकल बहुचर्चित है। विशाल सिंह, जो की निजी विद्यालयों की एक श्रृंखला के मालिक हैं, उनके 80 वर्षीय पिता को जब किसी भी अस्पताल में जगह न मिली तब उन्होंने अपने ही निजी विद्यालयों को सुसज्जित कोविड-19 देखभाल केंद्र बना दिया।
3. मुंबई के एक मध्यमवर्गीय जोड़े पास्कल और रोज़ी सलदान(Pascal and Rozy Saldanha) ने जरूरतमंद पड़ोसियों को ऑक्सीजन सिलेंडर खरीद कर देने के लिए अपने कीमती गहने बेच दिए।
4. भारत के सबसे बड़े परोपकारी और तकनीकी विशेषज्ञ अजीम प्रेमजी ने पिछले साल सीधे या अपनी कंपनियों के चैरिटी माध्यम से $1 बिलियन डॉलर का अनुदान दिया था। उन्होंने कोविड-19 अनुसंधान और राहत के लिए $150 मिलियन डॉलर भी दिए हैं। अन्य उद्यमियों ने मिशन ऑक्सीजन के लिए रात भर में लगभग $ 10 मिलियन डॉलर जुटा लिए। मिलियन डॉलर उद्देश्य विदेशों से जितनी संभव हो सके ऑक्सीजन खरीदना और उन्हें भारतीय अस्पतालों में भेजना है।
चूँकि ऐसे न जाने कितने ही समूह और लोग हैं जो विश्व के विभिन्न स्थानों पर अपने स्तर के अनुसार जरूरतमंद लोगों की सहायता कर रहे हैं। हम सभी जानते हैं की कोरोना महामारी किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करती, अतः उनके सामने भी अपने स्वास्थ को बनाये रखने की चुनौती हैं। साथ ही मानवीय सहायता कार्यकर्ताओं अनेक प्रकार की विषम परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है। जैसे आपदाओं में राहत कार्य की ज़िम्मेदारी, उनके सामने युद्ध जैसे क्रूर हालातों में अपने मानसिक स्वास्थ्य को सही रखने की चुनौती भी रहती है। वे युद्ध, विस्थापन, आपदा और बीमारी के बीच भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षा तथा अन्य लोगों को आशा देने का काम करते हैं। परन्तु वर्तमान में इन योद्धाओं का परीक्षण पहले की भांति नहीं किया जा रहा है, साथ ही यह कोविड-19 के दौरान पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के अभाव का भी सामना कर रहे हैं, परन्तु फिर भी वे दूसरों के जीवन को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं।
संदर्भ
https://econ.st/3ba8TCJ
https://bit.ly/3eoLQ9c
https://bit.ly/3uzdx4U
चित्र संदर्भ
1. स्वास्थ्य कर्मचारी का एक चित्रण (Wikimedia)
2. UNHCR कर्मचारी का एक चित्रण (staticflickr)
3 .स्वास्थ्य कर्मचारी का एक चित्रण (staticflickr)
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