लखनऊ संग्रहालय में मौजूद हैं, कुछ ख़ास जैन प्रतिमाएं

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
03-02-2020 02:00 PM
लखनऊ संग्रहालय में मौजूद हैं, कुछ ख़ास जैन प्रतिमाएं

जैन धर्म एक प्राचीन धर्म है, जिसका उदय भारत में हुआ। जैन धर्म के अनुयायियों को जैन कहा जाता है, जिसकी व्युतपत्ति संस्कृत भाषा के ‘जिन’ शब्द से हुई है, जिसका सन्दर्भ नैतिक और आध्यात्मिक जीवन के माध्यम से कर्म को नष्ट करके जीवन की पुनर्जन्म की धारा को पार करने में विजय को संदर्भित करता है। जैन धर्म के साहित्य के स्रोतों के अनुसार, 24 विजयी रक्षक और तीर्थंकर के नाम से जाने जाने वाले शिक्षक थे जिनमें से पहले ‘ऋषभनाथ’ और 24वें महावीर थे। जैन धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथो को आगम ग्रन्थ कहा जाता है। जैन धर्म के सिधान्त में अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा सत्य हैं। एक दूसरे की सहायता करना जैन धर्म का आदर्श-वाक्य है।

जैन धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं- श्वेताम्बर तथा दिगंबर।
दूसरी शताब्दी में कुछ छोटे-छोटे उप सम्प्रदाय भी उभर कर सामने आये।

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर इस प्रकार हैं:-
1.
ऋषभनाथ इन्हें ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है
2. अजितनाथ
3. सम्भवनाथ
4. अभिनन्दन जी
5. सुमितनाथ
6. पद्म्पप्रभु
7. सुपार्श्वनाथ
8. चंद्रप्रभु
9. सुविधिनाथ, इन्हें ‘पुष्पदंत’ भी कहा जाता है
10. शीतलानाथ
11. श्रेयांश्नाथ
12. वासुपूज्य
13. विमलनाथ
14. अनंतनाथ
15. धर्मनाथ
16. शांतिनाथ
17. कुंथुनाथ
18. अरनाथ
19. मल्लिनाथ
20. मुनिसुव्रत
21. नमिनाथ
22. अरिष्टनेमि
23. पार्श्वनाथ
24. महावीर

जैन धर्म ने भारतीय वास्तु और कला में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जैन कलाओं में तीर्थंकर या महत्वपूर्ण व्यक्तियों के जीवन से सम्बंधित कथाओं का चित्रण किया गया है, विशेष रूप से उन्हें आसन या कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है। तीर्थंकर की मूर्ति में उनके निकट यक्ष प्रतिमाएं भी बनायीं जाती है। प्राचीनतम जैन मूर्ति पटना संग्रहालय में सुरक्षित है, जो कि लगभग तीसरी शताब्दी ईसापूर्व की है। पार्श्वनाथ की एक कांस्य प्रतिमा प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम (Prince of Wales Museum), मुंबई तथा पटना आदि संग्रहालयों में देखी जा सकती हैं। आयागपट्ट जैन धर्म में पूजा का महत्वपूर्ण माध्यम थे, इन्हें पूजा तथा कभी-कभी साज-सज्जा के लिए भी प्रयोग किया जाता था। इन पट्टों के मध्य में जैन धर्म से सम्बंधित चित्र होते हैं। इस प्रकार के कई पट्ट कंकाली टीला, मथुरा,उत्तर प्रदेश से प्राप्त किये जा चुके हैं, जिन्हें प्रथम शताब्दी तक का बताया जाता है। सम्वसरन, जहाँ तीर्थंकर उपदेश देते थे, तथा राजस्थान में एक जैन टावर (Tower) जैन कला के महत्वपूर्ण उदहारण हैं। प्राचीन जैन स्मारकों में मध्य प्रदेश के भिलसा (विदिशा) के निकट उदयगिरि पहाड़ियाँ, महाराष्ट्र का एलोरा, और माउन्ट आबू, राजस्थान के पास दिक्ल्वाडा मंदिरों में जैन मंदिर शामिल हैं। जैन मूर्तियों में मुख्य रूप से तीर्थंकरों की मूर्तियाँ बनाई गयी हैं। ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीर की मूर्तियाँ प्रमुख रूप से बनाई गयीं। अम्बिका तथा तारा आदि देवियों की प्रतिमायें भी काफी लोकप्रिय हैं। अधिकांश तीर्थंकरों की प्रतिमायें देखने में एक जैसी लगती हैं, इनमें ऋषभनाथ को उनके लम्बे केशों, पार्श्वनाथ को उनके शीश पर सर्पफण से आसानी से पहचाना जा सकता है। दिगंबर परंपरा में बनी जैन मूर्तियों को बिना किसी वस्त्र के बनाया जाता है। राज्य संग्रहालय लखनऊ में ऋषभनाथ की एक प्रतिमा सुरक्षित है जिसमें उनकी आँखें, भोहें, नासिका छिद्र, लम्बे कान, तथा चेहरे पर शांत भाव दिखाए गए हैं। उनके दोनों ओर नवग्रह हैं। यह प्रतिमा 12वीं शताब्दी में बनी प्रतीत होती है।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Jain_sculpture
2. https://courses.lumenlearning.com/boundless-arthistory/chapter/jain-art/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Jain_art

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