पूरी की ही तर्ज़ पर लखनऊ में भी निकली जाती है, जगन्नाथ रथ यात्रा

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
22-06-2020 02:00 PM
पूरी की ही तर्ज़ पर लखनऊ में भी निकली जाती है, जगन्नाथ रथ यात्रा

भारत एक धार्मिक देश है यहाँ पर प्रत्येक महीने में किसी न किसी प्रकार का कोई न कोई त्यौहार जरूर मनाया जाता है। इन्हीं त्योहारों की लम्बी फेहरिश्त के कारण इस देश को त्योहारों का भी देश माना जाता है। इस महीने की 23 तारीख को भगवान् जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा है, यह त्यौहार भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी में सैकड़ों सालों से मनाया जा रहा है। समय के साथ साथ यह त्यौहार भारत के अन्य राज्यों में भी मनाया जाने लगा है। यह त्यौहार पूरे विश्व भर में जाना जाता है और यहाँ पर देश विदेश से लोग इस त्यौहार को देखने के लिए आते हैं।

पुरी में यह त्यौहार भगवान् जगन्नाथ के मंदिर के प्रांगण से शुरू होता है जिसमे मूल रूप से तीन रथ शामिल होते हैं इन रथों पर भगवान जगन्नाथ, भगवान् बलभद्र और देवी शुभद्रा विराजमान रहती हैं। रथ यात्रा में बने रथ अत्यंत ही विशालकाय होते हैं तथा इनको रस्से के सहारे श्रद्धालुओं द्वारा खींचा जाता है। जगन्नाथ पुरी में बनाए गए इन रथों को एक विशेष तबका बनाया करता है जो सैकड़ों सालों से रथ बनाने का कार्य करते आ रहा है। इन रथों को बनाने वाले विश्वकर्मा सेवक के नाम से जाने जाते हैं।

हमारे लखनऊ में भी यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। लखनऊ में यह उत्सव डालीगंज के माधव मंदिर से शुरू होता है तथा शहर भर के विभिन्न हिस्सों में यह रथयात्रा चलती है जहाँ पर श्रद्धालु भगवान् जगन्नाथ का दर्शन करते हैं। लखनऊ में यह रथयात्रा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लखनऊ में जिन रथों का निर्माण किया जाता है वे उड़ीसा के पुरी मंदिर के रथों की तरह प्रतीत होते हैं। अब यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर यह रथ यात्रा है क्या और इसका धार्मिक महत्व क्या है?

रथयात्रा को रथ महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। उड़ीसा के पुरी में होने वाली रथयात्रा पूरे विश्व में होने वाली सबसे प्राचीनतम रथयात्रा है जिसका उल्लेख भारतीय धर्मग्रन्थ और पुराणों में देखने को मिलता है। इस यात्रा का उल्लेख ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में देखने को मिलता है इसके अलावा इसका उल्लेख कपिल संहिता में भी देखने को मिलता है। यह यात्रा भगवान् जगन्नाथ के गुण्डिचा मंदिर में वार्षिक यात्रा को याद करता है जो कि मौसी माँ मंदिर होते हुए जाती है। इस यात्रा के शुरुआत में जब भगवान् जगन्नाथ और अन्य देवों को रथों में रखा जाता है तो इस प्रक्रिया को पहंडी के नाम से जानते हैं, इस यात्रा की शुरुआत मदन मोहन और फिर सुदर्शन बलभद्र, सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ से होती है। इस यात्रा के शुरू होने के समय गजपति महाराज जिनको देवताओं का प्रथम सेवक माना जाता है इन रथों की पवित्र सफाई करते हैं जिसको छेरा पहान नाम से भी जाना जाता है।

इस यात्रा में 6 प्रमुख आयोजन होते हैं
1. स्नान यात्रा,
2. श्री गुण्डिचा,
3. बहुडा यात्रा,
4. सुने बाशा,
5. आधार पाना,
6. निलाद्री बीज।

इन 6 आयोजनों का हिन्दू परंपरा में अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है जो देवता के स्नान से होते हुए उनको रत्नजडित वस्त्र पहनाने के साथ ही साथ उनके स्थापना तक सीमित होते हैं। इस वर्ष कोरोना (Corona) नामक महामारी के कारण यह यात्रा भक्त ऑनलाइन (Online) देख सकते हैं, क्यूंकि इस महामारी से लड़ने के लिए सामजिक दूरी का ख़ास ख्याल रखना जरूरी है। इस वर्ष जगन्नाथ भगवान् की यात्रा के लिए स्वचालित रथों का निर्माण किया गया है जिससे रस्सों से रथों को खींचने के लिए लोगों की भीड़ न हो।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में गोड़िया मठ, मोती नगर लखनऊ से निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा का चित्र है। (Youtube)
2. दूसरे चित्र में पूरी में निकलने वाली मुख्य जगन्नाथ यात्रा का चित्रण है। (Wikipedia)
3. तीसरा चित्र भारतीय डाक द्वारा जारी जगन्नाथ रथ यात्रा की डाक टिकट का चित्र है। (Publicdomainpictures)

सन्दर्भ:
1. https://rb.gy/3ls06k
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Ratha_Yatra_(Puri)

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