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पूरे विश्व में ईसाई धर्म को मुख्य धर्मों में से एक माना जाता है। अपने शुरूआती दौर में ईसाई धर्म एकल निकाय के रूप में था, किंतु समय के साथ इससे सम्बंधित अनेकों मतों और विश्वासों की उत्पत्ति हुई और परिणामस्वरूप ईसाई धर्म में अनेकों संप्रदायों या शाखाओं का विकास हुआ। मेथोडिज्म (Methodism) भी इन्हीं संप्रदायों में से एक है, जो कि प्रोटेस्टेंट (Protestant) ईसाई धर्म से सम्बंधित है। मेथोडिज्म, जॉन वेस्ले (John Wesley) के जीवन और शिक्षाओं के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसके शुरूआती नेताओं या प्रचारकों में जॉर्ज व्हाइटफील्ड (George Whitefield) और जॉन के भाई चार्ल्स (Charles) वेस्ले शामिल थे। मेथोडिज्म की शुरूआत 18 वीं शताब्दी में इंग्लैंड (England) चर्च में एक पुनरूद्धार आंदोलन के रूप में हुई थी, जो बाद में एक अलग संप्रदाय के रूप में उभरा। ऐसा अनुमान है कि, आज पूरे विश्व में 800 लाख लोग मेथोडिज्म का अनुसरण कर रहे हैं। इनके मुख्य सिद्धांत नये जन्म, आश्वासन, धर्म, संपूर्ण पवित्रता, धर्मनिष्ठ कार्य और पवित्र-शास्त्र की प्रधानता पर आधारित हैं। मेथोडिज्म, का विश्वास है कि, ईसा मसीह ईश्वर के पुत्र हैं तथा उनका जीवन मानवता के लिए समर्पित हुआ। यह बीमारों, गरीबों आदि की सहायता पर जोर देता है तथा यह मानता है कि, लोगों की सेवा करना, अस्पतालों, अनाथालयों, स्कूलों आदि की स्थापना करना ही ईसा मसीह का आदेश है। मेथोडिज्म को अपनी समृद्ध संगीत परंपराओं के लिए जाना जाता है। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति ईसा मसीह के द्वारा बताये गये कार्यों और संदेशों का अनुसरण करके प्रायश्चित कर सकता है, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब व्यक्ति पूर्णतः प्रभु यीशु पर विश्वास करे। जॉन वेस्ले द्वारा बताये गये चार प्रमुख बिंदुओं के अनुसार, कोई भी व्यक्ति मुक्ति को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है।
वे लोग जो ईसा मसीह द्वारा मानवता के लिए दिये गये संदेशों का पालन करते हैं, प्रभु यीशु उन्हें हर संकट से बचायेंगे तथा यीशु पर विश्वास करने वाले लोगों को न्याय प्राप्त होगा। प्रत्येक ईसाई व्यक्ति इस जीवन में ईसाई पूर्णता को प्राप्त करने में सक्षम है, तथा उसे प्रभु द्वारा ईसाई पूर्णता को अपनाने की आज्ञा दी गयी है। भारत में यदि मेथोडिस्ट चर्च की शुरूआत की बात की जाए, तो इसे अमेरिकी मिशनरियों (Missionaries) द्वारा भारत में लाया गया था, जोकि पारंपरिक ब्रिटिश (British) पद्धति से अलग है। यहां के मेथोडिस्ट चर्च, संयुक्त राज्य अमेरिका में यूनाइटेड (United) मेथोडिस्ट चर्चों के साथ सम्बंधित हैं, जिसके सदस्यों की संख्या सैकड़ों से लेकर हजारों में है। 1856 में जब विलियम बटलर (William Butler) अमेरिका से भारत आए, तो अमेरिका से मेथोडिस्ट एपिस्कोपल (Episcopal) चर्च ने भारत में अपना मिशन शुरू किया। उन्होंने अपने मिशन के लिए अवध और रोहिलखंड को चुना, किंतु लखनऊ में आवासीय सुरक्षा प्राप्त न कर पाने की वजह से उन्होंने अपने मिशन का काम बरेली में करना शुरू किया। युद्ध के कारण स्वतंत्रता के पहले, बरेली में मिशन का कार्य पूरा नहीं हो पाया किंतु 1858 में लखनऊ के अधिकृत हो जाने से बरेली में मिशन का काम नए सिरे से शुरू हुआ। 1864 तक यह कार्य इस हद तक बढा कि, इसे भारत मिशन सम्मेलन (India Mission Conference) के नाम से आयोजित किया गया। अवध, रोहिलखंड, गढ़वाल और कुमाऊं में अतिरिक्त स्टेशनों (Stations) को भी अधिकृत कर लिया गया और 1876 तक मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च ने अपने प्रचार और शैक्षिक कार्यों को अन्य कार्यों के साथ स्थापित किया।
लखनऊ में स्थित लाल बाग मेथोडिकल (Lal Bagh Methodical) चर्च, मेथोडिज्म से सम्बंधित चर्च है, जो नुकीले गुंबदों और रिब्ड फॉल्ट्स (Ribbed faults) के साथ वास्तुकला की गोथिक (Gothic) शैली में निर्मित है। सन् 1870 में लखनऊ में जनसमूह का गठन करने के साथ विलियम बटलर ने अंग्रेजी सेवाओं की शुरूआत की। इस चर्च का निर्माण सन् 1875 में हुआ तथा आवश्यक निधि को स्थानीय सदस्यों और विदेशी मिशनरियों द्वारा एकत्रित किया गया। चर्च का निर्माण कार्य सन् 1877 को समाप्त हुआ। चर्च को पूर्व पश्चिम दिशा में क्रॉस (Cross) के आकार में गोथिक शैली में निर्मित किया गया है। प्रवेश के लिए तीन द्वार बनाए गये हैं, जिसके ऊपर ढालदार छत जैसी संरचना बनायी गयी हैं। इसके आगे के उत्तरी क्षेत्र में तीन मंजिला स्तम्भ है, जिसका शीर्ष भाग नुकीला है, तथा उस पर स्टील (Steel) से बना क्रॉस लगाया गया है। यह चर्च सरलता के साथ लालित्य का उत्कृष्ट उदाहरण पेश करता है।
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