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लिथियम-आयन बैटरी (Lithium-ion Battery) हमारी आधुनिक जिंदगी में एक क्रांतिकारी आविष्कार बन चुकी है। यह एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी (Rechargeable Battery) है, जिसका इस्तेमाल हमारे मोबाइल फोन से लेकर लैपटॉप तक में होता है, यहां तक कि इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाने में भी इसका उपयोग होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में इसका इस्तेमाल करता है परंतु इसके इतिहास के बारे में कभी नहीं सोचता है। क्या आप जानते हैं 1970 के दशक के अंत में, वैश्विक वैज्ञानिकों की एक टीम ने लिथियम-आयन बैटरी को विकसित करना शुरू किया था। वर्ष 2019 में रसायन का नोबेल पुरस्कार सम्मान, लिथियम-आयन बैटरी के विकास से जुड़े तीन वैज्ञानिकों स्टैनली व्हिटिंघम, जॉन गुडएनफ और अकिरा योशिनो (Stanley Whittingham, John Goodenough and Akira Yoshino) को दिया गया था। इन तीनों के सहयोग से ही लिथियम-आयन बैट्रियां अस्तित्व में आ सकीं।
आधिकारिक नोबेल पुरस्कार संगठन के अनुसार इन हल्की और रिचार्जेबल बैटरियों ने मोबाइल फोन, लैपटॉप और और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे तार रहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास की बुनियाद रखी। यह स्वच्छ स्रोतों (सौर और पवन ऊर्जा) से प्राप्त ऊर्जा के भंडारण में मदद कर रही हैं। जिससे जीवाश्म ईंधन पर दुनिया की निर्भरता कम होती जा रही है।
लिथियम-आयन बैटरी का इतिहास
लीथियम आयन बैटरी के विकास की शुरूआत 1970 के दशक में तेल संकट के दौरान हुई थी जब एक्सॉन मोबाइल के लिए काम कर रहे व्हिटिंघम ने एक ऐसी ऊर्जा तकनीक की खोज शुरू की जो पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन से मुक्त हों और जिसे पुन: रिचार्ज किया जा सके। अपने पहले प्रयास में, उन्होंने इलेक्ट्रोड के रूप में टाइटेनियम डाइसल्फ़ाइड (titanium disulfide) और लिथियम (lithium) धातु का उपयोग करने की कोशिश की, लेकिन इस संयोजन में उन्हे बैटरी के शॉर्ट-सर्किट और आग लगने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसको देखते हुये एक्सॉन ने इस प्रयोग को रोकने का फैसला किया। यह बैटरी उपयोग के लिहाज से बहुत अस्थिर थी। टैक्सस यूनिवर्सिटी के गुडइनफ ने व्हिटिंघम के प्रोटोटाइप पर आगे काम किया और 1980 के दशक में, उन्होंने टाइटेनियम डाइसल्फ़ाइड के बजाय कैथोड के रूप में लिथियम कोबाल्ट ऑक्साइड (lithium cobalt oxide) का इस्तेमाल कर बैटरी की क्षमता को दोगुना बढ़ा दिया। जिससे भविष्य में और भी अधिक शक्तिशाली तथा लंबे समय तक चलने वाली बैटरियों का विकास हुआ। पांच साल बाद 1985 में, योशिनो ने एनोड के रूप में प्रतिक्रियाशील लिथियम धातु का उपयोग करने के बजाय एक कार्बन आधारित पदार्थ पेट्रोलियम कोक का उपयोग करने की कोशिश की, जिसके कारण एक क्रांतिकारी खोज हुई। इसके बाद अंतत: व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक बैटरी तैयार हो सकी। ये बैटरी न केवल सुरक्षित थी बल्कि पहले की बैटरी से अधिक स्थिर भी थी। इस प्रकार इन तीनों के अनुसंधान के फलस्वरूप अब तक की सबसे अधिक शक्तिशाली, हल्की और पुन: रिचार्ज हो जाने वाली बैटरी तैयार हुई। आज भी दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और व्यवसायों में इन बैटरियों पर शोध जारी है, आज भी ऐसी बैटरियां विकसित की जारी हैं जो अधिक सुरक्षित हो, अधिक लंबे समय तक चल सके, और गंभीर मौसम की विषम परिस्थितियों में भी काम कर सके।
इन बैटरियों में इलेक्ट्रॉन और आयन विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होते हैं। इसमें लिथियम आयन ऋणात्मक इलेक्ट्रोड एक विद्युतअपघट्य के माध्यम से धनात्मक इलेक्ट्रोड कि और प्रवाहित होते हैं, जिससे विद्युत धारा पैदा होती है। और चार्ज करते समय विद्युत धारा की दिशा पलट दी जाती है और इलेक्ट्रॉन का भंडारण होता है।
जैसा की हम सभी जानते ही हैं कि वर्तमान की दुनिया में पेट्रोल कारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है परंतु ईंधन के सीमित स्रोतों को देखते हुये वाहन निर्माता और तेल कंपनियों ने नए ऊर्जा विकल्पों की तलाश में निवेश बढ़ा दिया है। इस कारण बैटरी व्यवसाय तेजी से विकास के रास्ते पर अग्रसर है। आज इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में लंबे समय तक चलने वाली बैटरी की आवश्यकता बढ गई है। दुनिया भर में मोबाइल फोन, लैपटॉप और इलेक्ट्रिक व्हीकल जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। इन सभी चीजों में रिचार्जेबल बैटरियों यानी लिथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में इन बैटरियों का उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग 2018 में 322.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 23810.54 खरब रू०) से बढ़कर 2024 तक 623.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 45983.54 खरब रू०) होने की ओर अग्रसर है।
भारत में भी लिथियम-आयन बैटरी की मांग में वृद्धि हुई है और उम्मीद की जा रही है कि बैटरी बाजार अगले पांच वर्षों में काफी बढ़ने वाला है। भारत में लिथियम, कोबाल्ट, एल्यूमीनियम और तांबा के कोई बड़े ज्ञात भंडार नहीं है जबकि ये तत्त्व बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है इसलिये भारत बैटरी विनिर्माता दुनिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक हैं और ये मुख्यतया चीन जैसे देशों से आयात करता है। हालांकि, हमारे देश में अगले कुछ वर्षों में बैटरी के प्रमुख निर्माता के रूप में उभरने की क्षमता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत बैटरी निर्माण उद्योग को तीन अलग-अलग चरणों प्रथम चरण (2017 से 2020), द्वितीय चरण (2021 से 2025), और तृतीय चरण (2026 से 2030) के माध्यम से विकसित हो सकता है, जिसमें 1,300 बिलियन से 1,400 बिलियन के आर्थिक निवेश की आवश्यकता होगी। भारत सरकार द्वारा इस बाजार के विकास को गति देने वाली कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठाये गये हैं जैसे कि राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना 2020 (National Electric Mobility Mission Plan 2020), जिसका लक्ष्य 2020 तक देश की सड़कों पर 60 से 70 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों को उतारना और 2022 तक 175 गीगा वाट तक नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापना करना है। जेएमके (JMK) रिसर्च का अनुमान है कि 2030 में 132 GWh (गीगा वाट घंटा) तक पहुंचने पर भारत में वार्षिक लिथियम-आयन बैटरी बाजार में 37.5% की सीएजीआर (CAGR) में वृद्धि होगी। 2018 में संचयी लिथियम-आयन बैटरी बाजार 2.9 GWh से बढ़कर 2030 तक लगभग 800 GWh तक पहुंचने का अनुमान है।
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में लिथियम आयन बैटरी को दिखाया गया है। (Pikist)
दूसरे चित्र में लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन में ऊर्जा संचारित करने वाली लिथियम आयन बैटरी को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में एक लिथियम आयन बैटरी आंतरिक तत्वों को दिखाया गया है। (Pikist)
चौथे चित्र में लैपटॉप में लगायी जाने वाली लिथियम आयन बैटरी दिखाई दे रही है। (Pngtree)
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