आर्थिक विकास की संजीवनी : आयात प्रतिस्थापन

नगरीकरण- शहर व शक्ति
08-05-2020 01:00 PM
आर्थिक विकास की संजीवनी : आयात प्रतिस्थापन

आर्थिक जीवन नवाचार की कृपा से विकसित होता है,और इसका विस्तार आयात प्रतिस्थापन से होता है। -जेन जेकॉब्स (Jane Jacobs)

क्या होता है आयात प्रतिस्थापन? भारत के नॉन मेट्रो शहरों में स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर पैदा करना या शहर-मुक्त बाज़ार आर्थिकी प्रक्रिया द्वारा शहर के आयात को बदलकर, शहर के अंदर से उत्पादन करना? दरअसल, इन दोनों सवालों का जवाब ‘हाँ’ है।इस बहस को एक निष्कर्ष तक पहुँचाया जेन जेकॉब्स ने जो शहरी योजना के क्षेत्र में पायनियर (Pioneer) हैं।जेन जेकॉब्स (4 मई 1916-25 अप्रैल 2006) एक अमेरिकी-कनाडाई पत्रकार, लेखक और कार्यकर्ता थीं जिन्होंने शहरी अध्ययन, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र को प्रभावित किया।हालाँकि, ज़्यादातर अर्थशास्त्रियों ने उनकी अनदेखी की।जेन जेकॉब्स ने 2003-04 में चीन और भारत के बड़े शहरों की सुप्त-शक्ति को उभारा देश के सतत विकास के लिए।चीनी शहरों ने तो विकास किया लेकिन भारत के 9000 शहरों की ज़्यादातर शक्ति अप्रयुक्त रही क्योंकि औद्योगिक विकास बड़े स्तर पर भारत के मुख्य 20 बड़े शहरों पर केंद्रित रहा, इसमें लखनऊ भी शामिल था।Cities and the wealth of Nations किताब में जेन जेकॉब्स की सबसे महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि थी उनका यह पहचानना कि देश नहीं, शहर वह केंद्रीय आयोजक भूगोल है जिसके चारों ओर अर्थव्यवस्था का ढाँचा बना है।तमाम आलोचना और तिरस्कार के बावजूद जेन ने हार नहीं मानी। उनके लिए अंत का मतलब अर्थव्यवस्था था और पेचीदा सम्बंध जो मानवता को खिलने का मौक़ा देते हैं। क्यों चीन और भारत सतत विकास के पथ पर आगे बढ़ते रहेंगे।

सितम्बर 2004 के Basic Points के अंक में डोनल्ड कॉक्स (Donald Coxe) ने लिखा- चीन की महारणनीति है विदेशी तकनीक पर आधारित फ़ैक्ट्रीज़ के निर्माण में सीधे विदेशी निवेश को बढ़ावा देना, ब्रांड के नाम और वैश्विक वितरण के ज़रिए यह सारे विश्व के लिए एक कार्यशाला बन गई।चीन में यह कुशलता भी है कि वह लगातार अपने उत्पादों की लाइन बदलते रहते हैं सिर्फ़ निर्यात के लिए नहीं, बल्कि आयात के विकल्प के लिए भी।यह अंतिम सच, जेन जेकॉब्स के अनुसार, एक महत्वपूर्ण हिस्सा है राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास का।उनकी मौलिक किताब ‘Cities and the Wealth of Nation's’, यह दिखाती है कि उभरती अर्थव्यवस्था निर्यात विकास द्वारा ज़्यादातर असफल हो जाती है।अर्जेंटीना इसका एक उत्तम उदाहरण है कि किस तरह अपर्याप्त, निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था वैश्विक श्रेणियों में हर दशक में नीचे डूबती चली गई।कोरिया, जिसने शानदार तौर पर आयात को हटाकर तरक़्क़ी करके प्रति कैपिटा (Capita) GDP जोकि 1960 में अर्जेंटिना की 1/5 थी वह आज कनाडा की बराबरी में आ गई।जेकॉब्स ने शहरों के विकास का ख़ाका बताया जो इतिहास में पहली बार आज वृहत्तर स्तर पर विश्व में शानदार तरीक़े से इस्तेमाल हो रहा है।

जेकॉब्स की विकास की सीढ़ी के 7 सूत्र
1. देश नहीं, शहर होते हैं अर्थव्यवस्था के निर्माण के प्रमुख अंग।आर्थिक वृद्धि की गतिकी (Dynamics) को समझने के लिए अलग-अलग शहरों को देखना होगा जहां यह सम्पन्न होती है।
2. एक शहर के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, एक देश के शहरों के आपसी व्यापार से अलग नहीं है।एक शहर के लिए उसके कुल आयात-निर्यात ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं बिना यह सोचे कि वह देश के अंदर से आ रहे हैं या बाहर से।
3. एक बार जब आपका ध्यान शहर पर केंद्रित हो जाता है, आप यह पड़ताल शुरू कर सकते हैं कि शहर कैसे विकसित होते हैं।शहर समझौतों की तरह होते हैं जिनमें नया काम पुराने काम में जुड़ता रहता है।जेकॉब्स स्पष्ट करती हैं-‘नया काम बढ़ता जाता है और एक शहर के श्रम के विभाजन में विविधता लाता है जिससे नए काम का आधार बनता है और नए प्रयोगों की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं।
4. शहरों के विकास का महामंत्र आयात प्रतिस्थापन है। यह सरकार द्वारा 1970 में लागू आयात प्रतिस्थापन नहीं है बल्कि जेकॉब्स के अनुसार पूँजीवादी प्रक्रिया है जो अपने-आप पैदा होती है क्योंकि यह सबसे ज़्यादा किफ़ायती होती है।आयात का प्रतिस्थापन सामान्य तौर पर एक प्रक्रिया है जिसमें एक सामान जो पहले शहर के बाहर से ख़रीदा जा रहा था,अब शहर के अंदर निर्मित हो रहा है।
5. इस साधारण प्रक्रिया के अनेक प्रभाव होते हैं-
(1) यह शहर की अर्थव्यवस्था को विस्तार देता है जिससे श्रम के नए विभाग बनाकर वे चीज़ें और सेवाएँ तैयार की जाती हैं जो पहले आयात की जाती थीं।
(2) यहशहर की विविधता को बढ़ाता है।अब यहाँ ज़्यादा उद्योग उपलब्ध हैं नए नवोन्मेषों और नए आयातों को प्रतिस्थापित करने के लिए।
(3) इसके द्वारा वह पूँजी मुक्त हो जाती है जो पहले बाहर से चीज़ें आयात करने में ख़र्च होती थी, इस प्रकार इससे नई चीज़ें और सेवाएँ आयात की जा सकती हैं।
(4.) इस सिद्धांत की सत्यता जापान, ताइवान और कोरिया की सफलता से सिद्ध हो जाती है।
6. आयात से इस प्रक्रिया में कुछ ज़रूरी भूमिकाएँ पूरी हो जाती हैं।मूल्यवर्धन प्रक्रिया में उनके सुझाव शामिल हो जाते हैं। वे चीज़ों और सेवाओं के नए स्रोत बताते हैं जिनसे शहर में चल रहे उद्योगों में फिर से परिवर्तन सम्भव हो जाते हैं।इस तरह वह कच्चे माल की तरह अगले विकास में काम आते रहते हैं।आयात सकारात्मक फ़ीडबैक (feedback) प्रक्रिया शुरू करता है।जब शहर निर्यात से कमाई पूँजी का प्रयोग आयात में करते हैं, उससे शहर निरंतर विकास करते हैं।
7. निर्यात भी निश्चित रूप से तरक़्क़ी की चाभी होते हैं।लेकिन सारे निर्यात एक से नहीं होते।शहरों के लिए ज़रूरी है उच्च श्रेणी का निर्यात गुणक (multiplier)।निर्यात गुणक यह बताता है कि कितनी नौकरियों और उद्योगों की रचना निर्यात सामग्री के निर्माता के तौर पर हुईं और कितने उपभोक्ता उनके लिए काम करते हैं।निष्क्रिय शहरों में छोटा निर्यात गुणक होता है।इसका मतलब यह है कि निर्यात का बड़ा हिस्सा कच्चा माल ख़रीदने में नहीं जाता, वह तैयार उपभोक्ता सामग्री में जाता है जो सीधे निर्यात व्यापार में जाती है।

इस तरह शहर इन प्रक्रियाओं की वजह से विकसित होते है, न कि उन घटनाओं से जो बाहर घटित होती हैं। क्षेत्रों का अर्थशास्त्र और गरिमा आयात प्रतिस्थापन की कैसे लोहा आग में तपकर विभिन्न आकृतियों में ढल जाता है, कुछ इसी तरह की जेन जेकॉब्स ने चुनौतियों को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उनके सोच की व्यापकता, दूरदर्शिता और ऊर्जा से भरी हुई आत्मा ने उन्हें बीसवीं शताब्दी के अंतिम भाग का सर्वश्रेष्ठ कल्पनाशील अर्थशास्त्र का चिंतक बना दिया।वह छोटी-छोटी चीज़ों में बड़े-बड़े सपने देखती थीं। लकड़ी का इस्तेमाल करके और पत्थरों को इकट्ठा करके चेरी की मेज़ें, सफ़ेद देवदार की छत और ग्रेनाइट की सीढ़ियाँ - क्षेत्रीय उत्पादों के कल्पनाशील उपयोग उनके जीवन का ज़रूरी हिस्सा बन गए थे। बाज़ार में विविध उत्पादों की उपलब्धता मौसमों के हिसाब से बदलेगी- गर्मियों में बेरी, पतझड़ में सेब, फ़रवरी में नया चिनार का रस, वसंत में लहसुन और गाजर।नैसर्गिक स्रोतों की रक्षा करके, उन्हें नया रूप देकर उसे अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाया जाए।जेकॉब्स मानती थीं कि सतत सुदृढ़ अर्थव्यवस्था प्राप्त करने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आपके क्षेत्र में क्या आयात हो रहा है और वे परिस्थितियाँ पैदा की जाएँ जिनमें उन चीज़ों को क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों और कामगारों की मदद से पैदा किया जाए। उन्होंने इस प्रक्रिया को नाम दिया - Import Replacement (आयात प्रतिस्थापन)।

चित्र (सन्दर्भ):
दोनों ही चित्रों में आयातित माल को दिखाया गया है।
सन्दर्भ:
https://seekingalpha.com/article/67782-jane-jacobs-on-why-china-and-india-will-continue-to-grow
https://centerforneweconomics.org/publications/the-grace-of-import-replacement/
https://www.strongtowns.org/journal/2016/5/3/import-replacement
https://en.wikipedia.org/wiki/Jane_Jacobs

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