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पृथ्वी की आत्मा अर्थात पर्यावरण के संरक्षण में अपमार्जकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह वे जीव होते हैं, जो मृत शरीर तथा अपशिष्ट पदार्थों को खाते हैं। इनमें गिद्ध, चील इत्यादि शामिल हैं। गिद्धों की पृथ्वी में विभिन्न प्रजातियां मौजूद हैं, जिसमें से एक है 'मिस्र के गिद्ध'। आकृति में छोटे यह गिद्ध विश्व के सबसे प्राचीन गिद्धों में से एक हैं, जो कि निओफ्रोन (Neophron) वंश का एकमात्र सदस्य है। मानवीय गतिविधियों के कारण आज यह गिद्ध विलुप्ति के कगार पर खड़ा है। मिस्र के गिद्ध मुख्यत: दक्षिणी यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं। लखनऊ शहर में भी इनकी उपस्थिति देखी गयी है।
वास्तव में यह गिद्ध प्रवासी पक्षी नहीं हैं किंतु यह अपने निवास क्षेत्र और प्रजनन क्षेत्र के मध्य अन्य गिद्धों की तुलना में अधिक उड़ते हैं। सामान्यत: यह आबादी वाले क्षेत्रों के निकट रहते हैं, उदाहरणत: कस्बों, बूचड़खानों, कूड़ेदान और मछली पकड़ने के बंदरगाह के आसपास। इसका रंग सफेद तथा पंख और पूंछ पर काले दाग होते हैं। यह स्वयं को समय और परिस्थिति के अनुसार ढाल लेते हैं। गिद्ध मुख्यत: देखकर शिकार करते हैं, ना कि सूंघकर इसलिए ये खुले स्थानों पर ही भोजन की तलाश करते हैं, जहां दूर तक शिकार पर उनकी नजर जा सके। यह खुद से शिकार करने की बजाय अन्य गिद्धों पर नजर रखते हैं, जो संभावित भोजन के ऊपर चक्कर काटते हैं।
मांसाहारी और अपमार्जक होने के नाते, मिस्र के गिद्ध सड़ा-गला मांस खाते हैं। वे अंडे भी खाते हैं, और कठोर अंडे या अन्य कोई कठोर खाद्य वस्तु जैसे-शुतुरमुर्ग के अण्डे को तोड़ने के लिए नुकिले कंकड़ पत्थर का उपयोग करते हैं, जिसे वे अक्सर अपने घोसलों में ही रखते हैं। इस पत्थर को वे अपनी गर्दन के सहारे तब तक अंडे पर मारते हैं, जब तक वह टूट ना जाए। अपनी इसी विशेषता के लिए यह अफ्रिका में प्रसिद्ध है।
प्रजनन के मौसम में ये जोड़ों में प्रवास करते हैं तथा बड़े घोसलों का निर्माण करते हैं। सामान्यत: मादाएं मार्च से मई के बीच अंडे देती हैं। जिन्हें नर और मादा द्वारा 39-45 दिनों की अवधि तक ऊष्मायित किया जाता है। जन्म से 70-80 दिनों तक माता-पिता चूजों को अपनी चोंच से खाना खिलाते हैं। लगभग चार महीने के भीतर चूजे घोंसलों से उड़ जाते हैं। छ: वर्ष की उम्र में एक गिद्ध परिपक्व हो जाता है।
पौराणिक ग्रन्थों में भी इनका उल्लेख देखने को मिलता है, बाइबल में इसे रेचमाह/रेचम (Rachamah/Racham) नाम दिया गया है, जो कि एक हिब्रू भाषा का शब्द है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद "गियर-ईगल" (Gier-eagle) है। प्राचीन मिस्र में, गिद्ध हीयेरोग्लिफ़ (Hieroglyph) एकपक्षीय संकेत था, जिसका उपयोग ग्लोटल (Glottal) ध्वनि के लिए किया जाता था। पक्षी को प्राचीन मिस्र के धर्म में आइसिस (मिस्र की देवी) के लिए पवित्र माना जाता था। मिस्र की संस्कृति में राजसत्ता के प्रतीक के रूप में गिद्ध का उपयोग किया जाता था तथा फ़ारोनिक कानून द्वारा इनको संरक्षण दिया गया, जिसके कारण यह मिस्र में फिरौन (Pharaoh) के चिकन (Pharaoh's Chicken) के नाम से प्रसिद्ध हुए।
चेंगलपट्टू के पास थिरुक्लुकुंदम में एक दक्षिणी भारतीय मंदिर, पक्षियों की एक जोड़ी के लिए प्रसिद्ध था, जो सदियों से मंदिर का दौरा करते थे। इन पक्षियों को मंदिर के पूजारियों द्वारा चावल, गेहूं, घी, और चीनी से बना प्रसाद खिलाया जाता था। जो यहां की रस्म बन गयी थी। वैसे तो यह पक्षी सदैव समय पर आ जाते थे किंतु एक बार यह नहीं आए, जिसका कारण लोगों ने मंदिर में पापियों की उपस्थिति को बताया। किंवदंती है कि गिद्ध (या "ईगल") आठ ऋषियों का प्रतिनिधित्व करते थे, जिन्हें शिव द्वारा दंडित किया गया था, जिनमें से दो को युगान्तर के लिए इस मृत्युलोक पर छोड़ दिया गया हैं।
20वीं शताब्दी में इस प्रजाति की संख्या में भारी गिरावट आई, जिसके प्रमुख कारण कुछ द्वीप में इनका व्यापक शिकार, मानव द्वारा विषाक्त पदार्थों या कीटनाशकों का उपयोग, बिजली लाइनों के साथ टकराव, शिकार के दौरान बन्दूक का उपयोग, जिससे गोली के कण शिकार के शरीर में छूट जाते हैं, जो गिद्ध के लिए विष का कार्य करते हैं आदि हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (The International Union for Conservation of Nature (IUCN)) ने इसे संकटग्रस्त पक्षियों की श्रेणी में रखा हुआ है। पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (Diclofenac) का व्यापक उपयोग इनके लिए अभिशाप बन गया है। वास्तव में डाइक्लोफिनॅक का उपयोग जानवरों में जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए किया जाता है। यदि किसी मृत पशु को उसकी मृत्यु से कुछ समय पूर्व यह दवा दी गयी हो तो, उस मृत पशु का सेवन करने वाले गिद्ध की भी मृत्यु हो जाती है। यह दवा इनके गुर्दों को निष्क्रिय कर देती है, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
IUCN रेड लिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार मिस्र गिद्ध की कुल आबादी 20,000-61,000 तक है, जिनमें लगभग 13,000-41,000 परिपक्व गिद्ध हैं। यूरोप में प्रजनन की आबादी 3,300-5,050 प्रजनन जोड़े के रूप में अनुमानित है। इनकी घटती संख्या को देखते हुए इन्हें आज विलुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में रखा गया है। मिस्र के गिद्ध शव, कचरा और मल खाते हैं, जो जैविक कचरे को हटाने और पुनर्चक्रण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे छोटे जानवरों और अन्य पक्षियों के अंडे भी खाते हैं, जिससे वे उनकी जनसंख्या नियंत्रित करने की भूमिका भी निभाते हैं। अत: पर्यावरण में इनकी भूमिका को देखते हुए इनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। हालांकि, इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रभावी योजना और अत्यधिक शोध की आवश्यकता है।
संदर्भ:
http://animalia.bio/egyptian-vulture
https://en.wikipedia.org/wiki/Egyptian_vulture
https://en.wikipedia.org/wiki/Egyptian_vulture#Indian
http://bspb.org/en/threatened-species/egyptian-vulture.html
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में मिस्र के गिद्ध (Egyptian vulture) को दिखाया गया है। (Wikimedia)
दूसरे चित्र में कंकड़ से अंडे को फोड़ता मिस्र का गिद्ध दिखाया गया है। (Pexels)
तीसरे चित्र में मृत पशु पार्थिव शरीर पर बैठे मिस्र के गिद्ध को दिखाया गया है। (Pikist)
अंतिम चित्र में मिस्र के गिद्ध का चेहरा दिखाया गया है। (Unsplash)
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