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भारत के हर हिस्से में प्रायः मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं। हर राज्य में मिट्टी के बर्तनों को बनाने की अपनी अनूठी कला है और इसी कारण यह विभिन्न नामों से जानी जाती है, जैसे राजस्थान की ‘ब्लू पॉटरी’ (Blue Pottery), मध्य प्रदेश का ‘टेराकोटा’ (Terracotta) या उत्तर प्रदेश की ‘चिनहट पॉटरी’ (Chinhat Pottery) आदि। मिट्टी के बर्तनों का प्रत्येक रूप विशिष्ट और असमान रूप से रचनात्मक तथा सुंदर है क्योंकि इसमें कुम्हारों की कला, कौशल और शिल्प का बहुत बड़ा समावेश होता है, जो मिट्टी की एक मुट्ठी भर मात्रा से उसे आकार और डिज़ाइन (Design) देते हैं।
लखनऊ शहर अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत के लिए प्रसिद्ध है तथा इसने चिनहट पॉटरी के रूप में अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत को एक और रचनात्मक आयाम दिया है। इसे अपना नाम उस स्थान के नाम पर मिला है, जहां यह मुख्य रूप से प्रचलित है। चिनहट पॉटरी मुख्य रूप से चिनहट क्षेत्र में की जाती है जो लखनऊ शहर के पूर्वी इलाके में फैज़ाबाद रोड (Road) पर स्थित है। यह स्थान उत्तर प्रदेश राज्य में मिट्टी के बर्तनों के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र के रूप में उभरा है, जिसने कई पर्यटकों को भी आकर्षित किया है। मुगल और नवाबों के शासन के समय से ही लखनऊ में मिट्टी के बर्तन या वस्तुएं बनायी जाती रही हैं।
मिट्टी के बर्तनों को बनाने का शिल्प बहुत पुराना है जोकि पायलट प्रोजेक्ट (Pilot project) के साथ शुरू किया गया। इस योजना को राज्य योजना विभाग के योजना अनुसंधान और कार्य संस्थान (Planning Research and Action Institute - PRAI) द्वारा लॉन्च किया गया था। पायलट प्रोजेक्ट को वर्ष 1957 में क्षेत्र के बेरोज़गार युवाओं को पॉटरी में प्रशिक्षित करने तथा उद्योग ईकाईयां खोलने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। जल्द ही परियोजना के प्रयासों को सफलता मिलने लगी और उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अच्छी तरह से स्थापित किया गया।
चिनहट पॉटरी की श्रेणी, ग्लेज़्ड टेराकोटा (Glazed Terracotta) पॉटरी और चीनी मिट्टी (Ceramics) पॉटरी के अंतर्गत आती है। इससे बनने वाली वस्तुओं में ग्रामीण रूप दिखायी देता है जिसकी दिखावट मिट्टी जैसी है तथा चमकीली सतह आमतौर पर हरे और भूरे रंग की होती है। चिनहट पॉटरी से बनने वाले उत्पादों में मग (Mug), कटोरे, फूलदान, कप (Cup) और प्लेटें (Plates) शामिल हैं। इस पर कई डिज़ाइन बनाए जाते हैं जोकि ज्यामितीय आकृतियों में होते हैं। कुम्हारों के लिए, मिट्टी के बर्तन बनाना केवल आजीविका कमाने का व्यवसाय नहीं है, उनके लिए यह वो काम है जिसे वे पूजते हैं। बाज़ारों में सस्ते चीनी उत्पादों की उपलब्धता में हालिया तेज़ी और अधिकारियों की अनदेखी ने इन कुम्हारों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। कुम्हारों का कहना है कि चिनहट पॉटरी उद्योग ने अपने अस्तित्व को अपने आप ही बचाया है। सरकार ने इन उत्पादों के विपणन और बिक्री में उनकी कोई मदद नहीं की। 1957 में शुरू हुई इस सरकारी ईकाई को 1997 में बंद कर दिया गया था क्योंकि अधिकारियों ने इसे घाटे का व्यापार घोषित किया था।
पॉटरी उद्योग में गिरावट आनी तब शुरू हुई जब इसे 1970 में उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम (Small scale industries corporation - UPSIC) के अधीन किया गया। UPSIC ने कच्चे माल की दर में वृद्धि की जिसने उत्पादों के मूल्य को प्रभावित किया। इसके परिणामस्वरूप उत्पादों की बिक्री में अत्यधिक गिरावट आई। इस उद्योग में अभी भी राज्य के लिए एक बड़े लाभदायक व्यवसाय में बदलने की बहुत बड़ी संभावना है। लेकिन, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर शिल्प को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि यह लखनऊ शहर के साथ-साथ स्थानीय कारीगरों के लिए भी एक बड़ी क्षमता रखता है।
संदर्भ:
1. http://lucknowpulse.com/chinhat-pottery-making/
2. https://www.pressreader.com/india/hindustan-times-lucknow/20191027/281702616502856
3. https://bit.ly/38gkUmi
चित्र सन्दर्भ:
1. https://www.youtube.com/watch?v=d9CaMsWImIk
2. http://lucknowpulse.com/chinhat-pottery-making/
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