समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
इस पृथ्वी पर उपलब्ध तमाम जीवित वस्तुओं में भावनाएं तथा बुद्धिमत्ता प्रदर्शित करने की समझ पायी जाती हैं चाहे वो कौवे हो जो कि जटिल समस्याओं का भी समाधान खोज लेते हैं या फिर व्हेल (Whale) मछली की जटिल संस्कृति। लेकिन जब हम पौधों की बुद्धिमत्ता के बारे में बात करते हैं तो यह अधिकांश लोगों के लिए एक आश्चर्य तथ्य होगा। हालांकि, हालिया अध्ययनों से यह साबित होता है कि पौधों में महत्वाकांक्षा होती है, परोपकारिता दिखाते हैं और कई जानवरों की प्रजातियों की तरह समानता को समझते हैं। क्या यह अध्ययन पौधों के बारे में हमारे नजरिए को बदल सकता है और खतरे में आए हुए आकर्षक वन्यजीवों के भांति ही हमें इनके संरक्षण के बारे में जागरूक करेगा?
हालांकि, इन वर्षों में, कई नए अध्ययनों से पता चलता है कि पौधे हमारे विचार से अधिक बुद्धिमान हैं। यह विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि पौधे एक ही स्थान में बने रहते हैं, वे उन जटिल विचार प्रक्रियाओं (जैसे एक जानवर अपने शिकारी से बचने के लिए भाग सकता है या शिकार पकड़ने के लिए अन्य स्थान में स्थानांतरित होना) में सक्षम नहीं होते हैं। लेकिन नेशनल वाइल्डलाइफ (National Wildlife) के हालिया लेख में, लेखक जेनेट मारिनेली (Janet Marinelli) ने इसके विपरीत कई विवरणों को पेश किया, जिनमें एक इटली (Italy) के वनस्पतिशास्त्री स्टेफानो मंचुसो यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरेंस (Stefano Mancuso University of Florence) के प्राध्यापक और प्लांट न्यूरोबायोलॉजी (Plant neurobiology) के अन्वेषक हैं ने बताया कि सिर्फ इसलिए कि पौधे हिल नहीं सकते या चल नहीं सकते का मतलब यह नहीं है कि वे बुद्धिमान नहीं है।
पेड़ों में नए वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि वे आपस में बात करते हैं और एक दूसरे पर निर्भर भी रहते हैं, वे एक दूसरे से जड़ों के माध्यम से संचार करते हैं तथा उनमे प्रतिस्पर्धा की भावना भी देखने को मिलती है। जमीन के नीचे स्थित जड़ पानी से लेकर पोषक तत्वों तक को एक दूसरे से साझा करती हैं। उनके जुड़ने को भूमिगत फंगल नेटवर्क (Fungal network) के रूप में जाना जाता है, इसे कुछ लोग वुड वाइड वेब (Wood Wide Web) के नाम से जानते हैं। जब भी किसी प्रकार का संकट आता है तथा सूखे का प्रकोप आता है तब पेड़ सूखे और बिमारी आदि के विषय में जड़ों के माध्यम से एक दूसरे को संकेत भेजते हैं, वैज्ञानिकों द्वारा इसे माईकोर्रहिज़ल नेटवर्क (Mycorrhizal network) का नाम दिया गया है। पेड़ों में पाई जाने वाली बारीक जड़ें एक संबंध बनाने के लिए अति सूक्ष्म कवकों के साथ जुड़ी रहती हैं जो कि पेड़ों और कवक के मध्य में एक सहजीवी संबंध बनाने का, या आर्थिक आदान प्रदान करने का कार्य करती है। उदाहरण के लिए, जब सवाना के मैदान में बबूल के पेड़ों को जिराफ खाने के लिए जाता है तो ऐसे में वे पेड़ एक गैस (Gas) का उत्सर्जन कर के एक प्रकार का सन्देश भेजता है जिससे आस पास के पेड़ एक ख़ास तरल द्रव्य का उत्सर्जन करते हैं जो बड़े शाकाहारी जीवों को मार सकने में सक्षम होते हैं। जब भी किसी पेड़ का एक पत्ता टूटता है तो वह पेड़ अपने घाव को भरने के लिए एक तरल पदार्थ का श्राव करता है, इसमें भी एक भिन्नता है जब भी कोई जीव पेड़ों के पत्तों को खाने के लिए पत्तों को चबाता है तो पेड़ अपने बचाव के लिए रसायन का श्राव करता है और जब मनुष्य तोड़ता है तब वे घाव भरने के लिए ही श्राव करते हैं।
पौधे न केवल तंत्रिका कोशिका जैसी गतिविधि व संचार में संलग्न होते हैं, वे गणितीय संगणना करते हैं, हमें देखते हैं और, जानवरों की तरह, जो परोपकारी रूप से कार्य करते हैं, अपने संबंधी के प्रति दया दिखाते हैं। वे खुद को पहचानने में सक्षम हैं और जानवरों और अन्य पौधों के साथ हवा में जड़ों के माध्यम से छोड़े गए सुगंधित सुगंध और रासायनिक यौगिकों के एक विविध प्रदर्शनों के माध्यम से संचार करते हैं। 2013 में, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) के जॉन इनेस सेंटर (John Innes Centre) में एंटोनियो स्काल्डोन (Antonio Scialdone) और उनके साथी वैज्ञानिक जो अरबिडोप्सिस थलियाना (Arabidopsis thaliana) का अध्ययन कर रहे थे, उन्होंने पाया कि सरसों परिवार में ये छोटे-छोटे खरपतवार रात में भुखमरी को रोकने के लिए कुछ जटिल अंकगणित करने में सक्षम होते हैं। उन्हें जीवित रहने के लिए स्टार्च (Starch) की आवश्यकता होती है, तो वे सूर्य के प्रकाश संश्लेषण द्वारा इसका निर्माण करते हैं। रात के दौरान, वे अपने पत्तों में छोड़े गए स्टार्च की मात्रा को मापते हैं, सुबह होने तक समय की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए एक आंतरिक घड़ी का उपयोग करते हैं, फिर अपने भोजन आरक्षित को अपेक्षित समय तक विभाजित करते हैं ताकि उनके पास सूरज उगने तक पर्याप्त स्टार्च मौजूद हो। वे अविश्वसनीय रूप से सटीक होते हैं: जब तक वे प्रकाश संश्लेषण को फिर से शुरू करते हैं, तब तक उनके लगभग 95 प्रतिशत स्टार्च का उपभोग हो गया होता है।
वहीं मरीनेली (Marinelli) के अनुसार, 2012 में टेल अवीव यूनिवर्सिटी (Tel Aviv University) में डैनियल चमोवित्ज़ (Daniel Chamovitz) - मन्ना सेंटर फॉर प्लांट बायोसाइंसेस (Manna Center for Plant Biosciences) के निदेशक और व्हाट आ प्लांट नौस (What a Plant Knows) के लेखक ने बताया कि पौधे हमें फोटोरिसेप्टर (Photoreceptors) (जो प्रकाश की विभिन्न तरंग दैर्ध्य का अनुभव करते हैं) के माध्यम से "देखते हैं"। वे जानते हैं कि हम कब उनके पास आते हैं और हमने कौन से रंग के कपड़े पहने हुए हैं। ये सभी तथ्य यह सिद्ध करते हैं कि पौधों में भी अन्य जीवों की तरह भावनाओं का विकास होता है, इसलिए यह हम मनुष्यो की जिम्मेदारी है कि हम इनके स्वस्थ रूप से फलने फूलने के लिए इन्हें प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करें। यदि पेड़ों की भावुकता में कमी आती है तो उनके संचार तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा जो इस वातावरण सहित समस्त जीवों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.