Post Viewership from Post Date to 07- Nov-2020 32nd Day | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2540 | 479 | 0 | 0 | 3019 |
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को लेकर विज्ञान में बहुत से सिद्धांत हैं, जो बहुत रोचक हैं, और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विज्ञान का एक अलग दृष्टिकोण भी है। इसी दृष्टिकोण ने विज्ञान की एक नयी शाखा कॉस्मोलॉजी (Cosmology) या ब्रह्मांड विज्ञान को जन्म दिया। यह खगोल विज्ञान की एक शाखा है जो, बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) से लेकर आज और भविष्य तक में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन करती है। यह शाखा ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विकास और अंत परिणाम का एक वैज्ञानिक अध्ययन है। लेकिन दुनिया में केवल भौतिक विज्ञानिक और ब्रह्मांड विज्ञानिक ही एकमात्र ऐसे नहीं हैं, जो इस रहस्यमय ब्रह्मांड में हमारे अस्तित्व की व्याख्या करने का प्रयास कर रहे हैं। क्या आप ये जानते हैं कि हमारे वेदों में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की बहुत स्पष्ट और सटीक व्याख्या की गयी है? धार्मिक ब्रह्माण्ड विज्ञान भी धार्मिक दृष्टिकोण से ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विकास और सम्भावित परिणाम या अंत का स्पष्टीकरण देता है। तो चलिए, जानते हैं कि वेदों के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुयी।
धार्मिक ब्रह्माण्ड विज्ञान में सृजन मिथक, आगामी विकास, वर्तमान संगठनात्मक स्वरूप और प्रकृति, तथा परिणामिक भाग्य पर विश्वास या मान्यताएं शामिल हैं। हमारे धर्म या धार्मिक पौराणिक कथाओं में विभिन्न परंपराओं का उल्लेख है, जो बताती है कि कैसे और क्यों सब कुछ इस तरह से है और सभी का अपना महत्व है। धार्मिक ब्रह्माण्ड विज्ञान हमारी दुनिया के संदर्भ में ब्रह्मांड की स्थानिक स्थिति का वर्णन करता है, जिसमें लोग आमतौर पर निवास करते हैं और कभी-कभी ये प्राचीन विचार आधुनिक ब्रह्मांड का इतनी अच्छी तरह से वर्णन करते हैं कि उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है। खास बात तो यह है कि विज्ञान की ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति की थ्योरी (Theory) भी आश्चर्यजनक रूप से वैदिक व्याख्या से मेल खाने लगी है। जैसा कि हम सभी जानते है कि बिग बैंग थ्योरी के अनुसार, एक अति संघनित मैटर (Matter) में विस्फोट होने से नक्षत्र, ग्रह और तारों का निर्माण शुरू हुआ। गैलेक्सियां (Galaxies) बनी और गैलेक्सियों के समूह से ब्रह्माण्ड बना। परन्तु वैज्ञानिकों के मन में एक सवाल लंबे समय से था कि अति संघनित मैटर को किसने बनाया और कैसे इसमें विस्फोट हुआ? अंतत: वैज्ञानिकों ने भी माना है कि ऐसा कुछ तो है ब्रह्माण्ड में जो हमारी समझ के परे है। कोई तो अदृश्य शक्ति है जिसके कारण ये ब्रह्माण्ड और हम अस्तित्व में है। इसी अदृश्य शक्ति को धार्मिक ब्रह्माण्ड विज्ञान या अलग-अलग धर्मों में भगवान, ईश्वर, अल्लाह या अन्य किसी नाम से जाना जाता है।
धार्मिक ब्रह्मांड विज्ञान में विभिन्न धर्मों के सन्दर्भ में अनेक विश्वास शामिल हैं, जिसमें से यहूदी और ईसाई धर्म में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि ब्रह्मांड का निर्माण ईश्वर ने किया है और यह ब्रह्मांड एक सपाट डिस्क (Spot Disc) के आकार का है, जोकि पानी पर तैर रहा है। जिसके ऊपर स्वर्ग है तथा नीचे अधोलोक है। मनुष्य अपने जीवन के दौरान पृथ्वी पर रहता है और मृत्यु के बाद अधोलोक चला जाता है, जो कि नैतिक रूप से तटस्थ या उदासीन है। परन्तु हेलेनिस्टिक समय में (Hellenistic Time -330 AD) यहूदियों ने ग्रीक विचार को अपनाना शुरू कर दिया, जिसके अनुसार अधोलोक दुष्कर्मों के लिए सजा का स्थान है तथा धर्मियों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
बौद्ध धर्म में, अन्य भारतीय धर्मों की तरह यह माना जाता है कि ब्रह्मांड का कोई शुरुआत या अंत नहीं है, यहाँ हर अस्तित्व शाश्वत है, और यह मानता है कि कोई भी रचनाकार ईश्वर नहीं है। बौद्ध धर्म ने ब्रह्मांड को अविरल और हमेशा प्रवाहमान माना है। यही ब्रह्माण्ड विज्ञान बौद्ध धर्म के समसरा (मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र) सिद्धांत की नींव है। इनके अनुसार सांसारिक अस्तित्व का पहिया या चक्र हमेशा चलता रहता है, पुनर्जन्म और पुनर्मृत्यु अंतहीन चक्रों में चलती ही रहती है, जिसमें जीव का बार-बार जन्म होता है और बार-बार मृत्यु। जैन धर्म में भी सृष्टि को अस्तित्वहीन बताता है यानी जो अनंत काल से विद्यमान है, जिसका कोई आरंभ या अंत नहीं है। चीनी पौराणिक कथाओं के कुछ संस्करणों के अनुसार पंगु (पहला जीवित प्राणी और सभी जीवों का निर्माता) ने यिन (Yin) को यांग (Yang) से अपनी विशाल कुल्हाड़ी से अलग कर दिया, जिस कारण यिन से पृथ्वी का निर्माण हुआ और यांग से आकाश बना और इन दोनों को अलग रखने के लिए पंगु उनके बीच खड़ा हो गया था। उसके मरने के बाद, वह सब कुछ बन गया अर्थात पूरा ब्रह्मांड ही बन गया।
इस्लाम धर्म में मान्यता है कि अल्लाह ने ही ब्रह्मांड को बनाया, जिसमें पृथ्वी का भौतिक वातावरण और मानव भी शामिल हैं। इसका मुख्य लक्ष्य आध्यात्मिक उत्थान के लिए ध्यान और चिंतन हेतु प्रतीकों की एक पुस्तक के रूप में ब्रह्मांड की कल्पना करना है। जिससे आत्मा अपनी आध्यात्मिक यात्रा में सच्ची स्वतंत्रता को प्राप्त कर सके। ब्रह्मांड विज्ञान के सन्दर्भ में कुरान के कुछ उद्धरण है, जिनसे बताया गया है कि ब्रह्मांड को परमात्मा ने शक्ति के साथ बनाया है। ब्रह्मांड विज्ञान पर कुरान से कुछ उद्धरण निम्नलिखित हैं।
“क्या उन लोगों ने जिन्होंने इनकार किया, देखा नहीं कि ये आकाश और धरती बन्द थे। फिर हमने उन्हें खोल दिया। और हमने पानी से हर जीवित चीज़ बनाई, तो क्या वे मानते नहीं?” 21:30 यूसुफ अली अनुवाद
"जिस दिन हम आकाश को लपेट लेंगे, जैसे पंजी में पन्ने लपेटे जाते हैं, जिस प्रकार पहले हमने सृष्टि का आरम्भ किया था उसी प्रकार हम उसकी पुनरावृत्ति करेंगे। यह हमारे ज़िम्मे एक वादा है। निश्चय ही हमें यह करना है।" 21:104 यूसुफ अली अनुवाद
इन उद्धरणों में आप साफ तरह से देख सकते है कि इस्लामी ब्रह्मांड बहुत छोटा और सरल है। यह पूरी तरह से दो घटकों पर आधारित हैं: आकाश और पृथ्वी। जिसे अल्लाह ने अपने प्रारंभिक रचनात्मक कार्य के रूप में बनाया है। इस्लामी ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं या अंतरिक्ष में सौर प्रणाली का कोई उल्लेख नहीं है। इसमें कहीं भी यह बात नहीं कही गई है कि पृथ्वी अन्य ग्रहों की भांति एक ग्रह है, या यह सूर्य या अन्य तारों से बहुत दूर हैं। कुरान ब्रह्मांड विज्ञान मुख्य रूप से उन बातों तक सीमित है जो हमें नग्न आंखों से दिखाई देता है।
हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान भी बौद्ध और जैन ब्रह्मांड विज्ञान की भांति यह मानता है कि ब्रह्मांड को चक्रीय रूप से बनाया गया और नष्ट किया जाएगा। सदियों से ही इन प्राचीनतम भारतीय वैदिक शास्त्रों में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन धार्मिक दृष्टि लिए हुए है, जिस पर आज विज्ञान पहुंचने की कोशिश कर रहा है, हिंदू वैदिक ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, ब्रह्मांड की कोई शुरुआत नहीं है, क्योंकि इसे अनंत और चक्रीय माना जाता है। वैदिक साहित्य में कई ब्रह्माण्ड विज्ञान की कल्पनाएँ शामिल हैं, जिसमें से एक नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10वें मंडल का 129वां सूक्त है। इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीकता से बताता है। इसी कारण दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ है। नासदीय सूक्त में कहा गया है कि: इस जगत की उत्पत्ति से पहले ना ही किसी का आस्तित्व था। इस जगत की शुरुआत शून्य से हुई। उस समय बस एक अनादि पदार्थ था, मतलब जिसका आदि या आरंभ न हो और जो सदा से बना चला आ रहा हो।
हिंदू ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, कई ब्रह्मांड हैं, और प्रत्येक ब्रह्माण्ड 4.32 बिलियन वर्षों तक अस्तित्व में रहता है। इसे कल्प या ब्रह्मा का दिन कहा जाता है। समय को आगे मन्वन्तर में विभाजित किया है। पुराणिक हिंदू ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, 14 मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र तथा वैदिक समयरेखा के नौसार है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है, जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं, जब ब्रह्मा अपने रचनात्मक कर्तव्यों से आराम लेते हैं और ब्रह्मांड एक अव्यक्त अवस्था में रहता है। इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टि रचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फिर संहारकर्ता (भगवान शिव) इसका संहार करते हैं और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में चलता रहता है। प्रत्येक कल्प को खरबों वर्षों वाले चार युगों में विभाजित किया गया है: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग, और वर्तमान काल कलियुग है। इसके आलावा हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में ब्रह्मांड की संरचना को 3 लोकों से लेकर 12 लोकों (संसार) तक बांटा है।
"द गॉड पार्टिकल (The God Particle)" सहित विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बारे में कई पुस्तकों के सह-लेखक डिक टेरेसी (Dick Teresi) का कहना है कि भारतीय ब्रह्मांड विज्ञानी पहले थे, जिन्होने पृथ्वी की आयु का अनुमान 4 बिलियन से अधिक लगाया। वे परमाणुवाद, क्वांटम भौतिकी और अन्य वर्तमान सिद्धांतों के आधुनिक विचारों के सबसे करीब आए। भारत ने बहुत पहले से ही पदार्थ के परमाणु सिद्धांतों को विकसित कर किया था। डिक टेरेसी कहते है कि भारतीय और आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान के बीच समानताएं आकस्मिक नहीं लगती हैं। शायद शून्य से निर्माण का विचार या सृजन और विनाश का यह चक्र स्थायी रूप से मानव चित्त से जुड़ा हुआ है। निश्चित रूप से शिव का विनाशकारी नृत्य ऊर्जावान आवेग का सुझाव देता है जोकि महाविस्फोट या बिग-बैंग को प्रस्तावित करता है और ब्रह्मांड के विस्तार तथा संकुचन के एक अनंत चक्र में चलता रहता है। हिंदू ब्रह्मांडों की अनंत संख्या को वर्तमान में कई विश्व परिकल्पना कहा जाता है, जो न तो कम अविश्वसनीय है और न ही अकल्पनीय। आज विज्ञान इस बात को लेकर भी हैरान है कि कैसे इन वेदों में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की इतनी स्पष्ट और सटीक व्याख्या की गयी है जो वर्तमान सिद्धांतों के आधुनिक विचारों से काफी मिलती है।
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.