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प्रत्येक वर्ष, दुनिया भर में 20 जून, विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दुनिया भर में शरणार्थियों जिन्हें युद्ध, उत्पीड़न और संघर्ष के कारण अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, की अनिश्चित स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र 1951 शरणार्थी सम्मेलन के अनुसार, एक शरणार्थी वह व्यक्ति है जिसे अपनी जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता, या राजनीतिक विचारों के कारण होने वाले उत्पीड़न की आशंकाओं से बचने के लिए अपने घर और देश को छोड़ना पड़ता है। शरणार्थी दुनिया के सबसे कमजोर लोगों में से हैं, जिन्हें अक्सर उनके सबसे बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जाता है।
1951 के शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 प्रोटोकॉल (Protocol) के अनुसार, शरणार्थियों को किसी भी देश में अन्य विदेशी नागरिकों के समान उपचार दिया जाना चाहिए, और कई मामलों में यह उपचार राष्ट्रीय नागरिकों के समान होना चाहिए। लेकिन 1951 का शरणार्थी सम्मेलन गैर-वापसी सिद्धांत के साथ अपने मेजबान देश के प्रति शरणार्थियों के दायित्वों पर भी प्रकाश डालता है। इस सिद्धांत के अनुसार एक शरणार्थी उस देश में वापस नहीं लौट सकता, जहां वह अपने जीवन या स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरों का सामना करता है। हालांकि, यह उन शरणार्थियों पर लागू नहीं होता है जिन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता है या जिन्हें गंभीर अपराध का दोषी ठहराया गया है।
1951 के सम्मेलन में निहित अधिकारों में निष्कासित नहीं किए जाने का अधिकार (कुछ शर्तों के अलावा), अवैध रूप से दूसरे राज्य के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए दंडित नहीं किये जाने का अधिकार, काम करने का अधिकार, आवास का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सार्वजनिक राहत और सहायता का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, न्यायालयों तक पहुँचने का अधिकार, क्षेत्र के भीतर आंदोलन की स्वतंत्रता का अधिकार, पहचान और यात्रा दस्तावेज जारी करने का अधिकार शामिल है। इसके अलावा, शरणार्थी अन्य अधिकारों के भी हकदार बन जाते हैं, जो इस मान्यता पर आधारित है कि वे जितने अधिक समय तक शरणार्थी बने रहेंगे, उन्हें उतने ही अधिक अधिकारों की आवश्यकता होगी।
इस वर्ष के विश्व शरणार्थी दिवस का विषय ‘हर कार्य मायने रखता है’ (Every Action Counts) है, जिसका उद्देश्य दुनिया को यह याद दिलाना है कि शरणार्थी सहित हर कोई और अधिक समावेशी और समान दुनिया बनाने के प्रयास में योगदान दे सकता है। 2017 में शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees - UNHCR) रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2,00,000 शरणार्थी निवास कर रहे हैं। ये शरणार्थी म्यांमार, अफगानिस्तान, सोमालिया, तिब्बत, श्रीलंका, पाकिस्तान, फिलिस्तीन और बर्मा जैसे देशों से आते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारत पूरे क्षेत्र के लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल रहा है। जहां भारत को शराणार्थियों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में आदर्श माना जाता है, वहीं यह थोडा अजीब लग सकता है कि, भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। ऐसे कई कारक हैं जो इस निर्णय को निर्धारित करते हैं।
जब द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के सामने पहली बार सम्मेलन प्रस्तावित किया गया था, तब भारत ने इसे शीत युद्ध की रणनीति के रूप में देखा। स्वतंत्रता के बाद भारत निष्पक्ष रहने की कोशिश कर रहा था और इसलिए उस समय उसने सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किया। हालाँकि भारत के कानून से परहेज के कोई आधिकारिक कारण नहीं हैं, लेकिन संभावित कारणों में से एक सम्मेलन में 'शरणार्थी' शब्द की परिभाषा हो सकती है। यह उन कारणों को प्रतिबंधित करता है जो लोगों को सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन या जाति, धर्म और राष्ट्रीयता के आधार पर उत्पीड़न का कारण बनती है। इस परिभाषा को 'यूरो-केंद्रित (Euro-centric)' माना जाता है क्योंकि यह हिंसा या गरीबी को प्रमुख कारणों में से एक मानने में विफल है।
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की बैठक में भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि ‘अधिकांश शरणार्थी आंदोलन सीधे तौर पर दुनिया भर में व्यापक रूप से गरीबी और अभाव से संबंधित हैं, विशेष रूप से विकासशील देशों में जिसका महत्वपूर्ण उदाहरण दक्षिण एशिया है। इस प्रकार, सम्मेलन विकासशील देशों की स्थितियों को ध्यान में रखने में विफल रहता है। सम्मेलन पर हस्ताक्षर करके भारत को उन जिम्मेदारियों को भी उठाना होगा जिन्हें वहन करने की क्षमता उसमें नहीं है। सम्मेलन शरणार्थियों को आवास और काम के अधिकार की गारंटी देता है। भारत जैसे देश, जो पहले से ही विकास से सम्बंधित क्षेत्रों में पीछे है, में शरणार्थियों की एक व्यापक संख्या बुनियादी ढांचे, श्रम बाजार और राष्ट्रीय सुरक्षा पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती है। परिणामस्वरूप भारत न तो इस सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्ता है और न ही शरणार्थियों के इलाज के लिए समर्पित एक राष्ट्रीय नीति का अनुसरण करता है, जिसका मतलब है कि यह अलग-अलग शरणार्थी समूहों से निपटने के लिए एक अलग दृष्टिकोण का उपयोग करने के लिए मजबूर है। ज्यादातर मामलों में, शरणार्थियों से निपटने के लिए विदेशी अधिनियम और नागरिकता अधिनियम का उपयोग किया जाता है। यह गैर-भारतीय राष्ट्रीयता को कानूनी स्थिति की परवाह किए बिना 'विदेशी' के रूप में परिभाषित करता है। यह प्रवासियों और शरणार्थियों के बीच कोई अंतर नहीं करता। भारत सहित अधिकांश दक्षिण एशियाई देशों में शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए एक राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय नीति नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय आलोचना और आंतरिक मामलों में बाह्य और अनावश्यक हस्तक्षेप के डर से जवाहरलाल नेहरू के अधीन भारत ने 1951 के सम्मेलन और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं करने का निश्चय किया। सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने वाले देश के लिए यह आवश्यक है कि वह शरणार्थियों के रूप में स्वीकार किये गये लोगों के प्रति आतिथ्य और आवास के एक न्यूनतम मानक को स्वीकार करें। ऐसा करने में विफल होने पर उस देश को आज भी अनेक अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पडता है। दक्षिण एशिया में सीमाओं की अनुपयुक्त प्रकृति, निरंतर जनसांख्यिकीय परिवर्तन, गरीबी, संसाधन संकट और आंतरिक राजनीतिक असंतोष आदि के कारण भारत के लिए प्रोटोकॉल को स्वीकार करना असंभव है। 1951 के सम्मेलन या इसके प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने का मतलब होगा, भारत की आंतरिक सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की अंतर्राष्ट्रीय जांच की अनुमति देना। भारत को शरणार्थियों के प्रति अपने दृष्टिकोण और उपचार को औपचारिक रूप देने की आवश्यकता है। भारत को एक राष्ट्रीय ढांचे के साथ आना चाहिए जो इसके प्रतिबंधों और क्षमताओं के अनुकूल हो। ऐसा करना सभी शरणार्थी समूहों का औचित्यपूर्ण और समान उपचार सुनिश्चित करेगा और वैश्विक समुदाय में भारत के स्थान को ऊपर उठायेगा।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र - केरल में श्रीलंका से आये शरणार्थियों का चित्र रोहिंग्या है। (Wikimedia)
2. दूसरा चित्र - रोहिंग्या शरणार्थियों को दिखा रहा है। (Flickr)
3. तीसरा चित्र - पाकिस्तान के भारत-पकिस्तान विभाजन के दौरान शरणार्थियों के आवागमन के दौरान लिया गया चित्र है। (Publicdomainpictures)
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2V5XjjF
2. https://bit.ly/2No4I9O
3. https://bit.ly/2AYAmYU
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