समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
इस ग्रह पर मानव अस्तित्व ने कई नवाचारों और आविष्कारों को देखा है, जो उन्हें शिकार, कृषि, पौधों और जानवरों के प्रभुत्व, शहरीकरण के कई चरणों से गुज़रते हुए विकास की ओर सफलतापूर्वक ले गए। मानव अभिव्यक्ति और संज्ञानात्मक विकास अक्सर एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति की शैलियों में भिन्नता में परिलक्षित होता है। भारत ने भी प्राचीन काल से अभी तक कई बदलावों को देखा है।
ऐसे ही भारत में ऊपरी पुरापाषाण काल से ही कठोर पत्थरों से माला बनाई जाती थी, जिसका सबूत पुरातात्विक अभिलेख में मिलता है। कठोर पत्थरों पर काम करने के लिए विदेशी कच्चे माल और एक ड्रिलिंग (Drilling) तकनीक के उद्भव को मेहरगढ़ (पाकिस्तान) में नवपाषाण काल से देखा जा सकता है। वहीं 7वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मेहरगढ़ के फ़िरोज़ा, कार्नेलियन (Carnelian), शैलखटी, समुद्री सीप जैसे विदेशी कच्चे माल दक्षिण एशिया के विभिन्न हिस्सों में संस्कृतियों के बीच स्थापित लंबी दूरी वाले व्यापार तंत्र को इंगित करते हैं।
चालकोलिथिक काल (Chalcolithic Period) के मनका ड्रिलिंग प्रौद्योगिकियों में परिष्कार के सबूत मेहरगढ़, हड़प्पा, धोलावीरा जैसी कई जगहों पर देखे जा सकते हैं। जोनाथन मार्क केनोयर (Jonathan Mark Kenoyer), मास्सिमो विडाल (Massimo Vidale) और अन्य विद्वानों द्वारा पत्थर के मोतियों की विभिन्न ड्रिलिंग तकनीकों की पहचान की गई है। हड़प्पा सभ्यता (लगभग 2600-1900 ईसा पूर्व) के आगमन के साथ, कठोर पत्थरों को छिद्रित करने के लिए एक नई सामग्री पेश की गई थी, जिसे अर्नेस्टाइट (Ernestite) नाम दिया गया था। अर्नेस्टाइट सामान्य रूप से गुजरात के स्थलों और विशेष रूप से धोलावीरा में अधिक संख्या में मौजूद है। धोलावीरा से अब तक 1588 अर्नेस्टाइट के ड्रिल बिट (Drill Bit) का दस्तावेजीकरण किया गया है और यह किसी भी हड़प्पा स्थल से अब तक का सबसे बड़ा संग्रह है।
1967-68 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जे.पी. जोशी द्वारा धोलावीरा के स्थल की खोज की गई थी और यह 8 प्रमुख हड़प्पा स्थलों में से 5वां सबसे बड़ा है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1990 के बाद से उत्खनन के तहत लाया गया था। धोलावीरा ने वास्तव में सिंधु घाटी सभ्यता के व्यक्तित्व में नए आयाम को जोड़ा था।
पहले मोतियों को लघु पुरातनता माना जाता था, लेकिन वर्तमान अध्ययनों ने सामाजिक और अनुष्ठान की स्थिति, जातीय पहचान, आर्थिक नियंत्रण और व्यापार और विनिमय तंत्र को समझने के लिए उनके महत्व को प्रदर्शित किया है जो सिंधु परंपरा के दूर के उपनिवेशियों को एकजुट करता था। वहीं सिंधु घाटी सभ्यता में नक्रकाशी शिल्प का व्यापक रूप से अभ्यास किया जाता था और इसके उत्पादों में अर्ध-कीमती पत्थरों से गहने का निर्माण शामिल था, जैसे कि एगेट (Agate), कार्नेलियन, जैस्पर (Jasper), क्वार्ट्ज़ (Quartz), लापीस लज़ुली (Lapis Lazuli), फ़िरोज़ा, अमेज़ॅनाइट (Amazonite), आदि।
वहीं मैके (Mackay) ने कार्नेलियन मोतियों के निर्माण अनुक्रम की व्यापक रूपरेखा को संगठित किया गया था, जिसमें सुंदर लंबे बैरल (Barrel) नमूने शामिल हैं, जो संभवतः मेसोपोटामिया के साथ लंबी दूरी के व्यापार की वजह से हो सकता है। चन्हुदारो में निर्मित लंबे मनके को एक कठिन और महंगे विनिर्माण अनुक्रम की आवश्यकता होती है, जिसमें संभवतः आग में गर्म करने के कई चक्र, धातु के औज़ारों के साथ चीरे जाने और अत्यधिक विशिष्ट ड्रिल के साथ काटे और मुलायम किये जाने के कार्य शामिल होते हैं।
संदर्भ:
1. http://www.preservearticles.com/history/what-was-lapidary-of-indus-civilization/13785
2. http://asc.iitgn.ac.in/bead-drilling-technology-of-the-harappans/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Dholavira
4. http://www.heritageuniversityofkerala.com/JournalPDF/Volume4/4.pdf
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.