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ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) और भारतीय रियासतों के बीच ब्रिटिश (British) जानकारियों को उजागर होने से रोकने और भारतीय विकास को दबाना सबसे बड़ा मोर्चा था। कोई भी भारतीय रोमन कैथोलिक (Roman Catholic) या किसी भी अन्य देश का रोमन कैथोलिक सेना की प्रयोगशाला या सैन्य संबंधी परिसर में दाखिल हो सकता था। चाहे उत्सुकता वश या वहां के कर्मचारी होने के नाते सेना के नजदीक जाने की कोशिश करते कि आखिर वहां चल क्या रहा है? यह जानकारी साझा करने का यूरोपीय तरीका था। ज्ञान के क्षेत्र में भारतीय रियासतों से दूसरे यूरोपीय लोगों के बीच में ज्ञान और कौशल की जानकारी साझा हुई। 1760 के अंतिम हिस्से में ब्रिटिश प्रशासकों ने बार-बार अवध के नवाब शुजा-अल-दौलाह (Shujā-al-Dawlah) को हथियारों के लिए मना कर दिया। इसके बाद नवाब ने फैजाबाद में हथियार बनाना शुरू किया। इसमें लखनऊ की बड़ी भूमिका रही। शस्त्रागार बनाने और विकसित करने में तत्कालीन नवाब के रास्ते में अड़चनें डालकर ब्रिटिश शासकों ने उसका खूब लाभ उठाया। इस तरह अवधी बंदूक निर्माण को अंतिम रूप से ब्रिटिश शासकों ने रोक दिया।
18वीं शताब्दी में भारतीय हथियार उतने ही परिष्कृत थे, जितने यूरोपीय हथियार। इसके बाद ब्रिटिश शासन ने आकर इस उद्योग को समेट दिया। उस समय उत्तरी-पश्चिमी यूरोप और पूर्वी तथा दक्षिण एशिया में लोग दीर्घ जीवी होते थे, खपत की दर और आर्थिक विकास की क्षमताएं भी बराबरी पर थी। तब ताकत ने हर जगह ज्ञान को साझा करने की प्रक्रिया को प्रभावित किया। उदाहरण के लिए ब्रिटेन (Britain) में सेना से जुड़े सरकारी दफ्तर आविष्कारको को अपने आविष्कार पेटेंट (Patent) करने से रोकने में लगे रहते थे। इससे जरूरी चीजों की आपूर्ति रुक गई। ब्रिटिश उद्योगपति एशिया के कपड़ों की नकल करते थे और औपनिवेशिक चुनौतियों को टक्कर देने की नीति बनाते थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश हथियार भारत में भेजती थी। व्यावसायिक लाभ के लिए वे उपहार के तौर पर भी हथियार देती थी। 1690 तक कंपनी ने 1000 टन तक हथियार निर्यात किए। शायद ही ऐसा कोई जहाज उन दिनों आता हो, जो तोप और छोटे हथियार ना बेचता हो। ब्रिटिश अपने दुश्मनों के यहां हथियारों के जमाव से चिंतित रहते थे। उन्हें इस बात की चिंता थी कि भारतीय ज्यादा ज्ञान हासिल करके बेहतर हथियारों का निर्माण कर लेंगे। स्वदेशी आयुध निर्माण को कुचल कर रख देना ब्रिटिश उपनिवेशवाद के लिए जरूरी हो गया था।
18वीं शताब्दी में ब्रिटेनवासी यकीन करने लगे थे कि सरकार घरेलू स्तर पर औद्योगिक विकास चाहती है और बाहरी जगत में दमन, वे समझ गए थे कि उन्हें खुद भी यह पहचानना चाहिए कि किस तरह युद्ध ने ब्रिटेन के औद्योगिक भविष्य और उसके उपनिवेश को नया आकार दिया। इस तरह शक्ति हमेशा ज्ञान को साझा करने के तरीकों को अपनी पसंद का आकार देती है।
सन्दर्भ :
https://bit.ly/3f3LoLK
https://aeon.co/essays/is-the-gun-the-basis-of-modern-anglo-civilisation
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में मस्कट राइफल दिखाई गयी हैं। (Wikipedia)
दूसरे चित्र में एक भारतीय ब्रिटिश सैनिक बन्दूक पकडे हुए दिखाई दे रहा है। (Pexels)
भारत में बनाई जाने वाली बन्दूक जिसके ऊपर नक्काशी भी दिखाई गयी है। (Aeon)
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