शहरी विकास को मापने का एक तरीका है, मलिन बस्तियां

नगरीकरण- शहर व शक्ति
25-03-2020 01:50 PM
शहरी विकास को मापने का एक तरीका है, मलिन बस्तियां

शहरीकरण वर्तमान समय का एक प्रमुख मुद्दा है। प्रारंभ में जहां इसके साथ विकास की कई संभावनाओं को जोड़ा गया था वहीं अब यह अपने साथ कई समस्याओं को लेकर भी सामने आया है। यूं तो इसे एक लाभप्रद घटना के रूप में देखा जाना चाहिए, किंतु इसके प्रभाव से जो परिणाम सामने आये उससे इसे पूर्ण रूप से लाभप्रद घटना नहीं माना जा सकता। शहरीकरण का एक प्रभाव मलिन बस्तियों के रूप में देखा जा सकता है। मलिन बस्तियां एक अत्यधिक आबादी वाला शहरी आवासीय क्षेत्र है, जिसमें जीर्ण आवासीय इकाईयां एक-दूसरे के अत्यधिक निकट स्थित होती हैं। इन आवासीय इकाईयों का बुनियादी ढाँचा अधूरा या फिर अत्यधिक खराब या बिगड़ा हुआ होता है, जिन्हें मुख्य रूप से गरीब व्यक्तियों द्वारा बसाया गया है। यह शहर का वह हिस्सा है जहां आवास की गुणवत्ता बहुत कम तथा रहने की स्थिति अत्यंत दयनीय या खराब है। दूसरे शब्दों में मलिन बस्तियां उस क्षेत्र को कहते हैं जहां की इमारतें किसी भी तरह से मानव आवास के लिए अयोग्य हैं।

भीड़भाड़, सड़कों की दोषपूर्ण व्यवस्था, वेंटिलेशन (Ventilation) की कमी, रोशनी या स्वच्छता सुविधाओं, सुरक्षा, स्वास्थ्य या नैतिकता के अभावों के कारण यह क्षेत्र मानव आवास के योग्य नहीं है। मलिन बस्तियां आकार और अन्य चीजों में भिन्न हो सकती हैं। अधिकतर बस्तियों में विश्वसनीय स्वच्छता सेवाओं, स्वच्छ पानी की आपूर्ति, विश्वसनीय बिजली, कानून प्रवर्तन और अन्य बुनियादी सेवाओं का अभाव होता है। इन बस्तियों में झोपड़ीनुमा घर से लेकर पेशेवर रूप से निर्मित आवास हो सकते हैं जोकि खराब गुणवत्ता वाले निर्माण या खराब बुनियादी रखरखाव के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गये हैं। सामान्य आबादी के बढ़ते शहरीकरण के कारण, संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) और यूरोप (Europe) में 18वीं से 20वीं शताब्दी में झुग्गियां आम हो गयी थी। मलिन बस्तियां जहां आज भी विकासशील देशों के शहरी क्षेत्रों में पायी जाती हैं, वहीं विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी देखने को मिलती हैं। यूएन-हैबिटेट (UN-Habitat) के अनुसार, 2012 में विकासशील देशों की लगभग 33% शहरी आबादी, या लगभग 86.3 करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते थे। 2012 में झुग्गियों में रहने वाली शहरी आबादी का अनुपात उप-सहारा अफ्रीका (Sub-Saharan Africa) (62%) में सबसे अधिक था, इसके बाद दक्षिणी एशिया (Southern Asia) (35%), दक्षिण-पूर्वी एशिया (Southeastern Asia) (31%), पूर्वी एशिया (Eastern Asia) (28%), पश्चिमी एशिया (Western Asia) (25%), ओशिनिया (Oceania) (24%), लैटिन अमेरिका (Latin America) (24%), कैरिबियन (Caribbean) (24%), और उत्तरी अफ्रीका (North Africa) (13%) में यह अनुपात सबसे अधिक था। दुनिया का सबसे बड़ा झुग्गी शहर मेक्सिको (Mexico) में स्थित, नेज़ा-चैलको-इक्सटापालुका (Neza-Chalco-Ixtapaluca) क्षेत्र में है।

भारत में भी यह समस्या कई बड़े शहरों में देखने को मिलती है। लखनऊ में भी इस तरह की कई मलिन बस्तियां मौजूद हैं। लखनऊ में इन झुग्गियों की संख्या 65,629 है, जिनमें लगभग 3,64,941 आबादी निवास करती है। 2011 की जनगणना के आधार पर यह संख्या लखनऊ की कुल जनसंख्या का लगभग 12.95% है। भारत की जनगणना की रिपोर्टों (Reports) के अनुसार 2011 में लखनऊ की जनसंख्या 28,17,105 थी, जिनमें से पुरुषों की संख्या 14,60,970 जबकि महिलाओं की संख्या 13,56,135 थी। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से मलिन बस्तियां दुनिया के विभिन्न हिस्सों में संगठित होती हैं तथा निरंतर बढ़ती या विस्तारित होती जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर तीव्र प्रवास, आर्थिक अस्थिरता और मंदी, अत्यधिक बेरोज़गारी, गरीबी, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था, व्यर्थ योजनाएं, राजनीति, प्राकृतिक आपदाएं और सामाजिक संघर्ष आदि इन बस्तियों के संगठित होने या फैलने के कारण हैं। इन बस्तियों या झुग्गियों को कम करने या बदलने के लिए विभिन्न देशों द्वारा अनेक रणनीतियां अपनाई गयी हैं, जिनमें झुग्गियों का निराकरण, स्थानांतरण, उन्नयन, बुनियादी ढांचे के विकास के साथ शहरी नियोजन, सार्वजनिक आवास आदि शामिल हैं।

विद्वानों के अनुसार यदि शहरी विकास को मापना हो तो मलिन बस्तियां या झुग्गियां इसका सबसे अच्छा तरीका हैं। शहरी विकास विशेषज्ञों के अनुसार मलिन बस्तियाँ आधुनिक नियोजित शहरों के संगठित विकास को समझने के लिए संकेतक के रूप में कार्य करती हैं। शहरीकरण और मलिन बस्तियां आपस में सम्बंधित हैं। विद्वानों का सुझाव है कि शहरीकरण मलिन बस्तियों का निर्माण करता है क्योंकि स्थानीय सरकारें शहरीकरण का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं। प्रवासी श्रमिक रहने के लिए एक सस्ती जगह न मिलने के कारण मलिन बस्तियों में रहने लगते हैं। तीव्र शहरीकरण से आर्थिक विकास होता है और लोगों को शहरी क्षेत्रों में काम करने और निवेश के अवसरों की तलाश होती है। हालाँकि, खराब शहरी बुनियादी ढाँचे और अपर्याप्त आवास के कारण स्थानीय सरकारें कभी-कभी इस अवस्था का प्रबंधन करने में असमर्थ हो जाती हैं। इस अक्षमता के लिए अपर्याप्त धन और अनुभवहीनता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसके कारण प्रवासन और शहरीकरण के द्वारा उत्पन्न हुई समस्याओं का निराकरण करने और उन्हें व्यवस्थित करने में बाधा उत्पन्न होती है। कुछ मामलों में, स्थानीय सरकारें शहरीकरण की प्रक्रिया के दौरान अप्रवासियों के प्रवाह को अनदेखा कर देती हैं। इस तरह के उदाहरण कई अफ्रीकी देशों में पाए जा सकते हैं। इस प्रकार के शहरीकरण से बेरोज़गारी, अपर्याप्त वित्तीय संसाधनों और असंगत शहरी नियोजन नीतियों की दरें बढ़ जाती हैं। ऐसे क्षेत्रों में, शहरी आबादी में 1% की वृद्धि होने पर मलिन बस्तियों के प्रसार में लगभग 1.84% की वृद्धि हो जाती है।

लखनऊ की झुग्गियों में पानी, बिजली, सड़क, शौचालय इत्यादि सुविधाओं का अभाव पाया गया। लोग 6-15 वर्षों से यहां स्थित झोंपड़ियों में रह रहे हैं, जिसका मुख्य कारण रोज़गार के बेहतर अवसरों की तलाश में ग्रामीण इलाकों से किया गया प्रवास था। इस समस्या के निवारण के लिए शहरी नियोजन में स्पष्टता और पारदर्शिता की आवश्यकता है। चूंकि सभी साझेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए विकास एक सहभागी दृष्टिकोण का आह्वान करता है, इसलिए नीचे से लेकर ऊपर तक की पहुंच की आवश्यकता है, ताकि योजनाकारों को लोगों की अनुकूलित आवश्यकताओं के बारे में पता चल सके। पाँच साल के रोटेशन (Rotation) के आधार पर गरीबों और हाशिए पर रहने वालों को शहर के मास्टर प्लान (Master Plan) में शामिल किया जाना चाहिए। मूलभूत सुविधाओं को पहचानने तथा उन्हें प्रदान करने के लिए एक विशेष नोडल एजेंसी (Nodal Agency) स्थापित की जानी चाहिए। तभी एक प्रभावी शहरीकरण संभव हो पाएगा।

संदर्भ:
1.
https://www.census2011.co.in/census/city/127-lucknow.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Slum
3. https://www.linkedin.com/pulse/study-lucknow-slums-gauge-urban-development-matrix-chander-mahadev/

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