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हम सभी यह जानते हैं कि मानव का धरती पर विकास एक क्रमिक प्रक्रिया द्वारा हुआ। इस प्रक्रिया में कई सभ्यताएं विकसित हुईं जिनमें मानव ने अपनी जीवन शैली को अच्छा बनाने के लिए कई चीज़ों की खोज की और साधनों का विकास किया। विकास का महत्वपूर्ण समय या युग वह था जब मानव ने स्वयं खेती करना सीखा। अब तक वह केवल शिकार के माध्यम से या फिर पेड़-पौधों पर आश्रित होकर ही अपना भोजन प्राप्त करता था किंतु जब उसने खेती करना सीखा तब वह स्वयं ही अनाज उत्पन्न करने में सक्षम बना। उत्त्तर प्रदेश में स्थित चोपनी मांडो पुरातत्व का वह महत्वपूर्ण स्थान है जहां से मानव द्वारा की गयी शुरूआती खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए तथा यह लखनऊ से अधिक दूर नहीं है। जब मानव ने खेती की शुरूआत की, उस युग को नव पाषाण युग के नाम से जाना जाता है। यह युग सम्भवतः 7000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के बीच का था जब मानव ने खेती का प्रारम्भ करना शुरू किया। धरती पर अंतिम हिमनद अवधि 10,000 से 15,000 वर्ष पहले समाप्त हुई जो कृषि के उद्भव का कारण बनी।
हिमनद अवधि समाप्त होने के बाद हवा में अधिक नमी आयी, मिट्टी का जमाव घटा और पौधे और पशु जीवन के लिए बेहतर स्थितियां वातावरण में विकसित हुईं जो कृषि के लिए भी उपयुक्त थीं। निरंतर हुए मानव विकास के कारण मानव में बुद्धि, भाषा और संस्कृति का परिवर्तन जारी रहा जिसमें प्राकृतिक चयन भी शामिल था। इस परिवर्तन के कारण ही लगभग 10,000 से 20,000 साल पहले मानव ने पहली बार कृषि को लागू करने के लिए पर्यावरणीय, मानसिक और सांस्कृतिक विकास का सही मिश्रण किया। इस समय के लोग पत्थर की अधिक परिष्कृत वस्तुओं को बनाने में सक्षम थे जो नवपाषाण काल को संदर्भित करती हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि खेती का शुरूआती समय नवपाषाण काल ही था। शुरूआत में उगायी गयी फसलों में रागी, चना, कपास, चावल, गेहूं, जौं आदि शामिल थे। उन्होंने गाय, भेड़ और बकरियों को अपना पालतू पशु भी बनाया। इसके अतिरिक्त पॉलिश (Polished) किए गए पत्थरों से बने औज़ारों का भी उपयोग किया गया। हड्डी से बने उपकरणों और हथियारों को भी मानव द्वारा उपयोग में लाया गया था। हथियार के रूप में मुख्य रूप से कुल्हाड़ियों का उपयोग किया गया जिनके आकार भिन्न-भिन्न थे। नवपाषाण युग के लोग मिट्टी से निर्मित आयताकार या गोलाकार घरों में रहते थे तथा मिट्टी से बने बर्तनों का उपयोग करते थे। इस प्रकार मिट्टी के बर्तन पहली बार नवपाषाण युग में ही दिखाई दिए। ये लोग पहाड़ी क्षेत्रों से बहुत दूर नहीं रहते थे। मुख्य रूप से पहाड़ी घाटियों, गुफाओं आदि में इनका निवास होता था क्योंकि वे पूरी तरह से पत्थर से बने हथियारों और उपकरणों पर निर्भर थे। इस समय के लोगों ने विंध्य, कश्मीर, दक्षिण भारत, पूर्वी भारत, मेघालय (भारत के उत्तर-पूर्वी सीमांत), मिर्ज़ापुर और उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जैसे कुछ उत्तरी इलाकों में निवास किया था।
खेती के साक्ष्य प्राप्त करने के परिपेक्ष में चोपनी मांडो एक समृद्ध पुरातात्विक स्थल है जहां भोजन एकत्र करने वाले समाज से खाद्य उत्पादन करने वाले समाज के साक्ष्य प्राप्त हुए। यह उत्तर प्रदेश राज्य के आधुनिक इलाहाबाद जिले में बेलन नदी घाटी में स्थित है जहां खुदाई के दौरान खेती के अवशेषों के साथ कई झोपड़ियां, हाथ से बने बर्तन आदि प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त बेलन घाटी का एक अन्य प्रासंगिक उत्खनन स्थल कोल्डिहवा भी है जहां से चावल की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए। अन्य स्थानों में प्राप्त खेती के साक्ष्यों में गेंहू, बाजरा आदि फसलें शामिल थीं जबकि कोल्डिहवा ही एकमात्र ऐसा उत्खनन स्थल है जहां चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए थे। पुरातत्वविदों को यहां से कुछ खंडित हड्डियों के अवशेष भी प्राप्त हुए।
संदर्भ:
1. https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/the-neolithic-age-1430564528-1
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Chopani_Mando
3. https://upsctreedotcom.wordpress.com/tag/chopani-mando/
4. https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_agriculture
5. https://bit.ly/2kQnFra
6. https://www.revolvy.com/page/Chopani-Mando
7. https://en.wikipedia.org/wiki/Koldihwa
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