डिजिटल इंडिया से कैसे हुई प्रभावित कामवाली बाई

नगरीकरण- शहर व शक्ति
17-03-2020 12:10 PM
डिजिटल इंडिया से कैसे हुई प्रभावित कामवाली बाई

एक तरफ जहां भारत में लोग पश्चिमी देशों की तरह अपार्टमेंट (Apartment) रहन-सहन की तरफ रुझान कर रहे हैं तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या घर में नौकरों की फौज रखना लाज़मी है। आजकल घरेलू काम भी अलग-अलग जॉब प्रोफाइल (Job Profile) में बंटे होते हैं। जैसे कि झाड़ू-पोछा, टॉयलेट (Toilet) की सफाई, बावर्ची, प्रेसवाला, ड्राइवर (Driver), गाड़ी धोना आदि। तो ऐसे में कैसे इन सबका वेतन निश्चित करें। आज के डिजिटल इंडिया (Digital India) में यह काम भी टेक्नॉलॉजी (Technology) ने कर दिखाया है। जी हां, payscale.com और QUORA जैसी वेबसाइट (Website) और एप्प (App) के ज़रिए आप ऊपर बताई तमाम नौकरों की श्रेणियों की मूल तन्ख्वाह का अंदाज़ा घर बैठे ही लगा सकते हैं। दरअसल ये एप्स और वेबसाइट आपके स्थान के मुताबिक, आपके राज्य के न्यूनतम मजदूरी अधिनियम और कार्य के प्रकार के अनुसार नौकरों के मूल वेतन का हिसाब कर देती हैं।

मज़े की बात तो ये है कि नवाबों की चाल से चलने वाला नज़ाकत भरा शहर लखनऊ भी टैक्नोलॉजी की इस दौड़ से अछूता नहीं रहा है। पहले आप-पहले आप की तहज़ीब वाला शहर भी अच्छे नौकरों की तलाश में तकनीक के सहारे मानो सरपट दौड़ लगा रहा हो।

घरेलू क्रांति
रोबोट जैसी सुपरवुमन (Superwoman) नौकरानी का वास्तव में कोई वजूद नहीं है, जिसकी कीमत को लेकर कोई मोल-तोल किया जा सके। लेकिन भारत के बड़े शहरों में मध्यम वर्ग के परिवार जो 1 हज़ार रुपये महीने पर पार्ट टाइम (Part Time) बावर्ची से काम लेने के आदी हैं, वे भी इस सुपरवुमन की खूबियों वाली कुशल घरेलू नौकरानी को काम पर रखने के लिए मुहमांगी कीमत देने को तैयार हैं। और इसी मांग को पूरा करने के लिए कई कंपनियां (Companies) पूरे देश में खुल गई हैं। कुछ साल पहले तक प्रशिक्षित घरेलू सहायक बड़े वेतन पर रईस परिवारों में रखे जाते थे पर अब समय बदल गया है। आज किसी भी समय दिल्ली और गुड़गांव में 60 हज़ार लोग नौकर की तलाश में हैं। इस मांग को पूरा करने के लिए प्लेसमेंट एजंसियाँ (Placement Agencies) योग्य कर्मचारियों को पश्चिम बंगाल, झारखंड और उड़ीसा के स्थानीय एन जी ओ (NGO) और पंचायतों की मदद से लोगों को प्रशिक्षण देकर घर और अस्पतालों में नौकर के रूप में काम दिलाती हैं।
एक सरकारी आदेश के अनुसार दिल्ली में न्यूनतम मासिक वेतन अप्रशिक्षित कर्मचारियों के लिए 6,084 रुपये होना चाहिए। इस मामले में सोनिया गांधी की अध्यक्षता में नैशनल एडवाइज़री काउंसिल (National Advisory Council) ने ये प्रस्तावित किया कि सालाना 15 दिन का वैतनिक अवकाश और कम से कम 115 रुपये प्रतिदिन वेतन 45 लाख घरेलू कर्मचारियों को पूरे देश में मिलना चाहिए।

प्रशिक्षित सहायकों की मांग दफ्तरों में ज्यादा है बजाए घरों के।
भारतीय संदर्भ में ज्यादातर शहरों में आया, बावर्ची और गृह व्यवस्था के बीच विभाजन रेखा बड़ी धुंधली है। नौकर से उम्मीद की जाती है कि वे थोड़े-थोड़े सभी काम करें। तो एजेंसीज़ उन्हें ऑलराउंडर (Allrounder) के रूप में प्रशिक्षित कर रही हैं। पिछले दो साल में ऐसी मेड का मासिक वेतन 4,500 रुपये से 7,500 रुपये हो गया है।
अस्पतालों में नवजात शिशु की देखभाल के लिए बैंगलौर के एक मैटरनिटी होम (Maternity Home) में विशेष एम बी ए प्रोगराम (MBA Program – Management of Baby Affairs) को शुरू किया गया है। इस एम बी ए कार्यक्रम के तहत नवजात की मां, आया और घरेलू सहायका तीनों का प्रशिक्षण होता है। 1,500 रुपये दो लोगों के प्रशिक्षण का शुल्क है। यह 6 घंटे का एक कोर्स (Course) है।
दिल्ली की कंपनी एम्पावर प्रगति (Empower Pragati) ने झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं का चयन करके उन्हें 160 घंटे का प्रशिक्षण दिया है जिसमें स्वास्थ्य, स्वच्छता, बच्चों–मरीजों-बुजुर्गों की देखभाल और खाना बनाने का प्रशिक्षण नियमित रूप से दिया जा रहा है। जो महिलाएं ये कोर्स कर लेती हैं, वे प्राविडेंट फंड (Provident Fund) की भी हकदार होती हैं। अब ये कंपनी बैंगलुरु और कोलकाता में भी ट्रेनिंग दे रही है।

तृप्ति लहरी की किताब ‘मेड इन इंडिया: स्टोरीज़ ऑफ इनीक्वलिटी एंड अपोर्च्यूनिटी इनसाइड आवर होम्स’ (Maid in India: Stories of Inequality and Opportunity Inside Our Homes) पर आधारित अनुसन्धान में बताया है कि भारत के अभिजात्य वर्ग अपने रोज़मर्रा के कामकाजी सहायकों की फौज पर कितने ज्यादा आश्रित होते हैं। उनके जीवन का सारा ठाट बाट इन घरेलू सहायकों की मेहरबानी और कुशलता का गुलाम है।
इसमें तृप्ति ने सुनीता सेन के माध्यम से घरेलू सहायकों के पूरे नेटवर्क (Network) को समझने और पेश करने की कोशिश की है। सुनीता बहुत पुराने समय से दिल्ली के विभिन्न आयवर्ग के परिवारों को उनकी ज़रूरत के मुताबिक घरेलू सहायक उप्लब्ध कराती रही हैं। इस काम में वो इतनी रच बस गई हैं कि पुराने वैद्यों की तरह नाड़ी पर हाथ रखते ही रोग की पहचान और उसका उपचार बता देती हैं। एक बिज़नेस एडिटर (Business Editor) ये जानता है कि आज के दिन का आखिरी शेयर प्राइस (Share Price) क्या है और भारत की चोटी की फर्मों (Firms) की पूंजी का हाल क्या है, लेकिन सुनीता उनकी सही बॉटम लाइन (Bottom Line) जानती हैं - उनके सीईओ (CEO) अपने सहायकों को क्या वेतन देते हैं, क्या उन्हें खाने को देते हैं और एक परिवार कितने नौकरों को काम पर रखता है आदि।
दिल्ली की औरंगज़ेब रोड या पृथ्वीराज रोड के बंगलों और आलीशान इमारतों में रहने वाले राजनीतिक लोगों के रसूख या उनके वैभव के किस्सों से सुनीता को कोई लेना देना नहीं है, उन्हें फिक्र है इन जगहों में काम पर लगवाई उड़ीसा की आया, उत्तराखंड के रसोइये या पश्चिम बंगाल से लाई गई नर्स (Nurse) की।

अभिजात्य भारतीय बड़ी संख्या में नौकर रख सकते हैं। चार लोगों के परिवार के लिए 4 नौकर। एक परिवार ने अस्पताल की एक श्रृंखला बनाई है जिसमें पाकिस्तान-अफगानिस्तान से मेडिकल टूरिस्ट (Medical Tourist) आते रहते हैं। उनके परिवार में 22 नौकर हैं। एक बिल्डर (Builder) है जो सड़क से लेकर आलीशान होटल (Hotel) तक बनवाता है जिसकी बर्थडे पार्टियों (Birthday Parties) में बड़े बड़े सितारे शामिल होते हैं, उसके यहां 27 नौकर हैं। वोटर लिस्ट (Voter List) से यह पता चलता है कि किसी-किसी बंगले में 35 से 40 पंजीकृत वोटर अलग-अलग उपनाम के साथ रहते हैं। कुछ रिहायशी सरकारी बिल्डिंगों में नया निर्माण हो जाने से सर्वेंट क्वार्टर (Servant Quarter) की जगह छत पर जगह निकालकर घर की बचीकुची कबाड़ सामग्री से एक कमरे का निर्माण कर देते हैं। इन सर्वेंट क्वार्टर के बाथरूम बहुत गंदे होते हैं। तमाम नौकरों में सफाई की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती।

1980 के दशक में दिल्ली में इस तरह की सेवा देने वाले कुछ और लोग भी उभरे। कुछ नन (Nuns) ने दक्षिणी दिल्ली में एक समूह बनाया, एक पंजाबी महिला, बाद में एक सेवानिवृत्त सेना अफसर इस सेवा से जुड़े। उस समय घरेलू नौकर आपसी परिचय से ढूंढे जाते थे। कई बार सरकारी कर्मचारी अपने तबादले के बाद अपने नौकर को उसी सर्वेंट क्वार्टर में रखवा देते। बदले में नौकर की पत्नी बिना वेतन काम करती ताकि क्वार्टर पर कब्ज़ा बना रहे। इसके बाद ज़माना आया प्लेसमेंट एजेंसी का। आज सभी बड़े शहरों में इनका कारोबार चल रहा है। इन एजंसियों ने भी समय के साथ अपनी सेवाएं बदलीं। अब वो बच्चों की देखरेख के लिए जापा मेड और आया उपलब्ध कराती हैं। जापा मेड नवजात शिशुओं के लिए छोटी अवधी की नर्स होती हैं। अपने अनुभव के आधार पर एक जापा कम से कम 20 हज़ार रुपये 40 दिनों के लिए कमा सकती है। एक जापा बच्चे के जन्म के पहले से या जन्म के तुरंत बाद 40 दिन की सेवा देती है। गर्भवती महिलाएं पहले से ही इनको नियुक्त कर लेती हैं। 2014 में आया का वेतन 16 हज़ार के आसपास था जो हर साल बढ़ता था। कुछ खास लोगों की मांग पर अंग्रेज़ी बोलने वाले सहायक 20 हज़ार से 35 हज़ार में मिलते हैं। इन नौकरों की मांग रखने वाले ग्राहकों की सालाना आय 25 से 50 लाख रूपए होती है। पूरे देश में धीरे-धीरे कामवाली बाई की जगह ले रहा है मेड इन इंडिया का कान्सेप्ट। जहां प्रशिक्षित मजदूर की श्रेणी में आ चुकी है आपकी घरेलू नौकरानी। तो भई...बदलते समय की बदलती रूपरेखा, ये ही हैं आज के समय की जीवन रेखा।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2IQDC90
2. https://www.livemint.com/Leisure/kRHrth03B2knhkDjSGmh4H/Domestic-revolutions.html
3. https://bit.ly/39UAMvS
4. https://www.quora.com/What-should-be-the-minimum-monthly-salary-for-a-maid-in-India
5. https://www.payscale.com/research/IN/Job=Maid_or_Housekeeping_Cleaner/Salary

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