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हाल ही में, आपने 'डार्क वेब' (Dark Web) शब्द का इस्तेमाल अक्सर साइबर अपराध (Cybercrime) से जुड़े मामलों में सुना ही होगा। चाहे वो पुणे का मामला हो, जहां पुलिस द्वारा हाल ही में गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं पर आरोप था कि वे प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) (CPI (Maoist)) के सदस्य हैं और डार्क वेब के माध्यम से अपना संचार कर रहे हैं, या कॉस्मोस बैंक (Cosmos Bank) धोखाधड़ी का, जहां 94 करोड़ रुपये को धोखाधड़ी से डार्क वेब की सहायता के साथ स्थानांतरित (transfer) किया गया था, या हाल में आपने सुना होगा कि सीबीआई ने उत्तर प्रदेश सरकार के एक इंजीनियर (engineer) राम भवन सिंह को 50 से ज्यादा बच्चों के यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया। सीबीआई (CBI) का आरोप है कि आरोपी राम भवन 10 साल से ज्यादा वक्त से ये अपराध कर रहा था। वह न सिर्फ बच्चों का यौन उत्पीड़न करता है बल्कि इसकी तस्वीरें और वीडियो डार्क नेट के जरिये दुनियाभर के पीडोफाइल्स (बच्चों का यौन शोषण करने वालों) (Paedophiles) को बेचता भी था। रामभवन चित्रकूट में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर (Junior Engineer) है। वैश्विक स्तर पर, डार्क वेब मादक पदार्थों की आपूर्ति, चाइल्ड पोर्नोग्राफी (child pornography), हथियारों के भुगतान और नेटफ्लिक्स (Netflix) जैसी स्ट्रीमिंग साइटों (Streaming sites) के लिए पासवर्ड और आपके बैंकों के साथ जुड़ा हुआ है, इन सभी उपरोक्त उदाहरणों से आप समझ ही गये होंगे कि इंटरनेट की ये अंधेरी दुनिया हमारे लिये क्यों खतरनाक है। तो चलिये यह भी जान लेते हैं कि आखिरकार ये डार्क वेब है क्या?
यह बात आपको जानकर हैरानी होगी, कि आम जनता जो इंटरनेट पर वेब साइट्स देखती हैं या कुछ जानकारी सर्च करती हैं, वह इंटरनेट का सिर्फ 4% हिस्सा है। वेब पर उपलब्ध सभी जानकारी का केवल 4% वास्तव में आम जनता के लिए सुलभ है। इसे सरफेस वेब (Surface Web) कहते हैं, यह इंटरनेट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला भाग है जिसे कोई भी व्याक्ति किसी भी समय और कहीं भी एक्सेस (Access) कर सकता है। इसके लिए किसी आज्ञा की जरूरत नहीं पड़ती है। सरल शब्दों में बताएं तो सरफेस वेब वह हिस्सा है जो गूगल (Google), बिंग (Bing) या फिर याहू (Yahoo) जैसे सर्च इंजन (Search engine) में सर्च करने पर हमें जानकारी देता है। जबकि इंटरनेट पर 90% सामग्री हम में से अधिकांश लोगों के लिए पहुंच से बाहर है। इंटरनेट का यह हिस्सा जो आम जनता के लिए अदृश्य है, को 'डीप वेब' (Deep Web) के रूप में जाना जाता है, इसमें निजी और गोपनीय डेटाबेस (Database) शामिल हैं, जिसमें ईमेल (E-mail), वित्तीय विवरण, चिकित्सा रिकॉर्ड और अन्य ऐसे दस्तावेज़ आदि आते हैं। दरअसल ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस वेबसाइट में प्राइवेट जानकारी सेव (Save) की जाती हैं या सरकारी डाटा (Government data) एक जगह से दूसरी जगह तक भेजा जाता है या फिर डेटाबेस (database) बना कर रखा जाता है।
अंत में आता है इंटरनेट का सबसे गहरा हिस्सा “डार्क वेब”, यह इंटरनेट की एक ऐसी जगह है जहां पर सभी गैर कानूनी काम होते हैं जैसे कि मादक पदार्थों की तस्करी, ड्रग्स बेचना, अवैध हथियारों का व्यापार, चोरी के क्रेडिट कार्ड बेचना, फर्जी पासपोर्ट (Fake passport) बनाना, हत्या की सुपारी देना, हैकिंग (Hacking), बैंक से पैसे उड़ाना इत्यादि। दुनिया भर में जिन किताबों पर प्रतिबंध लगाया गया है, वे यहां भी मिल सकती हैं। दुनिया के सबसे अच्छे हैकर्स (Hackers) भी यहां पाए जा सकते हैं। आंकड़ों के अनुसार, 2003 में नियमित नेट पर एक अरब पृष्ठों की तुलना में डीप वेब पर 500 बिलियन पेज थे। सामान्य वेबसाईटों के विपरीत यह एक ऐसा नेटवर्क जिस तक कुछ ही लोगों के समूहों की पहुँच होती है और इस नेटवर्क (Network) तक विशिष्ट ऑथराइज़ेशन प्रक्रिया (Authorization process), सॉफ्टवेयर (software) और कन्फिग्यूरेशन (configuration) के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है। इन तक पहुँचने के लिये विशेष ब्राउज़र (browser) जैसे टोर (TOR), फ़्रीन (Freenet), आई 2 पी (I2P) और टेल्स (Tails) का इस्तेमाल किया जाता है। डार्क वेब पर वेबसाइटों का एक बड़ा हिस्सा टॉम प्लेटफ़ॉर्म (Tom platform) पर है। वास्तव में 1990 के दशक में अमेरिकी सैन्य शोधकर्ताओं द्वारा खुफिया संचार की रक्षा के लिए इसे ऑनलाइन विकसित किया गया था। जिसके लिये ऑनियन रिंग (Onion Ring) शब्द का भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें एकल असुरक्षित सर्वर (server) के विपरीत नोड्स (Nodes) के एक नेटवर्क का उपयोग करते हुए परत-दर-परत डाटा का एन्क्रिप्शन (encryption) होता है, जिससे इसके उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता बनी रहती है।
इस अपराध को रोकने के लिये पश्चिम में अमेरिका (America) में कुछ एफबीआई (FBI) अधिकारी डार्क वेब पर अंडरकवर (Undercover) हो जाते हैं ताकि वहां चल रही अवैध गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। परंतु भारत में डार्क वेब को एक्सेस करना अवैध नहीं है क्योंकि टोर उपयोगकर्ता के आईपी पते (IP Address) और स्थान को छुपाता है और इसके परिणामस्वरूप यह जानना संभव नहीं होता है कि उपयोगकर्ता किस देश से डार्क वेब एक्सेस कर रहा है, जोकि कई सरकारी सुरक्षा गतिविधियों में मददगार साबित हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति अवैध पदार्थों या उपकरणों को खरीदता या बेचता नहीं हैं और अवैध साइटों से दूर रहता है, तब तक वो अपराधी नहीं माना जाता। लेकिन इसके नुकसान भी हैं, भारत में पिछले साल कई मामले सामने आए - चेन्नई और मुंबई में एलएसडी (LSD) को बिटकॉइन (Bit-coins) का उपयोग करके डार्क वेब पर खरीदा गया था। इस मामले में पुलिस ने मुंबई के पांच छात्रों को पकड़ा था, उन्होंने डार्क वेब के माध्यम से 70 लाख रुपये के 1,400 एलएसडी डॉट्स (LSD Dots) खरीदे थे।
वर्तमान में भारत की विडंमना यह है की टोर में गोपनियता बने रहने के कारण युवाओं का रूझान डार्क वेब की तरफ बढ़ गया है। टोर , फ़्रीन, आई 2 पी और टेल्स जैसे ब्राउज़रों पर ज्यादा से ज्यादा संख्या में लॉग इन (Login) कर रहे हैं। सेंसरशिप (Censorship) और हस्तक्षेप से मुक्त होने के कारण गोपनीयता के प्रति जागरूक उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है, इसने उच्च संख्या में भारतीय उपयोगकर्ताओं को आकर्षित किया है। परंतु इसके साथ साइबर अपराध भी बढ़ता जा रहा है। हालांकि सरकारें इसे रोकने के लिए स्थानीय कानूनों को और भी सख्त बनाने की कोशिश कर रही हैं। ऑक्सफ़ोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट (Oxford Internet Institute) के अनुसार भारत में टोर ब्राउज़र के दैनिक उपयोगकर्ता 5 लाख से 10 लाख के करीब हैं। यहां आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली डार्क नेट वेबसाइटें फेसबुक (Facebook) और द हिडन विकी (The Hidden Wiki) हैं। सर्च इंजन उपयोगों के अलावा टोर पर गोपनीयता के प्रति जागरूक नागरिक, व्यक्तिगत ब्लॉग्स (blogs), चर्चा मंचों, धार्मिक संवाद आदि में भाग लेते हैं, साथ ही साथ यहां पर पहचान गोपनीय के कारण वो अपने विचार खुले मन से व्यक्त करते हैं। यहां तक कि फेसबुक ने पिछले साल एक डार्क वेब साइट लॉन्च की, जिसे केवल टोर के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है, ताकि उपयोगकर्ता दमनकारी शासकों द्वारा ट्रैक (Track) होने से बच सकें।
हर दिन, दुनिया भर में लाखों पत्रकार, कार्यकर्ता, व्यवसायी तथा सैन्य और कानून प्रवर्तन विभाग इसे सुरक्षित और अधिक निजी इंटरनेट ब्राउज़िंग के लिए उपयोग करते हैं। डार्क वेब के कई वैध उपयोग हैं, परंतु जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यह अपराधियों को उनकी नापाक गतिविधियों को अंजाम देते समय उनकी पहचान छिपाने में भी मदद करता है। इसलिये इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दुनिया भर की कानून प्रवर्तन एजेंसियों (law Enforcement Agencies) ने वेब पर इन संभावित खतरनाक साइटों की निगरानी के लिए अपने साइबर-क्राइम डिवीजनों (Cybercrime divisions) के भीतर इकाइयों को समर्पित किया है जो अक्सर ड्रग ट्रैफिकर्स (Traffickers), आतंकवादियों और पीडोफाइल (Paedophiles) पर नजर रखते हैं। हालांकि इन अवैध गतिविधियों पर नजर रखना इतना भी आसान नहीं है क्योंकी लोग डार्क वेब और प्रॉक्सी सर्वर (Proxy Server) का उपयोग करते है और इस कारण डार्क वेब पर इन अवैध गतिविधियों के साक्ष्य जुटाना तुलनात्मक रूप से कठिन है लेकिन असंभव नहीं है। हालांकि भारत आज डार्क वेब पर अद्वितीय चुनौतियों कर रहा है परंतु अब हमें इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए कानूनों में संशोधन करने की आवश्यकता है। साइबर कानून विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की वकील कर्णिका सेठ का कहना है कि लोग प्रॉक्सी सर्वर से नकली आईडी का उपयोग कर सकते हैं। इस कारण आरोप साबित करना मुश्किल बनाता जा रहा है, आज हमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता है। कानून में केवल छह खंड हैं जो साइबर अपराध से संबंधित है, बदलते समय के साथ हमें साइबर अपराधों से निपटने वाली आपराधिक प्रक्रियाओं की एक संहिता की आवश्यकता है जो गृह मंत्रालय के अंतर्गत आती हो। इसके साथ ही हमें प्रशिक्षित पुलिस की जरूरत है जो केवल साइबर अपराध के लिए समर्पित हो।
इंटरनेट सदी के सबसे महत्वपूर्ण आविष्कारों में से एक है और इसे एक्सेस करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सभी चीजों की तरह ही डार्क वेब के अपने फायदे और नुकसान हैं और इसका उपयोग कैसे करना है ये केवल उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है।
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