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मनुष्यों द्वारा भक्ति और एकाग्रता के लिए भजन, कीर्तन और स्मरण जैसी तमाम चीज़ों का सहारा लिया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भजन और कीर्तन से मन की अवस्था बहुत तेज़ी से उन्नत हो जाती है। भारत में कीर्तन की उत्पत्ति भक्ति आंदोलन से हुई थी। कीर्तन धार्मिक प्रदर्शन कलाओं की एक शैली को भी संदर्भित करता है, जिसमें संगीत के एक रूप को भी देखा जा सकता है, जो विशेष रूप से आध्यात्मिक या धार्मिक विचारों को बयान या साझा करता है।
कीर्तन एक समूह के संदर्भ में मंत्र जप की एक चेतना परिवर्तनकारी प्रथा है, जो गायकों को समुद्र में विलीन होने की तरह गीत में विलय करने के लिए निर्देशित करता है। इसका उद्देश्य शुद्ध प्रेमपूर्ण जागरूकता, अस्तित्व, चेतना और आनंद की स्थिति को विकसित करना और अनुभव करना है जो शब्दों और अवधारणाओं से परे है। कीर्तन में कई गायक एक कथा का वर्णन करते हैं या देवी-देवता के प्रति प्रेमपूर्ण भक्ति को व्यक्त करते हैं या आध्यात्मिक विचारों पर चर्चा करते हैं। वहीं कीर्तन के मंत्र भी प्रतीकवाद और दर्शन से समृद्ध होते हैं।
सत्र के शुरुआती चरणों में ऐसा माना जाता था कि धीमी ताल वाले कीर्तन से श्वसन को विनियमित करने और शरीर को शांत करने वाले हार्मोन (Hormone) और न्यूरोलॉजिकल (Neurological) परिवर्तनों को उत्पन्न करने में मदद मिलती थी। वहीं समय के साथ कीर्तन के ताल तेज़ होने लगे और उसका अनुभव भी तेज़ी से रोमांचित होने लगा। इससे गायक को शांति और उत्साह दोनों का एहसास भी होने लगा।
कीर्तन करने वाले व्यक्ति को कीर्तनकार के रूप में जाना जाता है। एक कीर्तन प्रदर्शन में हारमोनियम, वीणा, तबला, मृदंगा, बाँसुरी और ताल जैसे क्षेत्रीय लोकप्रिय वाद्ययंत्र शामिल होते हैं। हारमोनियम, वीणा, तबला, मृदंगा और बाँसुरी से तो हममें से अधिकंश लोग अवगत हैं, लेकिन हम में से बहुत कम लोग ताल के बारे में जानते होंगे। हिन्दू धर्म में इसे करताल के नाम से जाना जाता है। इनका आमतौर पर भजन और कीर्तन जैसे भक्ति संगीत में उपयोग किया जाता है।
ये आमतौर पर हरे कृष्ण भक्तों द्वारा हरिनाम का प्रदर्शन करते समय उपयोग किए जाते हैं, लेकिन सभी हिंदू भक्ति संगीत के लिए भी सर्वव्यापी हैं। ताल कांस्य, पीतल, तांबा, जस्ता आदि से बना होता है। प्रत्येक ताल एक रस्सी से जुड़ा होता है जो इसके केंद्र में मौजूद छेद से होकर गुज़रती है। विभिन्न प्रकार के ताल का स्वरमान उनके आकार, वज़न और उपयोग की जाने वाली सामग्रियों के अनुसार भिन्न होता है।
यह हिंदू धर्म, वैष्णव भक्तिवाद, सिख धर्म, संत परंपराओं और बौद्ध धर्म के कुछ रूपों के साथ-साथ अन्य धार्मिक समूहों में एक प्रमुख प्रथा का हिस्सा है। 21वीं सदी में, कीर्तन अब केवल भारतीय संस्कृति की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि भक्ति संदेश के माध्यम से इसका एक वैश्विक सांस्कृतिक असर देखने को मिला है। कीर्तन कार्यक्रम अब अमेरिका, यूरोप और एशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी उच्च मात्रा में दर्शकों को आकर्षित करते हैं।
संदर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Taal_(instrument)
2. https://bit.ly/2ZSMwdU
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Kirtan
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