कैसे अकेलापन मस्तिष्क या सोचने की क्षमता को प्रभावित करता है?

व्यवहारिक
02-03-2021 10:21 AM
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कैसे अकेलापन मस्तिष्क या सोचने की क्षमता को प्रभावित करता है?
भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अचानक आये इस कोरोना वायरस (Corona virus) के डर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाला है। इस बीच चिंता, डर, अकेलेपन और अनिश्चितता का माहौल बन गया है और लोग दिन-रात इससे जूझ रहे हैं। विश्व में फैली महामारी ने लोगों को अपने घरों में ही रहने के लिए विवश कर दिया है, जिसके चलते लोगों के बीच पाक कला और किताबों के प्रति रूचि बढ़ गयी है। एक नए अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 (COVID-19) लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों में अकेलापन और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य विकृति उत्पन्न हुयी है। 50 वर्ष से अधिक के 3,000 से अधिक लोगों पर किए गए अध्ययन में तनाव और चिंता का मुख्य कारण अकेलेपन को पाया गया। सामाजिक प्राणी के रूप में, हम अपने अस्तित्व के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। हमारा समुदाय हमें आपसी सहायता और सुरक्षा प्रदान करता है, हममें मानवता की वृद्धि एवं विकास में सहायता करता है। हम इस पृथ्वी में कई अन्य जीवों की भांति ताकतवर और तेज नहीं हैं और न ही हमारे हाथ किसी हथियार की तरह हैं फिर भी लम्बे समय से इस पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व बना हुआ है, इसका प्रमुख कारण सामाजिक सुरक्षा ही है, जो हमें इस समाज से प्राप्त होती है। एक सिद्धांत के अनुसार, अकेले रहने का दर्द हमें साहचर्य की सुरक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है, जो समूह सहयोग और सुरक्षा को प्रोत्साहित करके लोगों को लाभान्वित करता है।
परंतु हमने अक्सर देखा है कि बुजुर्ग लोग अधिकतर अकेलेपन का शिकार हो जाते है। हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि लोगों को अपने बुढ़ापे में खासकर 70 की आयु में, अकेलेपन का अनुभव हो सकता है। यह रिपोर्ट जो अनिवार्य रूप से वृद्ध लोगों में सामाजिक अलगाव के मुद्दे पर प्रकाश डालती है, आयरिश लॉन्गिटुडिनल स्टडी ऑन एजिंग (Irish Longitudinal Study on Ageing-TILDA) द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित की गई थी। इस शोध के अनुसार कोविड-19 लॉकडाउन ने वृद्ध लोगों में अकेलेपन, चिंता और अलगाव की भावनाओं को बढ़ा दिया है। पिछले शोधों से पता चला है कि लोगों को भावनात्मक संकट, उनके संज्ञानात्मक पतन और शारीरिक विकलांगता से बचाने के लिए सामाजिक संबंधों की आवश्यकता है। यह भी बताया गया कि अकेलापन और सामाजिक अलगाव व्यक्ति के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है। अलोन हेल्पलाइन (Alone’s helpline) के डेटा (data) से पता चलता है कि कोरोना के दौरान वयस्कों से ज्यादा वृद्ध लोगों में अकेलेपन महसूस किया। 9 मार्च से 5 जुलाई, 2020 के बीच की अवधि में राष्ट्रीय समर्थन लाइन (National Support Line ) पर 26,174 कॉल आईं। कुल कॉल में से 55 प्रतिशत कॉल 70 से अधिक उम्र वालो ने की थी, जिनमें से 75 फीसदी कॉल करने वाले अकेले रह रहे थे।
अकेलापन से हमारा मस्तिष्क भी प्रभावित होता है, एक व्यक्ति जो अकेलेपन से जुझ रहा है उसका मस्तिष्क या सोचने की क्षमता उस व्यक्ति से अलग होती है जो अकेलेपन का शिकार न हो, ऐसा शिकागो (Chicago) विश्वविद्यालय में संज्ञानात्मक और सामाजिक तंत्रिका विज्ञान केंद्र (Center for Cognitive and Social Neuroscience) के निदेशक जॉन कैसिओपो (John Cacioppo) कहते हैं। कैसिओपो अकेलेपन पर शोध करने वाले न्यूरोबायोलॉजी (Neurobiology) के प्रमुख विशेषज्ञों में से एक है। इस बात से कोई इनकार नहीं है कि अकेलापन एक जटिल भावना है, लेकिन इसे समझना भी उतना ही कठिन है। आपके मानसिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव बहुत स्पष्ट है। हर कोई इन्हें देख सकता है। शोध के अनुसार, अकेलापन नकारात्मक सोच और अवसाद का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। एक अन्य अध्ययन में, कैसिओपो अकेलापन महसूस कर रहे युवाओं और जो अकेलापन महसूस नहीं करते उन पर एक शोध किया। उन्होंने देखा कि जो लोग अकेले रहते है उनको नींद ठीक से नहीं आती है। वे अधिक अव्यवस्थित और रात के दौरान अधिक जगते है। परिणामस्वरूप, वे नींद के बाद तरोताजा महसूस नहीं करते हैं जिसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। कुछ साल पहले, कैसियोपो और उनके सहयोगी, लुईस हॉकले (Louise Hawkley) ने मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के एक संग्रह को संक्षेप में प्रस्तुत किया, जो अकेलेपन को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ता है। वे बताते है कि अकेलापन, नकारात्मकता, अवसादग्रस्तता सोच, सामाजिक खतरों के लिए संवेदनशीलता बढ़ाता है। परिणामस्वरूप अकेले रहने वाले लोग अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने, निर्णय लेने और लोगों के साथ बातचीत करने की क्षमता को धीरे–धीरे खोने लगते है। हमारा मस्तिष्क सामाजिक रिश्तों के लिए दो अलग-अलग तंत्रों से संरचित होता है। मस्तिष्क के वेंट्रल टेगमेंटल (Tegmental) क्षेत्र में डोपामाइन न्यूरॉन्स (Dopamine Neurons) सामाजिक संपर्क या रिश्तों से संतोष की भावना प्रदान करते हैं। वहीं मस्तिष्क के पृष्ठीय रैपहे नाभिक (Dorsal Raphe Nucleus) में डोपामाइन न्यूरॉन्स, सार्थक सामाजिक संबंध की कमी होने पर अकेलेपन की भावना पैदा करते हैं। पृष्ठीय रैपहे नाभिक के भीतर डोपामाइन न्यूरॉन्स तीव्र सामाजिक अलगाव के प्रति संवेदनशील होते हैं, और अकेलेपन जैसी स्थिति को संशोधित करने में सक्षम होते हैं। ये न्यूरॉन्स सामाजिक अलगाव के व्यक्तिपरक अनुभव के साथ-साथ सामाजिक संबंधों में फिर से जुड़ने के लिए प्रेरक ड्राइव (Motivational Drive) के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।
अकेलापन कथित तौर पर अलगाव (Isolation) की एक अप्रिय भावनात्मक प्रतिक्रिया है। ज्यादातर अकेलेपन को सामाजिक पीड़ा के रूप में भी वर्णित किया जाता है। अकेलापन न केवल तब महसूस होता है जब आप अकेले हो, बल्कि व्यक्तिपरक भावना के रूप में, अकेलापन तब भी महसूस किया जा सकता है जब आप अन्य लोगों से घिरे हो और तब अकेला महसूस कर रहे हो। अकेलेपन के विविध कारण हो सकते हैं, उनमें सामाजिक, मानसिक, भावनात्मक और पर्यावरणीय कारक शामिल हैं। शोध से पता चला है कि पूरे समाज में अकेलापन पाया जाता है। अधिकांश लोग अपने जीवन में कुछ बिंदुओं पर अकेलेपन का अनुभव करते हैं, और कुछ इसे अक्सर महसूस करते हैं। एक छोटी अवधि के लिये भावनात्मक के रूप से अकेलापन फायदेमंद हो सकता है, यह रिश्तों की मजबूती को प्रोत्साहित करता है। परंतु दूसरी ओर दीर्घकालिक अकेलापन व्यापक रूप से हानिकारक माना जाता है, यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य परिणामों के लिए एक महत्त्वपूर्ण जोखिम कारक है। अकेलापन लंबे समय से साहित्य में एक मुख्य विषय भी रहा है। 21वीं सदी में, अकेलेपन को एक सामाजिक समस्या के रूप में तेजी से पहचान मिलीं है, कुछ एनजीओ (NGOs) और सरकार दोनों ही इससे निपटने की कोशिश कर रहे हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/2O91ivw
https://bit.ly/3kGmjK3
https://bit.ly/2PcjaG7
https://bit.ly/2PeF7Ew
https://bit.ly/3uKZ7yK

चित्र संदर्भ:

मुख्य तस्वीर एक व्यक्ति को कोरोना के कारण अकेलेपन को दिखाती है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर में अकेलेपन को दिखाया गया है। (unsplash)
तीसरी तस्वीर में एक व्यक्ति को रेगिस्तान में अकेले चलते हुए दिखाया गया है। (unsplash)
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