मानव सभ्यता के विकास का महत्वपूर्ण काल है, नवपाषाण युग

ठहरावः 2000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक
01-12-2020 10:22 AM
मानव सभ्यता के विकास का महत्वपूर्ण काल है, नवपाषाण युग

मानव सभ्यता का विकास विभिन्न युगों से होकर गुजरा है, जिनमें से नवपाषाण युग (Neolithic Age) भी एक है। नवपाषण युग, पाषाण युग का तीसरा तथा अंतिम युग है, जिसमें मानव विकास अपेक्षाकृत सबसे अधिक दिखायी देता है। पाषाण युग के अन्य दो युग, पुरापाषाण (Paleolithic) और मध्यपाषाण (Mesolithic) युग हैं। दुनिया के संदर्भ में नवपाषाण युग की शुरुआत की बात करें तो, यह 9,000 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था, लेकिन भारतीय संदर्भ में इस काल को 7,000 ईसा पूर्व से 1,000 ईसा पूर्व तक माना जाता है। नवपाषाण युग को मुख्य रूप से कृषि की शुरूआत या विकास के द्वारा पहचाना जाता है, लेकिन दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि का विकास अलग-अलग समय पर होने के कारण इस युग के शुरुआत की कोई निश्चित तारीख निर्धारित नहीं की जा सकी है। निकट पूर्व में, कृषि का विकास लगभग 9,000 ईसा पूर्व में हुआ, जबकि दक्षिण पूर्व यूरोप (Europe) में कृषि 7,000 ईसा पूर्व के आसपास विकसित हुई। यहां तक कि, एक विशिष्ट क्षेत्र के अंदर भी कृषि अलग-अलग समय के दौरान विकसित हुई। इस युग की शुरुआत की कोई निश्चित तारीख निर्धारित न हो पाने का एक अन्य कारण मिट्टी के पात्र भी हैं, जो कई क्षेत्रों में कृषि की शुरूआत से पहले ही उपयोग किये जा रहे थे।
नवपाषाण युग की प्रमुख विशेषताएं कृषि, पशुपालन, उपकरण, औजार, आवास, मिट्टी के पात्र, प्रौद्योगिकी, सामुदायिक जीवन आदि में आये महत्वपूर्ण परिवर्तन हैं। जहां पहले, लोग भोजन को एकत्रित किया करते थे, वहीं इस युग में वे अपने भोजन को उत्पादित करने लगे थे। हालांकि शिकार करना और मछली पकड़ना अभी भी जारी रहा। इस युग के लोगों द्वारा उगायी गयी प्रमुख फसलें रागी, कपास, चावल, गेहूं, जौं आदि थे। नवपाषाण युग में लोग प्रायः मिट्टी और ईख से बने घरों को बनाना सीख गये थे। कृषि के आगमन के साथ, लोगों को अपने अनाज को संग्रहित करने, खाना पकाने, पीने के पानी की व्यवस्था करने और तैयार उत्पाद को खाने के लिए पात्रों की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मिट्टी के पात्रों का निर्माण भी शुरू किया। इस युग के मिट्टी के पात्रों को ग्रे वेयर (Grey Ware), ब्लैक-बर्निश्ड वेयर (Black-burnished Ware) और मैट-इंप्रेस्ड वेयर (Matte-impressed Ware) के तहत वर्गीकृत किया गया है। यह युग अपनी मेगालिथिक (Megalithic - बड़े पत्थरों से बने स्मारकों से सम्बंधित) वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है। इसके अलावा लोगों का संपत्ति पर सामान्य अधिकार भी इस युग में दिखायी दिया। प्रौद्योगिकी के संदर्भ में नवपाषाण युग में उल्लेखनीय प्रगति हुई। जहां पहले लोग परतदार पत्थर के औजारों का उपयोग कर रहे थे वहीं, इस युग में वे पॉलिश (Polish) किये गये पत्थर के औजारों का उपयोग करने लगे। इस दौरान छोटे-छोटे पत्थरों से बने ब्लेड (Blades) का भी इस्तेमाल किया गया। लोगों ने जमीन खोदने के लिए पत्थर से बनी कुदालों और छड़ों का उपयोग किया तथा हड्डी से बने उपकरण भी उपयोग में लाये गये। इस काल में लोगों ने हथियार के रूप में कुल्हाड़ियों का इस्तेमाल किया, जो कि, विभिन्न आकार के थे। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि, इस युग में अधिकांश कपड़े जानवरों की खाल से बनाए गये होंगे, क्योंकि, उत्खनन में बड़ी संख्या में हड्डी और एंटलर पिंस (Antler Pins) प्राप्त हुए। हड्डी और एंटलर पिंस का इस्तेमाल शायद चमड़े को बांधने के लिए किया गया होगा। नवपाषाण युग के लोग पहाड़ी इलाकों से ज्यादा दूर नहीं रहते थे। वे मुख्य रूप से पहाड़ी नदी घाटियों, शैल आश्रयों, और पहाड़ियों की ढलानों पर निवास करते थे। उन्होंने विंध्य, कश्मीर, दक्षिण भारत, पूर्वी भारत, मेघालय (भारत के उत्तर-पूर्वी सीमांत) के उत्तरी इलाकों में और उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और इलाहाबाद जिले में निवास किया।
भारत में नवपाषाण युग के महत्वपूर्ण स्थल कश्मीर में बुर्जहोम और गुफकराल, बिहार में चिरांद, कर्नाटक में पिकलीहल, ब्रह्मगिरि, हल्लूर, मस्की आदि, तमिलनाडु में पय्यमपल्ली, आंध्र प्रदेश में उत्नूर, इत्यादि हैं। इन स्थलों से नवपाषाण युग से सम्बंधित आवास, उपकरण, औजार, कृषि, पशु पालन आदि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। उत्तर प्रदेश में स्थित कोल्डिहवा, नवपाषाण युग से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जो लखनऊ से बहुत दूर नहीं है। यह स्थल देवघाट के पास बेलन नदी की घाटियों में स्थित है, जहां से नवपाषाण काल की मानव सभ्यता के सबसे पुराने अवशेष प्राप्त किये गये हैं। कोल्डिहवा, चावल की खेती की शुरूआत के महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करता है। जबकि, अन्य पुरातात्विक स्थल गेंहू, बाजरा आदि की खेती के साक्ष्य प्रदान करते हैं, वहीं कोल्डिहवा एकमात्र ऐसा पुरातात्विक स्थल है, जहां चावल की खेती के प्रमाण पाये गये हैं। इस स्थल में पुरातत्वविदों को कुछ खंडित हड्डियों के प्रमाण भी मिले हैं, जो उस समय के लोगों द्वारा किये गये पशु पालन को इंगित करते हैं। कांस्य युग के आगमन के साथ नवपाषाण युग का अंत हुआ, किंतु इस युग ने व्यापक रूप से मानव सभ्यता के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।

संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Koldihwa
https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/the-neolithic-age-1430564528-1
https://www.ancient.eu/Neolithic/
https://en.wikipedia.org/wiki/Neolithic
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में भारत के विभिन्न पुरास्थलों से प्राप्त चित्र रचनाओं में शिकार के चित्रण को दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चित्र में पुरातात्विक स्थल महाडा से प्राप्त नवपाषाण युग में इस्तेमाल किये गए उपकरण को दिखाया गया है। (Needpix)
अंतिम चित्र में क्रिस्टल के भालों और नवपाषाण युग में खेती का चित्र दिखाया गया है। (Flickr)
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