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द पायनियर (The Pioneer) (अंग्रेजी अखबार) की एक रिपोर्ट (Report) के अनुसार भारत अपनी भौगोलिक स्थितिఀ के कारण मत्स्य पालन क्षेत्र में विश्व स्तर पर अग्रणी स्थान बना रहा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रायद्वीप है, जो 7,517 किलोमीटर तटरेखा, 200 समुद्री मील के EEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र), झीलों, नदियों और कई अन्य अंतर्देशीय जल निकायों से समृद्ध है। अपनी इसी विशेषता के कारण यह मछली उत्पादन में किसी भी अन्य राष्ट्र को आसानी से पीछे छोड़ सकता है। ग्रामीण भारत में एक बड़ी आबादी, विशेषकर युवा पीढ़ी को मत्स्य उद्योग के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
भारत में मछली की विभिन्न प्रजातियां पायी जाती हैं, इनमें से 83 से अधिक प्रजातियां सामान्यत: हमारे लखनऊ में ही मौजूद हैं, जिनमें से एक लोकप्रिय प्रजाति तिलपिया (Tilapia) है। तिलपिया मुख्य रूप से मीठे पानी की मछली हैं जो उथली धाराओं, तालाबों, नदियों, और झीलों में निवास करती हैं, खारे पानी में यह बहुत कम मात्रा में पायी जाती हैं। जलीय कृषि और एक्वापोनिक्स (aquaponics) में इनका विशेष महत्व है। तिलपिया ऑस्ट्रेलिया (Australia) जैसे गर्म-पानी वाले आवासों में इतनी तीव्रता से बढ़ती हैं कि उनके लिए एक समस्या बन जाती हैं इसके विपरित समशीतोष्ण जलवायु में यह पनप ही नहीं पाती हैं। तिलपिया संयुक्त राज्य अमेरिका (United States America) में 2002 में चौथी सबसे अधिक उपभोग की जाने वाली मछली थी। तिलपिया में ओमेगा 3 फैटी एसिड (Omega 3 fatty acids) और उच्च प्रोटीन (high protein) जैसे पौषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। तिलपिया की लोकप्रियता कम कीमत, आसानी से बनने और हल्के स्वाद के कारण बनी हुयी है।
भारत में तिलपिया की खेती तीव्रता से बढ़ रही है। मध्य पूर्व और अफ्रीका (Africa) से उत्पन्न हुयी तिलपिया की खेती अब अधिकांश देशों में सबसे अधिक लाभदायक व्यवसाय बन गई है। तिलपिया केकड़े के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय समुद्री भोजन बन गयी है, जिसके कारण इसकी खेती फल-फूल रही है। यह झींगा और सामन जैसी सबसे ज्यादा बिकने वाली प्रजातियों की सूची में शामिल हो गयी है। चीन (China) तिलपिया का सबसे बड़ा उत्पादक है। वर्तमान में लगभग 85 देशों में तिलपिया की खेती की जा रही है, और इन देशों में उत्पादित 98 प्रतिशत तिलपिया अपने प्राकृतिक आवासों के बाहर पाली जाती हैं। तिलपिया का पालन मौसमी है। यह केवल गर्म पानी में ही जीवित रह सकती हैं और प्रजनन कर सकती हैं। एक तिलपिया फार्म के लिए आदर्श पानी का तापमान 82-86 °F डिग्री (Degree) माना जाता है। यह मछली 55°F (10°C) डिग्री से नीचे के तापमान पर मरना शुरू कर देती हैं। इसलिए, भारत तिलपिया की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। तिलपिया खाने योग्य बनने से तीन महीने पहले ही प्रजनन शुरू करती हैं। इनकी प्रजनन दर बहुत उच्च होती है। एक वयस्क तिलपिया मादा मछली प्रति सप्ताह 100 फ्राइज़ (fries) तक का उत्पादन कर सकती है।
तिलपिया दुनिया की दूसरी सबसे अधिक खेती की जाने वाली मछली है और भारत में तिलपिया की व्यावसायिक खेती बहुत सीमित है। भले ही इस मछली को भारत में बहुत पहले (1952 में) लाया गया था किंतु 1959 में भारत की मत्स्य अनुसंधान समिति द्वारा तिलपिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हाल ही में कुछ राज्यों में कुछ शर्तों के साथ तिलपिया की खेती को मंजूरी दे दी गई है। आनुवंशिक रूप से सुधरी हुई तिलपिया खेती को कुछ दिशानिर्देशों के साथ अनुमोदित किया गया है। व्यवसायिक रूप से तिलपिया मछली पालन के लिए सब्सिडी (Subsidy) भी उपलब्ध करायी जा रही है। वर्तमान में गंगा नदी प्रणाली में, तिलपिया का अनुपात कुल मछली प्रजातियों का लगभग 7 प्रतिशत है। भारत में तिलपिया खेती के लिए इष्टतम तापमान 15°C से 35°C है। हालांकि, तिलपिया 10°C से 40°C तक जीवित रह सकती हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, यूरोप, अमेरिका और अन्य विकसित देशों में भारतीय समुद्री भोजन को पसंद किया जा रहा है, जिससे इनका निर्यात बढ़ रहा है। 2014 में भारतीय समुद्री खाद्य का निर्यात 5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। देश में गरीबी से त्रस्त और प्रोटीन की कमी वाले लोग मत्स्य पालन को आय का स्रोत बना सकते हैं। वर्तमान में अमेरिका (America) और चीन (China) के मध्य चलते व्यापारिक विवाद में चीन का अमेरिका में निर्यात घट गया है, भारत इस अंतर को भरने के लिए कदम बढ़ा सकता है। ट्रम्प प्रशासन (Trump Administration) द्वारा चीनी प्रजातियों पर 30 प्रतिशत टैरिफ (Tariff) लगाए जाने के कारण भारत अमेरिका में तिलपिया मछली के अगले बड़े निर्यातक के रूप में उभर सकता है। केविन एम फिट्जसिमोंस (Kevin M Fitzsimmons), (एरिज़ोना (Arizona) के कृषि और जीवन विज्ञान महाविद्यालय के निदेशक) ने कहा अमेरिका एक साल में लगभग छह लाख टन तिलपिया का आयात करता है और चीन से निर्यातित तिलपिया पर लगे टैरिफ ने अमेरिका की मांग को पूरा करने के लिए भारत और लैटिन अमेरिका सहित अन्य बाजारों की ओर रूख करने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत इस मांग को पूरा कर सकता है, यदि यह उत्पादन बड़ा देता है जो अभी 20,000 टन है। वैश्विक जलीय कृषि में तिलपिया की बिक्री 2019 में 13 बिलियन डॉलर थी और 2029 तक 25 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।
चीन 1।6 मिलियन टन के साथ तियापिया का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बना हुआ है। लेकिन बढ़ती उत्पादन लागत के कारण वहां उत्पादन स्थिर हो गया है। भारत का उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ तुलना में यह आंकड़ा घटा हुआ है। भारत को निर्यात से पहले, इस प्रजाति को सरकारी एजेंसियों (Government Agencies), समुद्री भोजन थोक विक्रेताओं, मछुआरा समुदायों आदि के समर्थन से घरेलू बाजार में इसे लोकप्रिय बनवाना होगा।
वर्तमान समय में फैली महामारी से विश्व का शायद ही कोई पहलू अछूता रहा हो इसने सभी जगह अपना प्रभाव डाला है, मत्स्य उद्योग भी उनमें से एक है। भारत में मत्स्य पालन खाद्य और पोषण सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। 90 लाख से अधिक सक्रिय मछुआरे अपनी आजीविका के लिए सीधे मत्स्य पालन पर निर्भर रहते हैं, जिनमें से 80% छोटे मछुआरे हैं। यह 14 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देता है और भारतीय जीडीपी (GDP) में 1।1 प्रतिशत योगदान देता है।
पूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) ने तटीय क्षेत्रों में मछुआरों की दिन-प्रतिदिन की कमाई को बहुत प्रभावित किया है। छोटे पैमाने पर मत्स्य पालन विशेष रूप से उपभोक्ताओं के लिए कम लागत पर प्रोटीन (Protein) के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करता है। यह हाशिए के समुदायों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और आहार में मछली की कमी से इन लोगों की पोषण सुरक्षा पर काफी प्रभाव पड़ा है। कोरोना (Corona) के चलते मछुआरों के लिए बाजार में मछली बेचने का समय घटा दिया गया है जिससे इन्हें पहले की अपेक्षा काफी कम दामों में मछली बेचनी पड़ रही है। उदाहरण के लिए पहले वे 500 रूपय प्रति किग्रा बेचते थे तो अब मात्र 300-350 प्रति किग्रा में बेचनी पड़ रही है। मत्स्य उद्योग में महिलाएं मुख्यत: मछली बेचने का कार्य करती हैं किंतु लॉकडाउन के कारण मछली पकड़ने की गतिविधि कम हो गयी है तो इससे इनका कार्य भी प्रभावित हुआ है। मछली उद्योग में लगे छोटे मजदूर अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लॉकडाउन से पहले मछली पकड़ने गए मछुआरे जब लॉकडाउन के दौरान तट पर लौटे तो उन्हें ना खरीददार मिले और न ही भण्डारण की सुविधा जिससे उन्हें मछलियों को पानी में ही बहाना पड़ा। 25 मार्च से लॉकडाउन के बाद से, मछली व्यापारियों को मछली खरीदने की अनुमति नहीं दी गई और इसलिए मछली के निर्यात विपणन में काफी हद तक गिरावट आई।
मछुआरों को बंदरगाह में केवल आधे घंटे के लिए प्रवेश करने की अनुमति है। आपूर्ति श्रृंखला अत्यधिक बाधित हुयी है। आइस-प्लांट वर्कर (Ice-plant workers), डीजल वर्कर (diesel workers) और युवा बेरोजगार हो गए हैं। लॉकडाउन ने अन्य मछली की गतिविधियों को भी प्रभावित किया है जैसे कि जाल की मरम्मत, नाव और इंजन (Engine) का नियमित रखरखाव। इससे फिशिंग क्राफ्ट (fishing crafts) और गियर (gears) जैसी उच्च लागत वाली संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचा है। कई मछली पकड़ने वाले परिवारों ने बताया है कि लॉकडाउन के कारण नाव और जाल की मरम्मत, नावों के निर्माण और विभिन्न मछली पकड़ने के प्रयोजनों के लिए लिए गए ऋण को चुकाने जैसी गतिविधियां भी गंभीरता से प्रभावित हुयी हैं।
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