समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
आर. एन. ए.विषाणु (RNA Virus) और उनकी खासियत जिसके कारण वे किसी बीमारी को महामारी के स्तर तक ले जा सकते हैं, इसमें विषाणु का बदलाव यानी वेरिएशन (Variation) बड़ी भूमिका निभाता है। औषधि क्षेत्र में इस विषाणु की रोकथाम के लिए निरंतर प्रयास हो रहे हैं। रोगजनक आर.एन.ए. विषाणु सबसे महत्वपूर्ण समूह है जो कि पशु जनित बीमारी के फैलने में, साथ ही वैश्विक स्तर पर बीमारी के नियंत्रण के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं। आर. एन. ए. विषाणु की जैविक विविधता और तीव्र अनुकूलन दर के कारण आधुनिक चिकित्सीय तकनीक के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि इससे पार कैसे पाया जाए? कैसे पहले से ही इसके फैलने का अंदाज लगाया जाए?
यह बात 2017 में छपे एक शोध पत्र में कही गई है। sars-cov-2 विषाणु आर एन ए विषाणु की श्रेणी का ही हिस्सा है। जितने भी सशक्त रोगजनक विषाणु हैं जो कि एक जाति से दूसरी जाति में बीमारी फैलाते हैं, उनमें से आर. एन. ए.विषाणु विशेष चिंता का विषय हैं। आर. एन. ए.विषाणु महत्वपूर्ण पशु जनप्रतिनिधि हैं जिनका मूल वन्य जीवन है। पिछले कुछ दशकों में किए गए शोधों के अनुसार आर. एन. ए.विषाणु प्राथमिक विज्ञान का प्रतिनिधि और मनुष्य में दिखने वाला रोगजनक विषाणु है, जिसने संक्रामक बीमारियों के वाहक के रूप में 44 प्रतिशत के साथ (अलग-अलग शोधों के अनुसार यह सीमा 25-44 प्रतिशत है) जीवाणु (10- 49 प्रतिशत) और बाकी सभी परजीवी समूहों जैसे कि कवक ( 7- 9 प्रतिशत) प्रोटोजोन (11 -25 प्रतिशत) को पीछे छोड़ दिया है।
बाल्टिमोर वर्गीकरण (The Baltimore Taxonomy) जिसे डेविड बाल्टिमोर (David Baltimore) ने विकसित किया था, एक ऐसी वर्गीकरण प्रणाली है जिसमें विभिन्न वायरसों को उनके जिनोम के प्रकार के अनुसार अलग-अलग परिवारों में एकत्रित किया जाता है। जिनोम के प्रकार से तात्पर्य है डीएनए, आरएनए, सिंगल स्ट्रेन्डेड (ss, single-stranded), डबल स्ट्रैंडेड(ds, Double Stranded) इत्यादि। इस वर्गीकरण में वायरसों के पुनर्निर्माण के तरीकों को भी आधार बनाया गया है।
वर्गीकरण
समूह1 - डबल स्ट्रैंडेड डीएनए विषाणु( उदाहरण: एडिनो विषाणु, हरपीज विषाणु, पॉक्स विषाणु ) । इस तरह के विषाणु के लिए जरूरी है कि वह मेजबान के नाभिक में अपनी प्रतिकृति बनाने से पहले प्रवेश करें। इस बारे में सुचिंतित रूप से सिर्फ एक उदाहरण है जिसमें समूह एक का विषाणु नाभिक में अपनी प्रतिकृति नहीं बनाता वह है: पॉक्स विषाणु परिवार, एक जबरदस्त रोगजनक विषाणु है जो कशेरुकी प्रजाति को संक्रमित करता है। इसमें स्मॉल पॉक्स विषाणु भी शामिल है।
समूह 2- सिंगल स्ट्रैंडेड डीएनए विषाणु ( उदाहरण: पार्वो विषाणु) इस श्रेणी में शामिल विषाणु है। अनेल्लोविरिदै और पार्वोविरिडी (Anelloviridae and Parvoviridae) ( यह कशेरुकी प्रजाति को संक्रमित करते हैं) जैमिनीविरिडी और नैनोविरिडी (geminiviridae and nanoviridi) ( जो पौधों को संक्रमित करते हैं)।
समूह 3- डबल स्ट्रैंडेड आरएनए विषाणु( उदाहरण: रियो विषाणु)। जैसा कि ज्यादातर R.N.A. विषाणु में होता है, यह समूह कैप्सिड के अंदरूनी भाग अर्थात साइटोप्लाज्म में अपनी प्रतिकृति बनाता है। इस प्रतिकृति का कारण मोनोसिस्ट्रोनिक होता है।
समूह 4- सिंगल स्ट्रैंडेड आरएनए विषाणु पॉजिटिव सेंस (उदाहरण: कोरोना विषाणु, पाई- कोरोना विषाणु, टोगा विषाणु)
समूह 5- सिंगल स्ट्रैंडेड आरएनए विषाणु- नेगेटिव सेन्स ( उदाहरण: ऑर्थोमाइसो विषाणु, रहाड्डो विषाणु)
समूह 6 - सिंगल स्ट्रैंडेड आरएनए विषाणु, पॉजिटिव सेंस, जो एक डीएनए इंटरमीडिएट के माध्यम से अपनी प्रतिकृति बनाते हैं। (उदाहरण रेट्रोवायरस)
समूह 7 - डबल स्ट्रैंडेड डीएनए विषाणु जो एक सिंगल स्ट्रेन्डेड आर एन ए इंटरमीडिएट के माध्यम से अपनी प्रतिकृति बनाते हैं ( उदाहरण: हेपा विषाणु)
आर एन ए विषाणु ऐसा विषाणु है जिसमें आर.एन.ए. (राइबोन्यूक्लिक एसिड) अनुवांशिक सामग्री के तौर पर होता है। ज्यादातर यह न्यूक्लिक एसिड single-stranded आर एन ए होता है लेकिन कभी-कभी डबल स्ट्रॉन्डेड आर एन ए भी हो सकता है। आर एन ए विषाणु द्वारा जो बीमारियां इंसानों को होती हैं उनमें शामिल है- सामान्य सर्दी जुकाम, इनफ्लुएंजा,sars , कोविड-19, हेपेटाइटिस सी, हेपेटाइटिस इ , वेस्ट नाइल फीवर, इबोला विषाणु रोग, रेबीज, पोलियो इत्यादि। आर.एन.ए. विषाणु सामान्य श्रेणी के रोगजनक विषाणु होते हैं जो इंसानों में होने वाली नई बीमारियों के कारक होते हैं और यह 2-3 नए नॉवेल विषाणु प्रतिवर्ष की दर से पाए जाते हैं। हाल ही में एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में संक्रमित होने वाले आर.एन.ए. विषाणु जैसे कि चिकनगुनिया (ChikV) और जीका (ZikV) विषाणु, जो की नई वैश्विक महामारी बन कर सामने आए हैं। 5 पशुजन्य आर.एन.ए. विषाणु जो बहुत तीव्रता से संक्रमित करते हैं उनमें शामिल हैं- लासा बुखार, इबोला विषाणु, मिडिल ईस्ट रेस्पिरेट्री सिंड्रोम (MERS), सार्स (SARS), इनफ्लुएंजा A वायरस (IaV)।
आर.एन.ए. वायरस के विरुद्ध दवाइयों की औषधीय जंग
दवा प्रतिरोधी रोगजनक, यानी जिन पर दवाइयों का असर नहीं होता, पिछले दशक में उनकी बढ़ती संख्या ने एक चिकित्सीय आपातकाल भी खड़ा कर दिया है । उदाहरण के रूप में यह ज्ञात तथ्य है की एचआईवी का अगर जरा सा भी एंटी रेट्रोवायरल दवा से संसर्ग होता है तो अगर उन दवाइयों के साथ कुछ अतिरिक्त दवाइयां मिलाकर ना दी जाएं तो बीमारी दवा प्रतिरोधी हो जाती है।
मल्टी ड्रग थेरेपी( यानी बहुत अधिक सक्रिय एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी)
यह थेरेपी एक कारगर उपाय के रूप में सामने आई और जल्द ही वह एचआईवी/ एड्स के मरीजों के लिए देखभाल का मानक बन गई। आर.एन.ए. वायरस की असाधारण विकासात्मक क्षमताओं ने औषधीय क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की वैकल्पिक दवाइयों के शोध को जबरदस्त बढ़ावा दिया। वैक्सीन के विकास की आधुनिक तकनीकों ने भी आकर्षक विकासात्मक नियंत्रण प्रणाली विकसित की है। हालांकि पिछले दशक में वायरस, इनफ्लुएंजा, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी संक्रमण के इलाज से काफी लाभ मिला है, फिर भी विशिष्ट दवाइयां अभी भी निर्मित होनी बाकी है जो अन्य रोगजनक आर.एन.ए. वायरस को नियंत्रित कर सकें।
चित्र सन्दर्भ:
1. सूक्ष्मजीव (WIkimedia)
2. बाल्टीमोर वर्गीकरण के अनुसार वायरस के सात समूहों का दृश्य (Prarang)
3. अमेरिकन बायोलॉजिस्ट डेविड बाल्टीमोर द्वारा बनाए गए वायरस का बाल्टीमोर वर्गीकरण वायरल एमआरएनए परासरण की विधि पर आधारित है। (Wikipedia)
सन्दर्भ:
1. https://academic.oup.com/ilarjournal/article/58/3/343/4107390
2. https://en.wikipedia.org/wiki/RNA_virus
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Baltimore_classification
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.