लखनऊ की चिकनकारी और आरी कढ़ाई बन सकती हैं आपके संग्रह का हिस्सा

स्पर्शः रचना व कपड़े
27-04-2020 02:20 PM
लखनऊ की चिकनकारी और आरी कढ़ाई बन सकती हैं आपके संग्रह का हिस्सा

हम जानते हैं कि भारत में कपड़े और कढ़ाई के दोनों प्रकार से उच्च गुणवत्ता वाले वस्त्र बनाने का प्राचीन इतिहास देखा जा सकता है। वहीं विश्व भर में प्रचलित, भारत के बाहर मौजूद कुछ बेहतरीन संग्रहालयों में प्राचीन भारतीय वस्त्रों को प्रदर्शित करने वाले लोकप्रिय वर्ग मौजूद हैं। कई विदेशी प्रत्येक वर्ष भारत के छोटे शहरों में आकर प्राचीन भारतीय वस्त्रों को इकट्ठा करते हैं, वे इन वस्त्रों को निश्चित रूप से प्राचीन वस्तुओं की दुकानों में बहुत अधिक मूल्य में बेचते होंगे। ऐसे ही एक निवेश के रूप में विशिष्ट कपड़ों का संग्रह सौंदर्य आनंद; सामाजिक प्रतिष्ठा; बौद्धिक चुनौती; और लंबी अवधि के वित्तीय पुरस्कार भी दिला सकते हैं।

वहीं जो लोग विशिष्ट उद्योग से विशिष्ट कपड़े खरीदते हैं, वे संग्राहकों की इस श्रेणी में आते हैं: नौसिखिए अपनी पहली खरीदारी करते हैं; अधिक अनुभवी संग्राहक, बेहतर टुकड़े खरीदने के लिए आत्मविश्वास प्राप्त करना; और लंबे समय तक संग्रह करने वाले संग्राहकों ने एक उच्च छह-आंकड़ा संग्रह इकट्ठा किया है। चलिए नए संग्राहकों के लिए कुछ संग्रह के दिशा-निर्देश बताते हैं :
यह ध्यान में रखें कि वर्तमान में प्रवृत्ति में चल रहे कपड़ों को अपनी संग्रह की सूची में डालें, क्योंकि जो आज प्रवृत्ति में है, वह कुछ वर्षों बाद सफल संग्राहकों को सबसे अधिक आकर्षित करेगा। वहीं अपने संग्रह में अपनी पसंद की चीजों को ही खरीदें, अधिकांश लोग वो कपड़े खरीद लेते हैं जो उन्हें पसंद नहीं होते हैं। कई सफल संग्राहक सरल विचार के साथ अपनी संग्रहण शैली को शुरू करते हैं, जैसे वे पहले इस पर विचार करते हैं कि वे सुंदर कपड़ों को पहनने या सराहने के लिए पसंद करते हैं। जिससे कपड़ों को खरीदने में आसानी हो जाती है। एक विशिष्ट क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना एक व्यावहारिक कला के रूप में गंभीर संग्रह का उपोत्पाद है। जैसा कि संग्राहक अधिक जानकार हो जाता है, वह अपनी विशेषज्ञता के विकासशील क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने लगते हैं।

वहीं साथ ही संग्राहक द्वारा उच्च गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना काफी आवश्यक है, ये सरल विचार पुराने कपड़ों को इकट्ठा करने और वास्तव में सभी संग्रह का सिद्धांत है। 3,000 वर्षों के लिए, फैशन (Fashion) का एक मुख्य उद्देश्य, विशेष रूप से महिलाओं का पहनावा सामाजिक प्रेरणा या कम से कम उस सामाजिक स्थिति को प्रदर्शित करता है, जिसकी वह इच्छा रखती हैं। प्रचलित कपड़ों को हमेशा बारीक, विशिष्ट और महंगा बनाया जाता है। इन गुणों ने ऐसे कपड़ों का अधिग्रहण करने के लिए समय, धन और विवेक के साथ उच्च फैशन परिधान के लिए बाजार को प्रतिबंधित कर दिया है। लखनऊ पूरे विश्व में चिकनकारी और आरी कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है, फिर भी बहुत कम लोगों द्वारा इसके पुराने कपड़े संग्रह किये जा रहे हैं, जो एक प्रकार से दुख की बात है। केवल इतना ही नहीं हमारे शहर में ब्रिटेन के लंदन में स्थित विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय या यहां तक कि हमारे भारत के भुज, अहमदाबाद और दिल्ली में मौजूद संग्रहालय जैसे उचित कपड़ा संग्रहालय भी नहीं हैं। जबकि लखनऊ अवध के कपड़ों के इतिहास को प्रदर्शित करता है। यह लखनऊ के लोगों के लिए प्राचीन वस्त्रों का संग्रह शुरू करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

रेशम, ऊन और कपास से बने प्राचीन भारतीय वस्त्र प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक व्यक्ति के लिए जटिल और उद्देश्यपूर्ण है। वहीं यदि किसी व्यक्ति की तलाश एक संपूर्ण भारतीय घर की सजावट के लिए हो या आदिवासी कला से दीवार को सजाने की। भारतीय वस्त्र कला विविध रंग, बनावट, आकार की एक शुष्क अतर प्रदान करती है। किसी विशेष समारोह के कपड़े, शादी की शाल काभी कभी उपयोग किये जाने के कारण से अच्छी तरह से संरक्षित रहते हैं। एक प्राचीन रेशम साड़ी, भले ही वह खंडित हो लेकिन वो प्राचीन भारतीय कपड़े का 3 मीटर तक प्रदान करता है। भारत में भी सबसे अनोखे पुराकालीन वस्त्र मौजूद हैं, वास्तुकारों, डिजाइनरों, प्राचीन विक्रेता और रूचिकारों के निविष्टियों के साथ दुर्लभ और विभिन्न तरह के वस्त्र के लिए पूरे भारत में मौजूद दुकानों और डीलरों की सूची निम्न है :-
1. म्यूज़ीअम क्वालिटी टेक्सटाइल्स :-
वजीर परिवार 50 से अधिक वर्षों से दुर्लभ वस्त्रों का संग्रह कर रहा है। इन्होंने पंजाब, पाकिस्तान में सिंध प्रांत, बांग्लादेश और यहां तक कि दक्षिण पूर्व एशिया के मूल प्राचीन कशीदाकारी, ब्लॉक प्रिंट, और यहां तक कि बने-बनाए कपड़े और वेशभूषा को इकट्ठा किया हुआ है। एक 150 वर्षीय पुरानी जैन तोरण (जिसमें हाथ से कशीदाकारी की हुई है) संग्रह के अद्वितीय टुकड़ों में से एक है।
2. बालाजी टेक्सटाइल्स:- हैदराबाद स्थित यह दुकान प्रतिष्ठित रूप से उद्गम साड़ियों की एक विस्तृत चयन को प्रतिष्ठित करता है। इसमें साड़ियों के कुछ सबसे अनूठे और दुर्लभ संग्रह, जैसे पुराने बनारस मूल से लेकर नए जटिल जरी वस्त्र शामिल हैं। दुकान की कुछ साड़ियों में 60 वर्ष पहले के मूल स्वर्ण कार्य भी देखने को मिलते हैं।
3. द कार्पेट सेलर :- दिल्ली के एमजी रोड में स्थित यह दुकान संग्रहालय-गुणवत्ता और प्रमाणित प्राचीन कालीनों के सबसे बड़े संग्रह में से एक है। प्राचीन जनजातीय गलीचों, किलिमिस (Kilims) और कालीनों के अलावा, उनके पास हाथ से बने वस्त्र और दीवार के लटकन का एक अविश्वसनीय संग्रह है।

भारत में ऐसे ही कई पुराकालीन वस्त्र के संग्रह वाली दुकाने मौजूद हैं, जहां जाकर नए संग्राहक कई महत्वपूर्ण चीजें सीख सकते हैं।

चित्र (सन्दर्भ):
1.
मुख्य चित्र में चिकिनकारी द्वारा तैयार किये गए वस्त्रों का संग्रह दिखाया गया है।, Youtube
2. दूसरे चित्र में चिकनकारी किये हुए कुर्ते को दिखाया गया है।, Wikiwand
3. तीसरे चित्र में वस्त्र पर चिकनकारी करने के दौरान का दृश्य है।, Youtube
4. चतुर्थ चित्र में चिकनकारी की महत्ता को प्रदर्शित करता हुआ एक वस्त्र दिखाई दे रहा है।, Wikimedia
संदर्भ :-
1. https://www.vintagetextile.com/new_page_203.htm
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Textile_museums_in_India
3. https://www.architecturaldigest.in/content/ads-guide-to-antiques-around-the-country/
4. http://www.antiquetibet.com/PHOTOALBUMS/Indiaphotoalbum/index.htm

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