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भोजन मनुष्य की प्रथम आवश्यकता है, समय के साथ- साथ यह आवश्यकता लज़ीज़ पकवानों और व्यंजनों मंं तबदील होती गयी। वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न स्वादों को चखना चाहता है, जिसमें उसकी मदद किताबें करती हैं। व्यंजनो में क्षेत्रीय विभिन्नता पायी जाती, जिसके चलते एक जगह पर रहते हुए सारे स्वादों का आन्नद ले पाना संभव नहीं है पर किताबो ने इस असम्भव कार्य को संभव कर दिया है। व्यंजनो पर आधारित किताबें अत्यंत प्राचीन समय से मिलने लगती हैं, जिसमें से कुछ तो भारत के नाम पर भी दर्ज है।
व्यंजनो पर आधारित सबसे प्राचीन लेख मेसोपोटामिया (Mesopotamia) से प्राप्त होता है, जिसके बाद व्यंजनो पर आधारित सबसे पहला संग्रह यूरोप (Europe) से प्राप्त होता है, जिसे डी री कोक्विनारिया ( De re coquinaria) के नाम से जाना जाता है, जिसे लैटिन में लिखा गया है। इसे पहली शताब्दी में संकलित किया गया है, हालांकि आधुनिक शोधकर्ता इसमें संदेह व्यक्त करते हैं, वर्तमान पाठ चौथी शताब्दी के अंत या पांचवीं शताब्दी में संकलित किया गया प्रतीत होता है। इसका पहला संस्करण 1483 में किया गया। इसमें प्राचीन ग्रीक (Greek) और रोमन (roman) व्यंजनों का वर्णन किया गया है, इसके अतरिक्त इसमें अन्य प्राचीन व्यंजनो के बारे में उल्लेख मिलता है।
यूरोप के अतरिक्त अरबी, चीनी और भारतीय भाषाओं में भी व्यंजन ग्रंथ लिखे गये हैं। भारतीय ग्रंथो में भारतीय व्यंजनो का वर्णन मिलता है, भारत एक बहुत ही विस्तृत देश है जिसमें विभिन्न प्रकार के लोग रहते है, जिनके खान पान में भी भिन्नता दिखायी पड़ती है, जिसके कारण पाक कला में भी क्षेत्रीय विभिन्नता देखने को मिलती है। शाकाहार ने भारतीय पाक कला पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। भारतीय खाना पकाने में मसालों की अहम भूमिका रही है, सबसे प्राचीन भारतीय व्यंजन ग्रंथ सुश्रुत संहिता है, जो कि दूसरी और चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच लिखी गई है, यह प्रमुख रूप से चिकित्सा पर आधारित है जिसमें मौसमी खाद्य पदार्थों और स्वादों का वर्णन किया गया है। इसके अतरिक्त सातवीं - आठवीं शताब्दी में अलवर संत नचियार थिरुमोझी ने अक्करवदिसल नामक एक व्यंजन का उल्लेख किया है, जिसमें वह “भगवान थिरुमल की भक्ति में अर्ककारवदिसल को समर्पित करना चाहते थे।
मानसोल्लास, 1130 इस्वी में चालुक्य राजा सोमेश्वर तृतीय के शासन के दौरान संकलित सबसे शुरुआती ग्रंथों में से एक है, इसमें इडली को संदर्भित “इडेरिका” सहित कई व्यंजनों को शामिल किया गया है। परंतु माना जाता है, कि जैन आचार्य शिवकोटि के कन्नड़ ग्रन्थ का वडार्धायन, जो कि 920 ईस्वी में लिखा गया है, इसी में इडली का सबसे पहला उल्लेख है। नियात्नाम मांडू (मध्य प्रदेश) के सुल्तान, घियाथ शाही, और उनके उत्तराधिकारी नासिर शाह के शासन के दौरान व्यंजनों का पंद्रहवीं शताब्दी का संग्रह है। इसमें खाना पकाने के साथ-साथ उपचार और कामोद्दीपक प्रदान करने के लिए व्यंजन शामिल हैं।
जैन धर्म के अनुयायी मंगरासा तृतीय द्वारा लिखित सोपा शास्त्र (1508 ईस्वी.) जो की शाकाहार पर आधारित है। इसमें सामग्री और खाना पकाने के तरीकों को विस्तार से बताया गया है, और यहां तक कि आवश्यक प्रकार के बर्तन और ओवन (Ovan) का उल्लेख किया गया। आईने-अकबरी कि पहली किताब 1590 में लिखी गई, जिसमें कई तरह के व्यंजन दिए गए हैं, जो की मुख्य रूप से मुगल अभिजात वर्ग के बीच प्रचलित हैं। इसके साथ ही 1675 और 1700 के बीच रघुनाथ द्वारा लिखी गई भोजन कुतुहल में कई घटक और व्यंजन हैं जो महाराष्ट्र क्षेत्र में प्रचलित हैं। शाहजहाँ के शासन काल में लिखी गयी नुसखा-ए-शाहजहानी भी व्यंजनो पर आधारित प्रमुख ग्रंथो में से एक है। इस प्रकार से हम देख सकते हैं की भारत में प्राचीन काल से ही खाद्य पाक कला पर अनेकों कार्य किये जा चुके हैं जिसका आज यह प्रमाण है की भारत में पाक कला इतनी विकसित है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में मानसोल्लास से उद्धृत एक चित्र दिखाया गया है। (Wikimedia)
2. दूसरे चित्र में डी री कोक्विनारिया नामक पुस्तक है जो प्रथम सदी की मानी जाती है। (Flickr)
3. तीसरे चित्र में सुश्रुत संहिता का चित्र है। (Pinterest)
4. चौथे चित्र में आइन-ए-अकबरी का चित्रण है। (Wikipedia)
सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Cookbook
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_cookbooks
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Food_blogging
4. https://bit.ly/2WUgluI
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