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गणित एक ऐसा विषय है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप के हमारे जीवन के हर एक पहलू से जुड़ा हुआ है, हांलाकि कई लोग इसका नाम सुनते ही घबरा जाते हैं। गणित मात्रा, संरचना, स्थान, परिवर्तन आदि का समग्र अध्ययन है। इसकी कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, गणित एक ऐसा विषय है जिसका ना कोई आदि है और न ही कोई अंत। गणित को मूल रूप से शुद्ध गणित और अनुप्रयुक्त गणित के रूप में दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। शुद्ध गणित पूरी तरह से अमूर्त गणितीय अवधारणाओं का अध्ययन है। अनुप्रयुक्त गणितज्ञ गणित की वास्तविक दुनिया के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इंजीनियरिंग (Engineering), अर्थशास्त्र, भौतिकी, वित्त, जीव विज्ञान, खगोल विज्ञान - इन सभी क्षेत्रों में प्रश्नों का उत्तर देने और समस्याओं को हल करने के लिए मात्रात्मक तकनीकों की आवश्यकता होती है। शुद्ध गणित स्वयं गणित में उपजी उन समस्याओं का हल ढूंढता है, जिनका अन्य क्षेत्रों से सीधा सम्बन्ध नहीं है। कई बार समय के साथ-साथ शुद्ध गणित के अनुप्रयोग मिलते जाते हैं और इस प्रकार उसका कुछ हिस्सा प्रायोगिक गणित में आ जाता है। शुद्ध गणित के अंतर्गत, बीजगणित, ज्यामिति और संख्या सिद्धांत आदि आते हैं। शुद्ध गणित का विकास 20वीं शताब्दी में बहुत अधिक हुआ और इसके विकास में 1900 में डेविड हिल्बर्ट (David Hilbert) के द्वारा पेरिस (Paris) में दिये गये व्याख्यान का बहुत योगदान रहा।
शुद्ध गणित ग्रीक सभ्यता से ही अस्तित्व में है। शुद्ध गणित और अनुप्रयुक्त गणित के मध्य अंतर कर सर्वप्रथम ग्रीक गणितज्ञों द्वारा ही किया गया। प्लेटो (Plato) ने "अंकगणित", जिसे अब संख्या सिद्धांत कहा जाता है, और "लॉजिस्टिक" (Logistic), जिसे अब अंकगणित कहा जाता है, के बीच अंतर समझाने में मदद की। प्लेटो ने लॉजिस्टिक (अंकगणित) को व्यापारियों और योद्धाओं के लिए उपयुक्त माना, जिससे वे अपनी सेना का एक व्यवस्थित क्रम में उपयोग कर सकें और अंकगणित (संख्या सिद्धांत) को दार्शनिकों के लिए उपयुक्त मानते हैं, क्योंकि इन्हें परिवर्तन के समुद्र से उठकर सच्चाई के साथ खड़ा होना होता है।
19वीं शताब्दी के मध्य में सैडलीरियन चेयर (Sadleirian Chair) के पूर्ण शीर्षक में शुद्ध गणित के सेडलेइरियन प्रोफेसर (Sadleirian Professor) को शामिल किया गया गया। संभवत: यहीं से शुद्ध गणित के सिद्धान्त की स्वतंत्र रूप में शुरूआत हुई। गॉस (Gauss) (जर्मन गणितज्ञ और वैज्ञानिक) के काल के दौरान तक शुद्ध एवं व्यवहारिक गणित के मध्य कोई विशेष अंतर नहीं था। आगे चलकर विशेषज्ञों ने इनके मध्य अंतर निकालना शुरू किया।
20वीं शताब्दी की शुरुआत में गणितज्ञों ने स्वयंसिद्ध पद्धति अपनाई। ब्रिटिश गणितज्ञ, दार्शनिक और इतिहासकार बर्ट्रेंड रसेल (Bertrand Russell) द्वारा मात्रात्मक संरचना के संदर्भ में सुझाए गए शुद्ध गणित के तार्किक सूत्र अधिक लोकप्रिय हुए क्योंकि इसमें गणित के बड़े हिस्से स्वयंसिद्ध हो गए और इस तरह परिशुद्ध प्रमाण सरल मानदंड के अंतर्गत आ गए। शुद्ध गणित में बोर्बकी समूह (Bourbaki Group) के लिए वही उत्तरदायी होता है, जो सिद्ध होता है। शुद्ध गणितज्ञ एक मान्यता प्राप्त व्यवसाय बन गया था, जिसे प्रशिक्षण के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता था। इसके गुणों को देखते हुए इसे इंजनियरिंग (Engineering) शिक्षा के लिए उपयोगी माना गया। सामान्य इंजीनियरिंग समस्याओं के बारे में विचार, दृष्टिकोण, और बौद्धिक समझ एक प्रशिक्षण है, जो केवल उच्च गणित का अध्ययन कर सकता है।
शुद्ध गणित में प्रमुख केंद्रीय अवधारणा सामान्यता का सिद्धान्त है; शुद्ध गणित अक्सर बढ़ी हुई व्यापकता की ओर रुझान प्रदर्शित करता है। सामान्यता के उपयोग और लाभों में निम्नलिखित शामिल हैं:
1) प्रमेयों या गणितीय संरचनाओं को सामान्य बनाने से मूल प्रमेयों या संरचनाओं की गहरी समझ हो सकती है।
2) सामान्यता सामग्री की प्रस्तुति को सरल बना सकता है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे प्रमाण या तर्क दिए जाते हैं, जिनका पालन करना आसान होता है।
3) दोहरे प्रयास से बचने के लिए व्यक्ति सामान्यता का उपयोग कर सकता है, भिन्न-भिन्न स्थितियों को स्वतंत्र रूप से सिद्ध करने के बजाय सामान्य परिणाम सिद्ध किया जा सकता है, या गणित के अन्य क्षेत्रों से परिणामों का उपयोग किया जा सकता है।
4) सामान्यता गणित की विभिन्न शाखाओं के बीच संयोजन की सुविधा प्रदान कर सकती है। श्रेणी सिद्धांत गणित का एक क्षेत्र है जो संरचना की इस समानता की खोज के लिए समर्पित है क्योंकि यह गणित के कुछ क्षेत्रों में ही कार्य करता है।
शुद्ध गणित अनुप्रयोगों के बारे में नहीं है। यह "वास्तविक दुनिया" के बारे में नहीं है। यह तेजी से वेब ब्राउज़र (Web Browser), या मजबूत पुल या निवेश बैंक बनाने के बारे में नहीं है, जो विश्व अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में योगदान देते हैं। शुद्ध गणित पैटर्न, पहेली और अमूर्तता के बारे में है। यह विचारों के बारे में है। यह उन विचारों के बारे में है जो उन प्रारंभिक लोगों को पहले, बाद में, या सर्वप्रथम आते हैं। यह इस प्रश्न को ढूंढता है “यदि यह सच है तो और क्या सच है”? यह किसी भी विषय का गहनता से अध्ययन करता है।
आज दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां डेटा एनालिटिक्स (Data Analytics), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence (AI)) और मशीन लर्निंग (Machine Learning (ML)) स्किल्स (Skills) के लिए भारत आ रही हैं। लेकिन प्रसिद्ध गणितज्ञों का मानना है कि देश को स्वयं और दुनिया दोनों के लिए वास्तव में परिवर्तनात्मक और ठोस समाधान बनाने में सक्षम होने के लिए अपनी गणित क्षमताओं में सुधार करने की आवश्यकता है। प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी (Princeton University) में गणित के प्रोफेसर और फील्ड्स मेडल (Fields Medal) (गणित में सर्वोच्च सम्मानों में से एक) के विजेता, मंजुल भार्गव, कहते हैं कि भारत की चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करने की संभावना है, जिसके लिए हमारे पास मजबूत गणितीय प्रतिभा होने की आवश्यकता है।
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय (New York University) में गणित के प्रोफेसर श्रीनिवास वरदान इससे सहमत हैं। वह कहते हैं कि औद्योगिक क्रांति का समर्थन करने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिथ्म (Machine Learning Algorithm) में सुधार करने की आवश्यकता है, जिसके लिए गणित पर काम करना होगा। गणित के बिना, कोई भी कार्य केवल प्रयोगात्मक हो सकता है, यह कभी-कभी काम कर सकता है और कभी-कभी नहीं भी। केवल गणित आपको बताएगी कि यह किन परिस्थितियों में काम करेगा। एआई (AI) और एमएल (ML) इतने सरल और सस्ते हो गए हैं कि इनका उपयोग आज हर क्षेत्र में किया जा रहा है। चिकित्सीय क्षेत्रों में सुधार करने के लिए अत्यधिक प्रभावी चैटबॉट और वॉयस बॉट (Chatbot and Voicebot) बनाने की आवश्यकता है, जिससे स्वास्थ्य बीमा से संबंधित संपूर्ण प्रक्रिया को स्वाचालित किया जा सके। जिसके लिए गणित की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। भारतीय शहरों में गणित और एमएल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनुप्रयोग ट्रैफिक लाइट और सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों को प्रोग्राम करने में हो सकता है ताकि ट्रैफिक को कम किया जा सके और यातायात में सुधार किया जा सके। मौसम को लेकर की जाने वाली भविष्यवाणी उतनी ही प्रभावी होती है, जितनी अच्छी उसमें गणितीय मॉडलिंग (Mathematical Modelling ) की गयी हो। अत: गणितीय क्षेत्र में किया गया सुधार इन क्षेत्रों में प्रभावी सुधार लाएगा।
भारत ने शून्य का आविष्कार किया किंतु गणितीय क्षेत्र में यह वांछित ऊंचाई नहीं हासिल कर पाया, जिसके कई कारण थे। पहला पूर्व में कई वैश्विक घटनाओं का होना। 1970 के दशक में, शुद्ध और अनुप्रयुक्त गणित के बीच एक बड़ा अंतराल था। आगे चलकर फ्रांस ने इस पर सुधार किए किंतु भारत में इसके लिए कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए। दूसरा कारण स्वतंत्रता के बाद भारत का झुकाव इंजीनियरिंग की ओर हो गया, जिससे लोगों का रूझान गणित से हटने लगा। स्वतंत्रता के बाद हुई एक और गलती, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में शिक्षण और अनुसंधान का पृथक्करण था। भारत में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (Tata Institute of Fundamental Research (TIFR)), इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल साइंसेज (International Centre for Theoretical Sciences (ICTS)), भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute (ISI)) जैसे कुछ शानदार शोध संस्थान हैं। लेकिन ये उत्कृष्टता के छोटे समूह हैं। शेष भारत के अन्य शिक्षण क्षेत्र, राज्य विश्वविद्यालय में कोई शोध नहीं किए जा रहे हैं। हालांकि भारत अब इस क्षेत्र में सुधार करने की ओर अग्रसर हो रहा है।
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