देश में बैंकिंग प्रणाली और मुद्रा बाज़ार का नेतृत्व करता है भारतीय रिज़र्व बैंक

नगरीकरण- शहर व शक्ति
28-03-2020 03:30 PM
देश में बैंकिंग प्रणाली और मुद्रा बाज़ार का नेतृत्व करता है भारतीय रिज़र्व बैंक

किसी भी देश का विकास उसकी अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है। इसे संतुलित बनाए रखने के लिए भारतीय रुपये की आपूर्ति तथा इससे सम्बंधित मुद्दों का नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। भारत में यह नियंत्रण भारतीय रिज़र्व बैंक - आरबीआई (Reserve Bank of India) द्वारा किया जाता है। आरबीआई भारत का केन्द्रीय बैंक है, जो भारतीय रुपये की आपूर्ति तथा इससे जुड़े अन्य मुद्दों को नियंत्रित तथा संचालित करने का कार्य करता है। पूरे भारत में आरबीआई, बैंकिंग (Banking) का नियामक है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत सरकार की विकास रणनीति में आरबीआई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में जितने भी वाणिज्यिक बैंक और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां (Non-banking finance companies) स्थापित हैं, उनको भी नियंत्रित करने का कार्य आरबीआई करता है। एक प्रकार से आरबीआई देश में बैंकिंग प्रणाली और मुद्रा बाज़ार का नेतृत्व करता है।

इसकी स्थापना 1 अप्रैल सन 1935 को रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ऐक्ट (Reserve Bank of India Act) 1934 के अनुसार हुई। भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अहम भूमिका निभाई। इसकी स्थापना के लिए आवश्यक दिशा-निर्देशों या निर्देशक सिद्धांतों का निर्माण भी डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ही किया। इसका प्रारम्भिक केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जिसे 1937 में मुम्बई में स्थापित किया गया। प्रारम्भ में यह एक निजी बैंक के रूप में कार्यरत था किंतु 1949 से इसका राष्ट्रीयकरण किया गया और तब से यह पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में है। रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने मुद्रा परिचालन एवं काले धन की दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करने हेतु 31 मार्च 2014 तक सन् 2005 से पहले जारी किये गये सभी सरकारी नोटों को वापस लेने का निर्णय लिया था। मौद्रिक नीति (Monetary policy) समिति की स्थापना होने तक, इसने भारत में मौद्रिक नीति को भी नियंत्रित किया।

आरबीआई का सामान्य अधीक्षण और निर्देशन 21 सदस्यीय केंद्रीय निदेशक मंडल करते हैं: राज्यपाल, चार उप राज्यपाल, दो वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधि (आमतौर पर आर्थिक मामलों के सचिव और वित्तीय सेवा सचिव), भारत की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण तत्वों का प्रतिनिधित्व करने के लिए सरकार के दस नामित निदेशक; और चार निदेशक मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और राजधानी नई दिल्ली में मुख्यालय वाले स्थानीय बोर्डों के प्रतिनिधित्व के लिए। इन स्थानीय बोर्डों में से प्रत्येक में पांच सदस्य होते हैं जो क्षेत्रीय हितों, सहकारी और स्वदेशी बैंकों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। केंद्रीय बैंक एक स्वतंत्र सर्वोच्च मौद्रिक प्राधिकरण है जो बैंकों को नियंत्रित करता है और विदेशी मुद्रा भंडार के भंडारण, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, मौद्रिक नीति रिपोर्ट जैसी महत्वपूर्ण वित्तीय सेवाएं प्रदान करता है। एक केंद्रीय बैंक को विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। केंद्रीय बैंक के कार्य एक देश से दूसरे देश में भिन्न हो सकते हैं, किंतु यह अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण वित्तीय शीर्ष संस्थान है। विभिन्न देशों में केंद्रीय बैंक की विषय वस्तुएं अलग-अलग हो सकती हैं किंतु फिर भी यह आर्थिक स्थिरता और अर्थव्यवस्था के विकास को बनाए रखने के लक्ष्य के साथ विभिन्न गतिविधियों और कार्यों को संपन्न करते हैं।

बैंक वित्तीय समावेशन नीति को बढ़ावा देने के लिए भी सक्रिय है और यह एलायंस फॉर फाइनेंशियल इन्क्लूजन (Alliance for Financial Inclusion) का भी एक प्रमुख सदस्य है। देश की आर्थिक वृद्धि और मूल्य स्थिरता बनाए रखने में आरबीआई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे बैंको का बैंकर (Banker's bank) भी कहा जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यों और भूमिकाओं को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है:
• देश में मुद्रा आपूर्ति और ऋण को नियंत्रित करना।
• मुद्रा नोटों को जारी और नियंत्रित करना।
• बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों का पर्यवेक्षण करना तथा उन्हें नियंत्रित करना।
• एक जटिल आर्थिक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना करने और विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए एक आधुनिक मौद्रिक नीति ढांचा तैयार करना।
• मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना।
• ऋण और जमा के लिए ब्याज दर निर्धारित करने हेतु बैंकों के लिए एक मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करना।
• टेलीविज़न (Television) सहित विभिन्न माध्यमों से जनता के बीच वित्तीय जागरूकता पैदा करना।
• वित्तीय समावेशन के संबंध में बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों को सौंपे गये कार्य की जांच या देखरेख करना।
• यह केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के लिए बैंकर के रूप में कार्य करता है। यह सरकारी प्रतिभूतियों को अपनी ओर से बेचता और खरीदता है।

समय की आवश्यकता है कि मंद व्यवसायों को ऋण प्रदान किया जाएँ। किंतु भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा धीमी गति के कारण आरबीआई ऐसा करने में असमर्थ है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैंक छोटे और मध्यम उद्यमों के साथ-साथ बड़ी फर्मों (Firms) को भी उधार देते रहें, सरकार को आंशिक गारंटी (Guarantee) देने की आवश्यकता है। साथ ही आरबीआई को कुछ प्रोत्साहन भी देने होंगे ताकि बैंक क्रेडिट रिस्क (Credit risk) लेने के लिए तैयार रहें।

आरबीआई भारत की मौद्रिक नीति का पालन करता है। मौद्रिक नीति किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह को नियंत्रित करने की नीति है, जिसका निर्धारण केंद्रीय बैंक अर्थात भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है। इसका नियंत्रण मुद्रा स्फीति तथा मुद्रा अस्फीति दोनों पर होता है। इस नीति के अंतर्गत मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दर का प्रबंधन शामिल है। यह एक प्रकार से देश की आर्थिक नीति है, जिसका प्रयोग सरकार मुद्रास्फीति, खपत, विकास, तरलता, जैसे व्यापक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए करती है। यह मुद्रा आपूर्ति की दर को नियंत्रित करके बचत को बढ़ावा देने तथा बचत आय का अनुपात बढ़ाने का प्रयास करता है। मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य कीमतों में स्थायित्व लाना, रोज़गार में वृद्धि करना, आर्थिक विकास, विनिमय दर में स्थायित्व लाना, मुद्रा की मांग और उसकी पूर्ति दोनों के बीच संतुलन बनाना, विकास के लिए ऋण की पर्याप्त उपलब्धता हासिल करना, विभिन्न क्षेत्रों में ऋण आवंटन की मात्रा निर्धारित करना, निवेश को प्रोत्साहित करना आदि हैं। देश की अर्थव्यवस्था पर मौद्रिक नीति का व्यापक असर पड़ता है। केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी का संतुलन बनाए रखने के लिए मौद्रिक नीति का इस्तेमाल करता है। देश का केंद्रीय बैंक ही मौद्रिक नीति का संचालन करता है। मौद्रिक नीति का संबंध कुल मांग के स्तर को प्रभावित करके पूर्ण-रोज़गार या संभावित उत्पादन स्तर पर अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के उद्देश्य से मुद्रा स्टॉक (Stock) और ब्याज की दर को बदलने से है। मंदी के समय, मौद्रिक नीति अपने मौद्रिक साधनों का इस्तेमाल करके मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि और ब्याज दरों को कम करती है, ताकि अर्थव्यवस्था में सकल मांग को उत्तेजित किया जा सके। वहीं दूसरी ओर मुद्रास्फीति के समय, मौद्रिक नीति पैसे की आपूर्ति को कम करके या ब्याज की दर बढ़ाकर कुल व्यय को अनुबंधित करती है। भारत जैसे विकासशील देश में, पूर्ण रोज़गार या संभावित उत्पादन स्तर पर संतुलन प्राप्त करने के अलावा, मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था के औद्योगिक और कृषि दोनों क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है और प्रोत्साहित करती है।

• पूर्ण-रोज़गार या उत्पादन के संभावित स्तर पर आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना।
• मुद्रास्फीति और अपस्फीति को नियंत्रित करके मूल्य स्थिरता प्राप्त करना।
• अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और प्रोत्साहित करना।

इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आरबीआई की मौद्रिक नीति मुख्य रूप से चार उपकरणों का इस्तेमाल करती है, जिनमें खुला बाज़ार परिचालन (Open market operations), बैंक दर में परिवर्तन, नकद आरक्षित अनुपात में परिवर्तन (Changing the cash reserve ratio) तथा अंडरटेकिंग सेलेक्टिव क्रेडिट कंट्रोल (Undertaking selective credit controls) शामिल हैं, इस प्रकार आर्थिक स्थिरीकरण में मौद्रिक नीति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Reserve_Bank_of_India
2. https://www.business-standard.com/article/pti-stories/role-and-responsibilities-of-rbi-118121000946_1.html
3. https://www.investopedia.com/terms/m/monetarypolicy.asp
4. http://www.yourarticlelibrary.com/economics/money/importance-of-monetary-policy-for-economic-stabilization-with-diagrams/38097

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