समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 964
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
रेल का सफ़र किसे नहीं पसंद है? यह एक ऐसा सफ़र होता है जिसमें व्यक्ति सुरम्य पहाड़ियों से लेकर नदियों, झरनों, खेतों, शहरों आदि के दर्शन एक साथ कर लेता है। आज के इस दौर में ट्रेन एक ज़रूरत बन चुकी है। मुंबई में तो लोकल ट्रेन (Local Train) को वहां की जीवनरेखा कहा जाता है जो लाखों लोगों को रोज़ाना अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचाती है। लखनऊ उत्तर भारतीय रेल का एक प्रमुख केंद्र है जहाँ से रोज़ाना लाखों की संख्या में लोग यात्रा करते हैं। यहाँ पर मीटर और ब्रॉड गेज (Metre Gauge & Broad Gauge) दोनों प्रकार की ट्रेनों के लिए आवा-जाही की व्यवस्था थी। आइये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर ये मीटर गेज ट्रेन होती क्या है? वैसे तीन प्रमुख प्रकार की रेल लाइनें भारतीय रेल में पायी जाती हैं, जिनके नाम कुछ यूँ हैं- मीटर गेज, नैरो गेज (Narrow Gauge), स्टैण्डर्ड गेज (Standard Gauge) और ब्रॉड गेज। अब यहाँ पर यह समझना अत्यंत आवश्यक होता है कि आखिर यह गेज है क्या चीज़?
रेल में गेज एक निम्नतम वक्र दूरी होती है जो पटरी की दो लाइनों (Lines) के मध्य में स्थित होती है। दुनिया भर के करीब 60% देश एक ही सामान लम्बाई के गेज का प्रयोग करते हैं जो कि 1,435 मिली मीटर की होती है। भारत में एक चौथी श्रेणी की भी गेज पायी जाती है जो कि मीटर, नैरो और ब्रॉड गेज से अलग होती है। उसे स्टैण्डर्ड गेज कहते हैं जो कि दिल्ली मेट्रो के लिए प्रयोग में लाई जाती है।
मीटर गेज लाइन को मीटर गेज इसी लिए कहा जाता है क्यूंकि उनकी दो लाइनों के मध्य की दूरी 1,000 मिली मीटर (यानी 1 मीटर) होती है जो फिट में 3 फिट की होती है। मीटर गेज की ट्रेनें उस समय इस लिए बनायी गयी थीं ताकि खर्च कम बैठे। वर्तमान काल में बहुत कम जगह ही मीटर गेज ट्रेनें पायी जाती हैं। उन्हीं में से एक है लखनऊ के करीब स्थित दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में से गुज़रने वाली मीटर गेज ट्रेन। यह करीब 171 किलोमीटर लम्बी ट्रेन है जो कि दो वन्यआभ्यारण्यों के मध्य से होकर गुज़रती है। अभी हाल ही में सरकार ने इन सभी 5 स्थानों को ब्रॉड गेज बनाने की योजना बनायी थी परन्तु पुनः इन सभी लाइनों को मीटर गेज ही रहने देने का फैसला लिया गया। यह फैसला विरासत लाइन के तहत लिया गया। इसको ब्रॉड लाइन ना बनाने का फैसला इस लिए भी लिया गया था क्यूंकि इस लाइन को पर्यटन के लिए सुगम बनाने की योजना है।
क्योंकि यह लाइन करीब 127 वर्ष पुरानी है तो इसको नियमित रूप से मरम्मत की ज़रूरत होती है जिसमें अधिक खर्चा होगा। परन्तु जब हम यह बात करते हैं कि ब्रॉड लाइन में ज़्यादा खर्चा आएगा या मीटर गेज में, तो यह ब्रॉड लाइन ही है क्यूंकि निर्माण खर्च सीधा सीधा पटरी की चौड़ाई पर निर्भर होता है। अब ब्रॉड गेज बनाने में सबसे ज़्यादा नुकसान यदि किसी का होगा, तो वह है वृक्षों का। चौड़ी लाइन बनाना अर्थात कई पेड़ों की कटाई, जो एक उत्तम विचार नहीं है। इसके अलावा जंगल में रहने वाले जीवों के लिए भी यह एक सुगम अनुभव नहीं होगा। यह लाइन 42 किलोमीटर बफर ज़ोन (Buffer Zone) में से भी होकर गुज़रती है जो कि बाघों के लिए उपयुक्त जगह है, तो वहां पर ब्रॉड लाइन और भी दुर्घटनाएँ लाने का कार्य करेगी।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2VG7gUk
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Metre-gauge_railway
3. https://bit.ly/2OHTDCr
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://indiarailinfo.com/search/brk-bahraich-to-ddw-dudhwa/1861/0/4088
2. https://www.youtube.com/watch?v=uubolJMrEE4
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.