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10 दिन से बादलों की आंख मिचोली और बेहद उमस भरे मौसम के बाद आखिरकार मॉनसून की बारिश ने लखनऊ के दर पर जोरदार दस्तक दी। हालांकि बारिश के सुहाने मौसम का दूसरा पहलू जगह-जगह जलभराव की दुविधा भी है। बारिश के साथ आए तूफान या थोड़ी देर की मूसलाधार बारिश से शहरों में जलभराव की स्थिति इसलिए आती है क्योंकि पानी की निकासी की क्षमता से ज्यादा पानी भर जाता है। तूफान में बढ़े जलस्तर की निकासी की प्रणाली ऐसी है, जो कई चैनल के नेटवर्क से बनी होती है। इससे बारिश और गंदे पानी दोनों की निकासी होती है। इसमें जमीन के नीचे पाइप लाइनों की समुचित व्यवस्था करके बारिश के पानी को नदियों और झरनों तक पहुंचाया जाता है। अगर पाइप लाइन बारिश और गंदे पानी दोनों को ले जाती है, तो इसे 'संयुक्त निकासी व्यवस्था' कहते हैं। हाल के वर्षों में जलभराव की मुश्किलें शहरों के लिए बोझ बनती जा रही हैं। रोजाना की जिंदगी में आए दिन इससे आने वाली अनियमितता, ट्रैफिक का पंगु हो जाना, आधिकारिक संरचना की तबाही, वनस्पति और पशुओं के नष्ट होने से सामाजिक, शारीरिक, आर्थिक और पर्यावरण संबंधी परिदृश्य संकट में पड़ जाता है। हर साल आने वाली बारिश क्यों खुशनुमा एहसास की जगह सिर्फ उसका एक सपना बन जाती है- सोचने की बात है- कैसे निपटे इस जलभराव के दैत्य से?
बारिश और जलभराव: चोली दामन का रिश्ता
हमारे शहरों में जलभराव एक आम दृश्य है। हर साल भारी बारिश, गंभीर जलभराव करके अपनी चुंगी वसूलती है। बारिश के पानी के उन्मूलन का मूल ढांचा, अगर कहीं है तो वह भी सारे पानी की निकासी और निचले इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा होने से रोकने में सक्षम नहीं है। समस्या उस समय बहुत बढ़ जाती है, जब नालियों में पर्याप्त ढलान नहीं होता तथा इससे बचने के लिए पानी को उठा कर उसे पाइपलाइन में डाल दिया जाए।
मुंबई में मानसून
इस मानसून महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में जमकर मूसलाधार बारिश हुई। लोग अपने घरों में कैद रह गए क्योंकि सारी नालियां और गड्ढे पानी से जाम हो गए। लोग और वाहनों का चलना जलभराव के कारण धीमा हो गया, जिससे ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा हो गई। पैदल यात्रियों को पानी में डूबे हुए चलना पड़ा। झोपड़पट्टी में रहने वालों के घर ढह गए। क्योंकि यह पानी कचरे से मिल जाता है, इसलिए स्वास्थ्य के लिए भी खतरा खड़ा हो जाता है। खुले मेनहोल पानी भरने पर नजर नहीं आते और पैदल चलने वालों और दोपहिया वाहनों के लिए गंभीर खतरा बन जाते हैं। यात्री ट्रेनों और फ्लाइट की देरी से बेहाल हो जाते हैं। इसके अलावा मीठी नदी में अवैध कब्जों से जलभराव की भीषण समस्या हो जाती है।
मुंबई की लोकल ट्रेन प्रणाली 100 साल से ज्यादा पुरानी है, 2000 किलोमीटर खुली नालियां हैं, 440 किलोमीटर बंद नालियां हैं, 186 निकसियां और 3000 से ऊपर पानी प्रवेश करने के मुहाने हैं। तेज बारिश का अधिकतर पानी सड़कों पर पड़े कचरे की वजह से फंस जाता है। 17 जून, 2015 में 200 करोड रुपए की लागत से दो पंपिंग स्टेशन लगाए गए थे, लेकिन यह भी 300 मिलीमीटर पानी तक की निकासी नहीं कर सके क्योंकि पाइपलाइन में पानी के साथ कचरा भी फंसा था। स्मार्ट सिटी जो शहरों की सभी समस्याओं को सुलझाना चाहती है, निश्चित रूप से उसे जलभराव की समस्या पर भी विचार करना चाहिए।
लखनऊ: बारिश से राहत लेकिन गलियां जाम
लखनऊ में मानसून 24 जून को आ गया, लेकिन 2 दिनों में ही उमस भरी गर्मी वापस आ गई। पूर्वी उत्तर प्रदेश में पिछले 3 दिनों से बारिश हो रही है लेकिन राज्य के दूसरे हिस्सों में सूखे की स्थिति बरकरार है। राज्य के मौसम विभाग का मानना है कि अगले 3 दिनों में पूरे उत्तर प्रदेश में बारिश होगी। एक सामान्य बारिश में भी शहर के कुछ इलाकों में बारिश का पानी बंद नालियों और पुरानी पड़ गई पाइप लाइनों के कारण बाढ़ के पानी की तरह जमा हो जाता है। ऐसा हर साल होता है लेकिन लखनऊ नगर निगम कोई सबक नहीं सीखता। यह बिल्कुल सही समय है कि अधिकारी कोई ठोस कार्यक्रम बनाएं, पानी जमा होने के सही कारण की तलाशी और युद्ध स्तर पर उनमें सुधार करें। लोगों का मानना है कि हर वर्ष ऐसे ही पानी भरा होता है और सारी दिनचर्या ठप कर देता है।
पंजाब में आतंक का पर्याय जलभराव
लुधियाना में हर समय जलभराव की स्थिति रहती है, जबकि वहां नगर निगम को नालियों की सफाई के लिए बराबर राशि मिलती है। इसका सीधा मतलब यही है कि अपने उद्देश्य में नगर निगम नाकाम रहा। पूर्व मानसून की बारिश से, हाल ही में भटिंडा और लुधियाना शहर जलभराव की स्थिति में फंस गए।
क्या है पंजाब में जलभराव का मूल कारण?
तेज शहरीकरण और आनन-फानन में किए जा रहे नए निर्माण, कंक्रीट के बढ़ते जंगल, खुले इलाकों की कमी से पानी सोखने का बढ़ता संकट, पानी की निकासी में घुलता कचरा, सड़कों का चौड़ीकरण, बढ़ती आबादी यह कुछ कारण थे, जिन से लुधियाना और अमृतसर में बार-बार जलभराव होता था। लेकिन सच्चाई यह भी है कि मॉनसून से पहले प्रशासन नालियों की सफाई से चूक जाता है और लोग पूरे साल में कचरा भर कर रही सही कसर भी पूरी कर देते हैं। ऐसे में जब मॉनसून आता है तो बंद नालियों के कारण यह अतिरिक्त पानी कोई रास्ता ना पाकर बाढ़ की, जलभराव की शक्ल ले लेता है। पंजाब के किसी भी शहर में 100% बारिश के पानी की निकासी का प्रबंध नहीं है।
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र चारबाग रेलवे स्टेशन पर जलभराव की स्थिति को दिखाया गया है। (Youtube)
दूसरा चित्र मुंबई में जलभराव को दिखा रहा है। (Flickr)
तीसरा चित्र लखनऊ के विभिन्न स्थानों पर जलभराव को दिखा रहा है। (Prarang)
चौथा चित्र मानसून में होने वाली दुर्दशा को दिखाया गया है। (Prarang)
सन्दर्भ :
https://india.smartcitiescouncil.com/article/addressing-water-logging-woes
https://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/rainfall-pours-relief-but-clogs-lucknow-streets/articleshow/76828486.cms
https://indianexpress.com/article/explained/explained-why-waterlogging-continues-to-haunt-punjab-cities-5793414/
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