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टिड्डियाँ (Locusts) अक्रिडीडेई (Acr।d।dae) कुल के छोटे-छोटे टिड्डो की प्रजतिओं के संग्रह हैं, जिनमें वृन्दक प्रवस्था होती है। ये कीट आम तौर पर अकेले होते हैं, किन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में इनके व्यवहार और आदतों में परिवर्तन होता है और ये झुण्ड में रहते हैं। टिड्डियाँ प्रागैतिहासिक काल से ही एक विपत्ति के रूप में उपस्थित रही हैं। प्राचीन मिश्रवासियों ने उन्हें अपने मकबरों पर तराशा, इलियड, महाभारत, बाइबल और कुरान में भी इन कीटों का उल्लेख है। कई बार इनके द्वारा फसलों को बर्बाद कर दिया गया और ये मानव प्रवास का प्रमुख कारण बनीं। साहित्यों के अध्ययन से पता चलता है कि टिड्डियों की व्यापकता इतिहास में कई बार विपत्ति के रूप में उपस्थित हुई। कीट अप्रत्याशित रूप से हवा की दिशा और मौसम बदलने के साथ आ पहुँचते हैं और इसके परिणाम भयानक होते हैं।
हाल ही में कोरोना वायरस (Corona V।rus) की आपदा के कारण विश्व भर में हुए लॉकडाउन (lockdown) ने मनुष्यों को अपने घरों में ही सीमित रहने पर विवश कर दिया है, किन्तु साथ ही इसने प्रकृति को साँस लेने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया। मछलियों, पंक्षियों और कीटों की कई प्रजातियां इस दौरान मानो पुनर्जीवित हो उठी हैं। पर्यावरणविदों के एक दल को गोमती नदी में नोटोपेट्रस (Notopetrus) नामक प्रजाति की मछली देखी, जो वर्तमान समय में संकटग्रस्त है। ये मछलियां सामान्यतः छ: महीने में एक आध बार ही दिखाई देती हैं। विशषज्ञों द्वारा बताया गया कि ये मछलियों मात्र शुद्ध जल में ही जीवित रह सकती है, लॉकडाउन के कारण नदियों में प्रदुषण घटा है तथा ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी है जिसके कारण मछलियों की इस प्रकार की प्रजाति को देखा जा सका।
पिछले कुछ दिनों में राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में टिड्डियों के झुण्ड दिखाई दिए, जो एक सामान्य बात है। इस प्रकार के झुण्ड मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में भी देखे गए हैं। प्रथम बार टिड्डियों के इस झुण्ड को 11 अप्रैल को भारत-पाकिस्तान सीमा पर देखा गया था, जो कि अपने सामान्य समय से काफी पहले था। सामान्य रूप से भारत में टिड्डियां पाकिस्तान की सीमा पर जुलाई-अक्टूबर में देखी जाती हैं। गत वर्ष यह सुचना प्राप्त हुई कि इस झुण्ड ने पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के कुछ हिस्सों में रबी की फसल को भारी मात्रा में क्षति पहुँचायी। भारत में सर्वप्रथम 1997 में इस प्रकार के किसी झुण्ड को देखा गया था। भारत में टिड्डियों के आक्रमण से वर्तमान समय में फसलों की क्षति कम मात्रा में संभव हुई क्योंकि किसान अपनी रबी फसल की कटाई कर चुके हैं। महाराष्ट्र में नारंगी उगाने वाले किसानो ने इस पर चिंता व्यक्त की है, इस विषय में के. एल. गुर्जर ने आश्वासन दिया है कि महाराष्ट्र में इस पर काबू पाना आसान होगा। मानसून का समय टिड्डियों के प्रजनन का समय होता है, यह प्रमुख चिंता का विषय है। एक मादा टिड्डी अपने तीन माह के जीवन काल में 80-90 अंडे देती है। इन समुहों को यदि अनियंत्रित छोड़ दिया जाये तो इनकी संख्या 40-80 मिलियन टिड्डी प्रति किलोमीटर तक हो सकती है। वर्षा शुरू होने के बाद टिड्डियों का प्रजनन काल प्रारंभ हो जाएगा और अगले दो महीने तक चलेगा, जो कि प्रमुख चिंता का विषय है।
कीटों को नियंत्रित करने के लिए आज कल कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है, जिसे भूमि या हवाई वाहनों से छिड़का जाता है, जिससे पुरे झुण्ड को कम समय में ही नियंत्रित किया जा सकता है। किन्तु इस इस प्रकार के कीटनाशको से कुछ पर्यावरणीय चिंताए भी उत्पन्न होती हैं। संभवतः जैविक नियंत्रक जैसे बर्र, पक्षी तथा सरीसर्प, इसके लिए अधिक उपयुक्त हैं ये कीटों के झुंडो को दूर रखते हैं। किन्तु बड़े समूहों को नियंत्रित करने के लिए वर्तमान समय में कई प्रकार के कीटनाशको को विकसित किया गया है। जैसे ग्रीन मसल (Green Muscle) तथा अन्य फंगस आधारित कीटनाशक। इनका प्रयोग बड़े झुंडो को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है।चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में राजस्थान में आये टिड्डों के तूफ़ान को दिखाया गया है। (picsql)
2. दूसरे चित्र में एक रेतीले टिड्डे को दिखाया गया है। (Freepik)
3. तीसरे चित्र में राजस्थान में टिड्डों की भारी तादाद को प्रदर्शित किया गया है। (youtube)
4. अंतिम चित्र में टिड्डों के एक समूह को दिखाया गया है। (unsplash)
सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Locust
2. https://t।mesof।nd।a.।nd।at।mes.com/c।ty/lucknow/lucknow-clean-env।rons-।nv।te-rare-f।sh-butterfl।es/art।cleshow/76062124.cms
3. https://।nd।anexpress.com/art।cle/expla।ned/why-locusts-are-be।ng-s।ghted-।n-urban-areas-what-।t-can-mean-for-crops-6428703/
4. https://www.weforum.org/agenda/2015/11/how-can-we-control-locust-swarms/
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