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वर्तमान समय में ऊर्जा हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है। अधिकतर कार्य ऐसे हैं जो ऊर्जा के बिना सम्भव ही नहीं हो सकते। इस कारण हमारी निर्भरता इन पर इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि हम ऊर्जा संसाधनों का बहुत अधिक दोहन करने लगे हैं। अत्यधिक दोहन के कारण अब ऊर्जा संसाधन भी खतरे में हैं, जिस कारण मानव की ऊर्जा आपूर्ति मांगों को अब पूरा नहीं किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश भी विद्युत आपूर्ति की समस्या से जूझ रहा है तथा यह संकट अब स्थायी रूप ले चुका है। यहां बिजली आपूर्ति की मांग तो बहुत अधिक है किंतु विद्युत ऊर्जा अभाव के कारण इनकी आपूर्ति नहीं की जा सकती है। पिछले 20 वर्षों में यहां बिजली की कमी 10-15% के दायरे में बनी हुई है। 2013 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में बिजली की मांग और बिजली की आपूर्ति के बीच 43% का अंतर देखा गया था। 2013-14 की गर्मियों में राज्य की अनुमानित बिजली मांग 15,839 मेगावाट (MW) थी जबकि आपूर्ति में 6,832 मेगावाट (MW) का अंतर देखा गया था। इसके प्रभाव से यहां औद्योगिक निवेश भी बाधित हुए हैं।
इन कारणों से उत्तर प्रदेश सरकार को भारत के अन्य राज्यों से उच्च कीमतों पर बिजली खरीदनी पड़ती है। उदाहरण के लिए 2011 में यूपी सरकार ने राज्य में पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय संगठन से 17 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदी थी। यह अवस्था राज्य विद्युत बोर्ड (Board) को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाती है तथा शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे सामाजिक विकास के क्षेत्रों में राज्य के व्यय को भी बाधित करती है। 1999 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के बिजली क्षेत्र में सुधार करने के लिए बिजली क्षेत्र का पुनर्गठन और निजीकरण किया था तथा इसे तीन स्वतंत्र सहयोगों- उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (Uttar Pradesh Power Corporation Limited -यूपीपीसीएल), उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उद्योग निगम (State power Industry Corporation -यूपीआरवीयूएनएल) और उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम (Hydropower corporation -यूपीजेवीएनएल) में विभाजित किया था हालांकि बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर इसका कुछ खास असर नहीं पड़ा। इसके अतिरिक्त समस्या के समाधान के लिए कानपुर विद्युत आपूर्ति कंपनी (KESCO) का भी गठन किया गया था। 1999 में बने उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म एक्ट (Electricity Reform Act) में कई कमियाँ थीं, जो आज तक बनी हुई हैं तथा समस्या को और भी अधिक बढ़ा रही हैं।
2017 और 2018 के बीच उत्तर प्रदेश में ऊर्जा उत्पादन क्षमता निम्नलिखित थी:
राज्य विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत, विभिन्न राज्य-स्तरीय बिजली नियामकों ने एक नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्व निर्दिष्ट किया जिसके अनुसार ऊर्जा का एक निश्चित प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश के लिए यह लक्ष्य 5% निर्धारित किया गया था है जिसमें से 0.5% सौर ऊर्जा निर्धारित की गयी। परन्तु उत्तर प्रदेश इस लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहा। सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली के उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश के अन्य राज्यों से भी बहुत पीछे है। गुजरात में सौर ऊर्जा के माध्यम से 850 मेगावाट बिजली उत्पादित होती है तो राजस्थान 201 मेगावाट बिजली का उत्पादन सौर उर्जा से करता है। उत्तर प्रदेश में पहला सौर ऊर्जा संयंत्र जनवरी 2013 में बाराबंकी में शुरू किया गया था। बिजली के इस संकट से उभरने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत बहुत उपयोगी हो सकते हैं क्योंकि इन स्रोतों से बिना किसी प्राकृतिक क्षय के लगातार ऊर्जा निर्मित की जा सकती है। ये ऊर्जा की आपूर्ति तो करती ही है साथ ही साथ पर्यावरण को भी दूषित नहीं करती है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत उर्जा, बायोमास (Biomass), जैव इंधन, ज्वारीय उर्जा आदि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सम्मिलित हैं। बिजली की समस्या के निवारण के लिए जल विद्युत ऊर्जा महत्वपूर्ण स्रोत है।
वर्तमान में इसके माध्यम से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है जिसके निम्नलिखित लाभ हैं:
• जल विद्युत ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। क्योंकि नदियां और झीलें सदैव प्रवाहमान हैं तो जल से ऊर्जा बार-बार उत्पन्न की जा सकती है।
• ये ऊर्जा स्रोत पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी लाभकारी है। इसके माध्यम से बिजली उत्पन्न करने से विषाक्त पदार्थ उत्पन्न नहीं होते हैं।
• यह लागत की दृष्टि से भी एक उच्च ऊर्जा स्रोत है। भले ही इसकी निर्माण लागत अधिक हो सकती है किंतु यह बाज़ार की अस्थिरता से प्रभावित नहीं होता। कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोत बाज़ार की अस्थिरता से गहराई से प्रभावित होते हैं, जो उनकी कीमतों को या तो कम कर देते हैं या बढ़ा देते हैं।
• जल विद्युत संयत्रों के कारण दूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तथा इन स्थानों का विकास होता है। इनके कारण दूरदराज़ के समुदायों को बिजली की आपूर्ति होती है तथा ये स्थान राजमार्ग, उद्योग और वाणिज्य के निर्माण को आकर्षित करते हैं। इस प्रकार इन स्थानों में शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर सेवाएं उपलब्ध हो पाती हैं।
• जिस झील पर जल विद्युत संयंत्र स्थापित किया जाता है वहां मछली पकड़ने, नौका विहार और तैराकी जैसी गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया जाता है जिससे पर्यटन प्रोत्साहित होता है।
हालांकि जल विद्युत संयंत्रों के बहुत से लाभ हैं किंतु ये कुछ समस्याएं भी उत्पन्न करते हैं जो निम्न हैं:
• इनकी स्थापना से प्राकृतिक जल प्रवाह रुक जाते हैं जिससे नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कुछ मछलियां भोजन और प्रजनन के लिए दूसरे स्थानों में पलायन करती हैं किंतु संयंत्र निर्माण उनके मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं।
• बिजली संयंत्र की स्थापना करने की लागत बहुत अधिक होती है।
• इनका उपयोग नदियों और झीलों के अत्यधिक दोहन को बढ़ावा देता है।
• जल विद्युत संयंत्रों की स्थापना से जहां मैदानी भागों में सूखे की समस्या हो सकती है। तो वहीं कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बन सकता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2BGFQV0
2. https://energypedia.info/wiki/Uttar_Pradesh_Energy_Situation
3. http://www.altenergy.org/renewables/renewables.html
4. https://www.conserve-energy-future.com/pros-and-cons-of-hydroelectric-power.php
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