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भातखंडे संगीत संस्थान, कैसरबाग में एक ऐतिहासिक स्थल है जहां संगीत की धुन हवा में बहती है। संगीत वाद्ययंत्रों की आवाज़, घुंघरूओं की झनकार और तबले की ताल और अन्य ताल वाद्य यंत्र इस जगह को प्रभावशाली बनाते हैं। भातखंडे संगीत संस्थान ने न केवल शहर और राज्य में बल्कि पूरे देश में संगीत के इस आकर्षण को फैलाने में जबरदस्त योगदान दिया है। ये विश्वविद्यालय ध्वन्यात्मक संगीत, वाद्य-विषयक, ताल, नृत्य, संगीत की विद्या और अनुसंधान और प्रायौगिक संगीत में 2 वर्ष का डिप्लोमा इन म्यूज़िक; 3 वर्ष का बैचलर ऑफ़ परफॉर्मिंग आर्ट्स; 2 वर्ष का मास्टर ऑफ़ परफॉर्मिंग आर्ट्स और पीएच.डी की शिक्षा देता है। इसके अलावा ध्रुपद-धमार, ठुमरी गायन और सरल शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण के लिए विशेष पाठ्यक्रम हैं, जिसमें संगीत रचना और निर्देशन शामिल हैं।
भारत में संगीत शिक्षा का इतिहास प्राचीन काल से है जब छात्रों को शिक्षा गुरुकुलों और महान संतों और ऋषि-मुनियों के आश्रमों में दी जाती थी। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से ब्रिटिश शासकों द्वारा श्रेणीबद्ध, समयबद्ध संरचना में आधुनिक संस्थागत प्रणाली की शुरुआत की गई थी। भारतीय संगीत शिक्षा को बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में इस प्रणाली में लाया और संरचित किया गया था। उस समय भारतीय संगीत के दो दिग्गज, पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर और पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने संगीत शिक्षा और अनुरेखण प्रणाली के इस संस्थागतकरण की दो मजबूत और समानांतर परंपराओं का नेतृत्व और विकास किया था।
साथ ही विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा राय उमानाथ बली और राय राजेश्वर बली और अन्य संगीत संरक्षक और लखनऊ के पारखियों ने, सांस्कृतिक रूप से जीवंत अवध रियासत की मदद से 1926 में लखनऊ में एक संगीत विद्यालय स्थापित किया था। इस विद्यालय का उद्घाटन अवध के तत्कालीन गवर्नर सर विलियम मैरिस के हाथों हुआ था और उनके नाम पर ही इस विद्यालय का नाम "मैरिस कॉलेज ऑफ़ म्यूज़िक" रखा गया था।
वहीं 26 मार्च 1966 को, उत्तर प्रदेश के राज्य शासन ने इस विश्वविद्यालय को अपने नियंत्रण में ले लिया और इसके संस्थापक के रूप में इसका नाम बदलकर "भातखंडे कॉलेज ऑफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक" रख दिया। राज्य सरकार के अनुरोध पर, 24 अक्टूबर, 2000 को एक अधिसूचना द्वारा भारत सरकार ने इस संस्थान को "डीम्ड (Deemed) विश्वविद्यालय" घोषित कर दिया। भातखंडे संगीत संस्थान सोसायटी अधिनियम 1860 के पंजीकरण के तहत पंजीकृत है और एक स्वायत्त संस्थान है। संस्थान ने कई विख्यात गायक दिए हैं, जिसमें पंडित एसएन रतनजंकर, अनूप जलोटा, कनिका कपूर और तलत महमूद शामिल हैं।
समय के साथ इस संस्थान ने काफी प्रगति कर ली है और संगीत सीखाने के तरीके में भी काफी परिवर्तन कर लिए है। लोगों के समक्ष संगीत को बढ़ावा देने के लिए संस्थान ने नए विचारों को अपनाया है, लेकिन साथ ही साथ यह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की पवित्रता की रक्षा करता है। आज भातखंडे में न केवल छात्रों को शास्त्रीय राग और नृत्य सिखाया जाता है, बल्कि यहाँ संगीत शिल्पशाला में एक गीत रिकॉर्ड (Record) करने की बारीकियां भी सिखाई जाती हैं।
साथ ही यहाँ छात्रों को खुद को बढ़ावा देने और सोशल मीडिया (Social Media) के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाने की कला भी सिखाई जाती है। वहीं 2019 में केवल पांच वर्षों में संस्थान में छात्रों की संख्या 670 से बढ़कर 3,000 हो गई थी। आज श्रीलंका, नेपाल आदि बहुत से एशियाई देशों एवं विश्व भर से साधक यहाँ नृत्य-संगीत की साधना करने आते हैं।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में भातखण्डे संगीत संस्थान का पुराना चित्र है।
2. दूसरे चित्र में भातखण्डे संगीत संस्थान का नवीन चित्र है।
3. तीसरे चित्र में दीक्षांत समारोह के दौरान नृत्य कार्यक्रम का चित्र है।
4. चौथे चित्र में संस्थान का नामपट अंकित है।
5. पांचवे चित्र में दीक्षांत समारोह के दौरान कार्यक्रम का चित्र अंकित है।
6. छटे चित्र में संस्थान की ईमारत का केंद्रित चित्रण है।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Bhatkhande_Music_Institute_Deemed_University
2. https://bit.ly/2MWNnoa
3. http://bhatkhandemusic.edu.in/history/
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