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हमारे देश में पेड़-पौधों की एक विस्तृत श्रृंखला है, जिनमें से ड्रमस्टिक प्लांट (Drumstick Plant) भी एक है, जिसे सेंसियन, मुंगा, सहजन आदि नामों से जाना जाता है। यह पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके विभिन्न भागों में 300 से अधिक बीमारियों के लिए निवारक गुण हैं। इसमें 92 प्रकार के मल्टीविटामिन (Multivitamins), 46 प्रकार के एंटी-ऑक्सीडेंट (Anti-oxidant), 36 प्रकार के दर्द निवारक गुण और 18 प्रकार के अमीनो एसिड (Amino Acids) होते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के उपयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना तथा वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि आंकी गयी है। अपने बहुमूल्य गुणों के कारण यह मनुष्य के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। फिलीपीन्स, मेक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में इसका उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। मोरिंगा दक्षिण भारतीय व्यंजनों की विशेषता भी है। सहजन का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफ़ेरा (Moringa oleifera) है, जो तेजी से विकसित होने वाला सूखा प्रतिरोधी पेड़ है। व्यापक रूप से इसकी खेती युवा बीज की फली और पत्तियों के लिए की जाती है, जिनका उपयोग सब्जियों के रूप में और पारंपरिक हर्बल (Herbal) दवा के लिए किया जाता है। इसके अलावा जल शोधन में भी यह उपयोगी है। तेजी से बढ़ने वाले इस पर्णपाती पेड़ की लंबाई 10–12 मीटर तक हो सकती है, जिसका व्यास 45 सेंटीमीटर तक हो सकता है। पेड़ की छाल सफेद-ग्रे (Grey) रंग की होती है, जो मोटी कॉर्क (Cork) से घिरी होती है। युवा टहनियां बैंगनी या हरे-सफेद रंग की तथा फूल सुगंधित और उभयलिंगी होते हैं, जो पांच असमान, पतले घने, पीली-सफेद पंखुड़ियों से घिरे होते हैं। फूलों की लम्बाई लगभग 1-1.5 सेंटीमीटर और चौड़ाई 2 सेंटीमीटर तक होती है तथा रोपण के बाद पहले छह महीनों के भीतर फूल उगने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
मोरिंगा का पेड़ मुख्य रूप से अर्ध शुष्क, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में वृद्धि करता है। मृदा स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला को यह आसानी से सहन कर सकता है लेकिन थोड़ा अम्लीय (pH 6.3 से 7.0), अच्छी तरह से सूखी रेतीली या दोमट मिट्टी पसंद करता है। जलयुक्त मिट्टी में, इसकी जड़ें सड़ने लगती हैं। इसकी वृद्धि के लिए सूर्य की अत्यधिक ऊष्मा आवश्यक है, इसलिए ये ठंढ को बर्दाश्त नहीं कर सकता है। 380 वर्ग़ किलोमीटर के क्षेत्र से 120 लाख टन फलों के वार्षिक उत्पादन के साथ, भारत मोरिंगा का सबसे बड़ा उत्पादक है। दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में, मोरिंगा को घर के बगीचों में जीवित बाड़े के रूप में उगाया जाता है और स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। फिलीपींस और इंडोनेशिया में, इसे आमतौर पर इसकी पत्तियों के लिए उगाया जाता है, जो भोजन के रूप में उपयोग की जाती हैं। ताइवान में विश्व सब्जी केंद्र द्वारा, (World Vegetable Center) मोरिंगा की सक्रिय रूप से खेती भी की जाती है। इसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। यह जिस जमीन पर यह लगाया जाता है, उसके लिए भी लाभप्रद है। दक्षिण भारत में इसके साल भर फली देने वाले पेड़ होते है, जिसे सांबर में डाला जाता है। उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है। सर्दियां जाने के बाद फूलों की सब्जी बना कर खाई जाती है फिर फलियों की सब्जी बनाई जाती है। सहजन वृक्ष किसी भी भूमि पर पनप सकता है और इसे कम देख-रेख की आवश्यकता होती है। लखनऊ में भी यह पेड़ आसानी से पाया जा सकता है।
उष्णकटिबंधीय खेती में, मिट्टी का कटाव एक बड़ी समस्या है। इसलिए, मृदा उपचार को यथासंभव कम होना चाहिए। जुताई केवल उच्च रोपण घनत्व के लिए आवश्यक है। कम रोपण घनत्वों में, गड्ढों को खोदना और उन्हें मिट्टी के साथ फिर से भरना बेहतर है। मोरिंगा को बीज या कटिंग (Cuttings) से प्रसारित किया जा सकता है। प्रत्यक्ष रूप से बीज बोने की प्रक्रिया संभव है क्योंकि इसकी अंकुरण दर अधिक है। अधिक पत्ती उत्पादन के लिए, पौधों की दूरी 15 x 15 सेमी या 20 x 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से दवाएं तैयार की जाती हैं। सहजन में कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate), प्रोटीन (Protein), कैल्शियम (Calcium), पोटेशियम (Potassium), आयरन (Iron), मैग्नीशियम (Magnesium), विटामिन (Vitamin) A, C और B कॉम्पलैक्स (Complex) प्रचुर मात्रा में है। सहजन में दूध की तुलना में 4 गुना कैल्शियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है। पश्चिमी देशों में, सूखे पत्तों को पाउडर या कैप्सूल (Capsule) के रूप में आहार की खुराक के रूप में बेचा जाता है। फलियां असाधारण रूप से विटामिन C से समृद्ध होते हैं। विकासशील देशों में लोगों के आहार में कभी-कभी विटामिन, खनिज और प्रोटीन की कमी होती है। इन देशों में, मोरिंगा ओलीफेरा कई आवश्यक पोषक तत्वों का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकता है। यह एंटीऑक्सिडेंट में समृद्ध है तथा खून में शर्करा की मात्रा को कम करने में भी मदद कर सकता है। यह शरीर के भागों में आयी सूजन और कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) को कम करने में भी सहायक है। इसके उपयोग से शरीर को आर्सेनिक (Arsenic) विषाक्तता से बचाया जा सकता है। अस्थमा, कैंसर, कब्ज, मधुमेह, दस्त, दौरे, पेट दर्द, पेट और आंतों के अल्सर, आंतों की ऐंठन, सिरदर्द, हृदय की समस्याओं, एनीमिया (Anemia), गठिया और अन्य जोड़ों के दर्द, गुर्दे की पथरी, रजोनिवृत्ति के लक्षण, थायरॉयड (Thyroid) विकार आदि समस्याओं के लिए मोरिंगा अत्यंत लाभकारी है। मोरिंगा को कभी-कभी सीधे त्वचा पर रोगाणु-रोधक के रूप में लगाया जाता है।
इसके बीजों के तेल का उपयोग खाद्य पदार्थों, इत्र और बालों की देखभाल करने वाले उत्पादों में और मशीन रोगन के रूप में किया जाता है। मोरिंगा की उपयुक्त खुराक कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि उपयोगकर्ता की आयु, स्वास्थ्य और कई अन्य स्थितियां पर। इसके उपयोग से पहले चिकित्सक या अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श लेना आवश्यक है।
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